"जब मैंने किसानी शुरू की थी, तब मैं साइकिल से आता-जाता था। आज मेरे पास 2 कार और 7 मोटरसाइकिल हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि पानी बचाने से मेरी ज़िंदगी बदल जाएगी। यह वाकई अनमोल है।"
"शायद 2002 की बात होगी जब मैंने कहीं पढ़ा कि 'गाँव बिकाऊ है।' यह पंजाब के ही एक गाँव हरकिशनपुरा की कहानी थी। वहां न तो पानी बचा था और न ही ज़मीन, ऐसे में पूरे गाँव ने मिलकर अपनी ज़मीन बेचने का फैसला किया।"
"मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान एक विषय पढ़ा था 'एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग' यानी कि 'कृषि अभियांत्रिकी' और मुझे उस विषय में बहुत दिलचस्पी रहती थी। इसलिए, जब मुझे मशीन नहीं मिली तो मैंने सोचा कि क्यों न अपने अनुभव को इस्तेमाल करके किसानों की ज़रूरत के हिसाब से मशीन तैयार की जाए।"
यह कहानी है सविता डकले की, जिन्होंने न सिर्फ अपनी इस आम कहानी को अपनी मेहनत और लगन से ख़ास बनाया बल्कि अपने गाँव की दूसरी महिलाओं को भी अपने नक़्शे कदम पर चलने के लिए प्रेरित किया।