फसलों की उचित कीमत न मिलने से जहां आज के युवा किसान खेती से तौबा कर रहे हैं, वहीं देवरिया जिले के तरकुलवा निवासी रामानुज तिवारी इलेक्ट्रॉनिक इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी तलाश छोड़कर पारंपरिक खेती से हटकर वैज्ञानिक विधि से पपीते की खेती कर पूर्वांचल में सफलता की एक नई मिसाल बन गए।
सूरत के रामचंद्र पटेल की जीरो बजट नैचुरल फॉर्मिंग तकनीक से खेती में इनपुट लागत काफी कम हुई और उन्हें रिटर्न को बढ़ाने में मदद मिली। हर साल उन्हें एक एकड़ भूमि से डेढ़ लाख रुपए और 18 एकड़ से 27 लाख रुपये का मुनाफा होता है।
"लेमन ग्रास की सलाना खपत हमारे देश में 10 हजार टन है लेकिन अभी 5-6 हजार टन का ही प्रोडक्शन हो पाता है। ऐसे में, किसानों के लिए इसकी खेती में काफी संभावनाएँ हैं।" - समीर चड्ढा
इन दिनों केशव कोरोना संक्रमण की वजह से सोशल मीडिया पर गूगल मीट के जरिए किसानों को लेक्चर भी दे रहे हैं, ताकि वह अपनी खेती में सुधार कर सकें और उनके अनुभवों का लाभ उठा सकें।
साल 2006 में कर्नल देसवाल और उनके मित्र लाल किशन यादव ने मिलकर गाजर की खेती शुरू की थी। इसके साथ ही उनका लक्ष्य बड़ी संख्या में किसानों को एक सूत्र में पिरोना, आधुनिक कृषि पद्धति को अपनाना और फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे की स्थापना करना था।
“मुझे लगता है कि सरिता मैम ने हमें जो सबसे अच्छी सलाह दी है, वह है कीटनाशक के रूप में चावल के स्टार्च का उपयोग करना। स्टार्च चिपचिपा होता है जिसके कारण कीट पौधे पर चिपक जाते हैं। मुझे यह रासायनिक कीटनाशकों का एक बढ़िया विकल्प लगता है।” – अनघा, छात्रा