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विदेश की नौकरी छोड़, लौटे अपने शहर ताकि इसे बना सकें कचरा मुक्त

Sanjay K Gupta setup plastic banks

तिनसुकिया, असम में रहने वाले संजय कुमार गुप्ता साल 2018 से 'केयर नॉर्थ ईस्ट फाउंडेशन' चला रहे हैं। जिसके जरिये वह न सिर्फ तिनसुकिया बल्कि तीताबर जैसे शहर को भी 'कचरा मुक्त' करने में जुटे हैं।

“एक दिन अखबार पढ़ते हुए मेरी नजर एक खबर पर गयी, जिसकी हैडलाइन थी कि तिनसुकिया सबसे गंदा शहर है। यह साल 2017 की बात है। तब मैं स्विट्ज़रलैंड में था और Skat Foundation के साथ काम कर रहा था। यह खबर पढ़कर पहले तो हंसी आई और फिर मैंने सोचा कि क्या इस खबर को बदला नहीं जा सकता? मैं पूरी दुनिया में स्वच्छता को लेकर काम करता हूं तो क्या अपने खुद के शहर के लिए कुछ नहीं कर सकता,” यह कहना है तिनसुकिया में रहने वाले संजय कुमार गुप्ता का। 

असम के तिनसुकिया में पले-बढ़े संजय 2018 से ‘केयर नॉर्थ ईस्ट फाउंडेशन‘ चला रहे हैं। जिसके जरिये वह न सिर्फ तिनसुकिया बल्कि तीताबर जैसे शहर को भी ‘कचरा मुक्त’ करने में जुटे हैं। अपने संगठन के जरिए उन्होंने 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है, जिसमें अधिकांश महिलाएं हैं। अब तक उन्होंने तिनसुकिया के 50% से अधिक इलाकों को कचरा मुक्त कर दिया है। वहीं, तीताबर साल 2020 में ही कचरा मुक्त शहर बन गया था और अब यहां के नागरिक इस पहचान को कायम रखने के लिए प्रयासरत हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए संजय कुमार गुप्ता ने कहा, “साल 2017 में तिनसुकिया का हाल बहुत बुरा था। लेकिन अब तिनसुकिया की परिस्थिति में काफी ज्यादा सुधार आया है। हालांकि, अभी भी बहुत काम करना बाकी है। लेकिन जिस तरह से प्रशासन और लोगों का साथ मिल रहा है, मुझे लगता है कि हम जल्द ही अपने मिशन में कामयाब हो जाएंगे।” 

Sanjay K Gupta discussing with people
Discussing With People

अपने शहर को साफ-सुथरा बनाने के लिए छोड़ी आराम की जिंदगी 

अपने बारे में बात करते हुए संजय ने कहा, “मैंने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से मास्टर्स और पीएचडी की डिग्री पूरी की। जेएनयू का कैंपस बहुत खूबसूरत है। पढ़ाई के दौरान जब कैंपस में कहीं कचरा देखता तो मुझे दुःख होता था। इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कैंपस में स्वच्छता पर भी काम किया। हम सभी छात्र कैंपस को ‘जीरो-वेस्ट’ कैंपस बनाने में जुट गए और इसमें सफल भी रहे। वहीं से मेरा वेस्ट मैनेजमेंट में करियर शुरू हुआ। पढ़ाई के बाद मैं ऐसे ही संगठनों से जुड़ता रहा, जो कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।”

तिनसुकिया लौटने से पहले संजय, स्विट्ज़रलैंड में Skat फाउंडेशन के साथ काम कर रहे थे। वह अभी भी इस संगठन से बतौर कंसलटेंट जुड़े हुए हैं। इस फाउंडेशन के साथ संजय ने न सिर्फ स्विट्ज़रलैंड बल्कि भूटान के लिए भी ‘सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लान’ पर काम किया है। “इन सब जगहों पर काम करते हुए मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं तिनसुकिया आकर भी यही काम करूंगा। हालांकि, मेरे पापा अक्सर कहा करते थे कि जो देश पहले से साफ़ है, वहां कचरा प्रबंधन के प्लान बनाने का क्या फायदा? अगर करना ही है तो तिनसुकिया को साफ़ करो। उस समय उनकी बातों को मजाक में ले लिया करता था। लेकिन तिनसुकिया की गंदगी को लेकर 2017 में जब खबर पढ़ी तो बैचेन हो गया कि मैं पूरी दुनिया को साफ़ करने में लगा हूं लेकिन मेरा अपना घर ही गंदा है,” उन्होंने कहा। 

संजय कहते हैं कि इसके बाद वह असम लौटने की योजना बनाने लगे। साल 2018 जब वह लौटे तो केयर नार्थ ईस्ट फाउंडेशन की शुरुआत की और नगर निगम के साथ मिलकर अपना प्रोजेक्ट शुरू किया। उन्होंने कहा, “जब मैंने स्विटज़रलैंड छोड़कर भारत लौटने का फैसला किया तो बहुत से लोगों ने मजाक बनाया। लेकिन मेरे पापा बहुत खुश हुए क्योंकि अब मैं वह कर रहा हूं जो पापा हमेशा से चाहते थे।” 

