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#हमराही: नौकरी छोड़ पहुँच गए गाँव, 'साबुन' से बना दिया सैकड़ों महिलाओं को सशक्त!!

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले अनुराग और शिखा ने कॉलेज के दिनों से ही ठान लिया था कि वे आगे चलकर ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने के लिए काम करेंगे!

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#हमराही: नौकरी छोड़ पहुँच गए गाँव, 'साबुन' से बना दिया सैकड़ों महिलाओं को सशक्त!!

इंजीनियरिंग करके दो साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने के बाद, अनुराग और शिखा जैन ने नौकरी छोड़कर अपना कुछ शुरू करने का फैसला किया। आज उनकी कंपनी एक अवॉर्ड विनिंग एंटरप्राइज है जो ग्रामीण समुदायों से हजारों महिलाओं को रोज़गार देकर सशक्त बना रही है।

शिखा कहती हैं कि कॉलेज के वक़्त से ही उन्हें और अनुराग को कुछ ऐसा करना था, जिससे वे खुद को और बेहतर समझ सकें। कुछ ऐसा, जिससे किसी की ज़िंदगी पर अच्छा असर पड़े। इसके साथ उन्हें यह भी देखना था कि वे अपना घर चला पाएं और इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ने के बाद एनजीओ और संस्थाओं से संपर्क किया।

उन्होंने कृष्णमूर्ति फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया जॉइन किया और यहीं से उन्होंने फैसला किया कि वे ग्रामीण बच्चों और महिलाओं के लिए काम करेंगे।

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Anurag Jain and Shikha Jain

भारत में ग्रामीण इलाकों के उत्थान को लक्ष्य रखकर, उन्होंने 2006 में झारखंड के एक गाँव से NEEV (न्यू एजुकेशन एंड एनवायरनमेंट विज़न) ट्रस्ट की शुरुआत की। अगले 4 सालों में उन्होंने बहुत अलग-अलग संगठनों के साथ मिलकर राज्य में 6 लर्निंग सेंटर, टीबी व लेप्रसी (कोढ़) के इलाज के लिए हेल्थ सेंटर्स बनवाये।

"हमने झारखंड में स्वास्थ्य शिविर भी लगवाए हैं जिनमें लगभग 300 -500 मरीज़ों को इलाज की सुविधा मिली है। हम अस्पतालों के साथ मिलकर मरीज़ों के इलाज और दवाइयों की सुविधा मुफ्त में मुहैया कराते हैं। इसके अलावा, हम 600 किसानों के साथ भी काम कर रहे हैं, जिन्हें हम सुविधाएँ और रोज़गार के अवसर देते हैं," उन्होंने बताया।

नीव(NEEV) हैंडमेड साबुन 

इतने प्रयासों के बाद भी इस दंपति को लगता था कि वे ज़रुरतमंदों के लिए कुछ ऐसा नहीं कर पा रहे हैं जो हमेशा के लिए उनकी ज़िंदगी बदल दे। ऐसे में, उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को प्राकृतिक रूप से साबुन बनाने की ट्रेनिंग दिलाने की सोची।

"झारखंड के हुर्लुंग गाँव में हमने आदिवासी महिलाओं के लिए वर्कशॉप करने की सोची। मुझे भी नहीं पता था कि साबुन कैसे बनाते हैं, मैंने भी इनके साथ ही सीखा," शिखा ने बताया।

धीरे- धीरे उनका यह काम बढ़ा और 'नीव हर्बल हैंडमेड सोप' बन गया।

जब इस दंपति ने साबुन बेचना शुरू किया तो लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया। उन्हें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली और इसकी मांग इतनी हुई कि उन्हें अपनी प्रोडक्शन यूनिट में और महिलाओं को नौकरी देनी पड़ी।

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आज NEEV साबुन के अलावा फेसमास्क, क्रीम, स्क्रब आदि प्रोडक्ट्स भी बना रहा है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अंतर्गत रजिस्टर्ड यह संगठन, प्रमुख रूप से ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार के साधन प्रदान कर सशक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और साथ ही, ऐसा कुछ बना रहा है जो समाज के साथ-साथ हमारी धरती के लिए भी सुरक्षित है।

प्राकृतिक प्रक्रिया:

NEEV के साबुन महुआ, अरंडी, नारियल, ऑलिव और अन्य कुछ ज़रूरी तैलीय पदार्थों से बनते हैं। इनमें अलग से कोई भी केमिकल या फिर रंग नहीं होता।

साबुन बनाने के लिए सभी ज़रूरी चीजें उनके अपने 25 स्क्वायर फीट में बने जैविक खेत में ही उगती हैं। जैसे मेहँदी, अश्वगंधा, शतावरी, भृंगराज, ब्राह्मी, लौंग, तुलसी, खीरा, नींबू आदि। दूसरे तत्व जैसे कि पपीता, नीम, टमाटर, गाजर, काशीफल आदि भी गाँव में ही जैविक तरीकों से उगाए जाते हैं।

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इन साबुनों को कोल्ड-प्रोसेस्ड तकनीक से बनाया जाता है और ये सभी हर्बल होते हैं। एक और अच्छी बात यह है कि उनकी प्रोडक्शन यूनिट, सोलर पॉवर से चलती है। प्रोडक्शन के दौरान जो पानी बच जाता है उससे वे अपने खेत की सिंचाई करते हैं।

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प्रोडक्शन के लिए NEEV सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को हायर करता है। आज उनकी यूनिट में 40 महिलाएं काम कर रही हैं लेकिन उन्होंने अपनी पहल से 400 से ज्यादा महिलाओं की ज़िंदगी को प्रभावित किया है। उनके यहाँ काम करने वाली बहुत सी महिलाएं आज कॉलेज जा पा रही हैं और खुद अपनी फीस भरती हैं।

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NEEV ट्रस्ट को 2010 में भारत के पूर्वी क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में सर्वश्रेष्ठ REGP KVIC (खादी और ग्रामोद्योग आयोग) यूनिट होने के लिए कई राज्य स्तरीय पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

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अनुराग और शिखा की एक पहल ने झारखंड के दूरगामी गाँवों में भी बदलाव की एक लहर शुरू कर दी है। छोटे स्तर पर ही सही लेकिन वे महिलाओं को एक सम्मानजनक जीवन दे रहे हैं। इन महिलाओं द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट्स खरीदकर आप भी इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं।

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संपादन- अर्चना गुप्ता

मूल लेख: सेरीन सारा ज़कारिया


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