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मनीष गुप्ता

ईश्वर है? भूत है?

By मनीष गुप्ता

इस लेख का मकसद यह स्थापित करना कतई नहीं है कि भगवान होते हैं या नहीं होते. महज़ यह सवाल खड़े करना है कि लोग अपने विवेक और बुद्धि से अपने तौर-तरीक़ों, अपनी आस्थाओं पर एक नयी नज़र डालें.

एक औरत जो मेरे भीतर रहती है!

By मनीष गुप्ता

असल प्रश्न क्या हैं आख़िर? स्त्री-पुरुष को साथ की आवश्यकता ही क्या है? विश्व को जनसंख्या बढ़ोतरी की तो कोई आवश्यकता है नहीं. उसके अलावा मानसिक तौर (बौद्धिक, व्यवहारिक और आध्यत्मिक) पर स्त्री और पुरुष एक दूसरे को पुष्ट करते हैं, इस बात में भी संदेह नहीं है.

सईद साबरी की राम-नाम-रस-भीनी चदरिया!

By मनीष गुप्ता

सईद साबरी की अपनी पहचान है. जो उन्हें नहीं जानते उनके लिए सईद साबरी साहब वो हैं जिन्होंने राज कपूर साहब की हिना फ़िल्म का गाना 'देर न हो जाए कहीं देर न हो जाए गाया था.

लड़कियों! सेक्स की बात मत करो

By मनीष गुप्ता

आज 2018 में नारियाँ आगे आ रही हैं और अपनी लैंगिकता और कामुकता के बारे में बात कर लेती हैं. पचास-सौ साल पहले ऐसा होना समाज को कितना असहज कर देता?

दिल के हैं बुरे लेकिन अच्छे भी तो लगते हैं

By मनीष गुप्ता

आसान सा लेख है पर अगर मन भारी हो गया हो तो माफ़ी. इलाज के तौर पर ये वीडियो हाज़िर है.. देखें परवीन कैफ़ की नशा ला देने वाली मासूमियत को.. कहती हैं..

रूमी से मिले?

By मनीष गुप्ता

रूमी : हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं - पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. पर क्या ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?'

मृत्यु : आख़िरकार है क्या?

By मनीष गुप्ता

अपनी हानि पर शोक ठीक है लेकिन जो गया उसके लिए तो एक नया अध्याय आरम्भ हुआ है. हम उसे जाने दें.. अच्छे से विदा करें ताकि नए अध्याय में वह आसानी से रम सके.

बाबा बुल्ले शाह दा टूथपेस्ट!

By मनीष गुप्ता

बाबा बुल्ले शाह दा टूथपेस्ट - एक कटाक्ष है हमारे आज के बाबाओं पे जो सादगी भूल चुके है. मनीष गुप्ता हर बार ई तरह अपने सहज भाव से एक बड़ी बात कह जाते है.