Door to door waste collection
Door to door waste collection

इकट्ठा की 52 लाख प्लास्टिक की बोतल

संजय ने सबसे पहले अपनी टीम बनायी और फिर व्यवस्थित ढंग से कचरे के निपटान पर काम शुरू किया गया। उन्होंने सबसे पहले रिहायशी इलाकों पर फोकस किया और फिर सामुदायिक इलाकों पर काम किया। इसके लिए उन्होंने कुछ पहल की, जैसे

  • घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करना। तिनसुकिया के आठ वार्डों से हर रोज उनकी टीम कचरा इकट्ठा कर रही है। 
  • कचरे को अलग-अलग करना। 
  • प्लास्टिक, कांच, मेटल का जो कचरा रीसायकल हो सकता है, उसे रीसाइक्लिंग यूनिट्स पर भेजना। 
  • अब तक उनकी टीम ने 52 लाख प्लास्टिक की बोतलों को इकट्ठा करके रीसायकलर्स को दिया है। 
  • गीले या जैविक कचरे को कंपोस्टिंग यूनिट में प्रोसेस करके जैविक खाद तैयार करना। 250 टन से ज्यादा गीले कचरे से 9 टन से ज्यादा खाद बनाकर बेची जा चुकी है। 
  • लोगों को घरों में कंपोस्टिंग के लिए प्रेरित करना और आज 850 घरों में गीले कचरे से खाद बनाई जा रही है। 
  • शहर के सात स्कूल और दो कॉलेजों में ‘प्लास्टिक बैंक’ लगाए गए हैं। इनके कैंपस आज ‘जीरो वेस्ट कैंपस’ हैं। 
  • सार्वजनिक छुट्टियों वाले दिन स्वच्छता अभियान किए जाते हैं। इन अभियानों में उन्होंने 500 टन से ज्यादा कचरा इकट्ठा किया है। 
  • नॉन-रीसायकलेबल चीजें जैसे प्लास्टिक रैपर आदि को सीमेंट फैक्ट्री पहुंचाया जाता है, जहां इन्हें टाइल्स आदि बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। 
Composting Unit
Composting Unit

संजय कहते हैं, “हमारे इस पूरे प्रोजेक्ट में 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। इन्हें हम नियमित आजीविका दे रहे हैं। साथ ही, हमारे कर्मचारियों को कचरे को अलग-अलग करते समय जो भी रीसायकलेबल आइटम मिलते हैं, उसे रीसायकलर्स को देने के बाद मिलने वाले पैसे भी कर्मचारियों के ही होते हैं। हम अपने कर्मचारियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं। उन्हें यूनिफार्म, दस्ताने और टोपी आदि उपलब्ध कराई जाती है। इनका नाम हमने ‘स्वच्छ सेना’ रखा है क्योंकि सबसे बड़ा काम यही लोग कर रहे हैं।” 

स्वच्छता के इस अनोखे काम की स्थानीय लोग तारीफ कर रहे है। शहर के निवासी विवेक खेतान कहते हैं, “संजय जी ने जब से काम शुरू किया तब से शहर में बहुत बदलाव आया है। पहले कोई घरों से कचरा इकट्ठा नहीं करता था। लेकिन अब हर दिन उनकी टीम कचरा इकट्ठा कर रही है। पहले सड़कों के किनारे हमेशा कूड़े के ढेर होते थे, जिन्हें बीच-बीच में जला दिया जाता था। लेकिन अब कचरे के ढेर नहीं दिखते हैं और न ही पिछले दो-ढाई सालों से कोई कूड़ा जलाया गया है। मैं बिल्कुल कह सकता हूं कि हमारे शहर में बहुत ज्यादा बदलाव आया है।” 

विवेक खेतान ने बताया कि घरों, दुकानों या कमर्शियल जगहों से हर रोज कचरा इकट्ठा करने के बदले फाउंडेशन हर महीने फीस लेती है। “लेकिन मुझे लगता है इस फीस के बदले में हमें जो मिल रहा है, वह बहुत ज्यादा है। क्योंकि इससे पहले लोगों को लाखों के टैक्स भरने के बावजूद कभी सफाई नहीं मिली थी। लेकिन पिछले दो-ढाई सालों में शहर की सूरत बदल गयी है। संजय जी अपनी टीम के साथ लगातार काम कर रहे हैं इसलिए उम्मीद है कि आने वाले कुछ सालों में हमारा शहर जीरो वेस्ट होगा,” उन्होंने कहा। 

संजय कहते हैं कि शहर के लोगों का साथ उन्हें मिल रहा है और प्रशासन के लोग भी उनकी मदद कर रहे हैं। आने वाले समय में उन्हें पूरी उम्मीद है कि वह न सिर्फ तिनसुकिया बल्कि पूरे असम को जीरो-वेस्ट बना पाएंगे। 

अगर आप संजय के काम के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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