संध्या सूरीः नेवी की पहली महिला अधिकारियों में से एक, जिन्हें वॉरशिप पर मिली थी तैनाती

Indian Navy Day - Remembering Sandhy Suri, one of the first Woman Officers

अगस्त 1994 में, 22 वर्ष की एक लड़की के घर टेलिफोन की घंटी बजती है, फोन रिसीव करते ही उधर से आवाज आती है कि ‘आपको नौसेना अकादमी (Indian Navy) में रिपोर्ट करना है’। पढ़ें कौन थी वह लड़की और क्यों खास है यह कहानी।

अगस्त 1994 में,  22 वर्ष की एक लड़की के घर टेलिफोन की घंटी बजती है, फोन रिसीव करते ही उधर से आवाज आती है कि ‘आपको नौसेना अकादमी में रिपोर्ट करना है’। यह सुनने भर की देर थी और वह लड़की खुशी से झूम उठती है। उस होनहार युवा लड़की का नाम था संध्या सूरी (Indian Navy Officer Sandhya Suri)।

संध्या उस समय अंग्रेजी में मास्टर्स करने के साथ-साथ, आईपीएस परीक्षा की तैयारी भी कर रही थीं। नौसेना अकादमी के तीसरे बैच में 14 महिला उम्मीदवार थीं, जिसमें अब संध्या ने भी अपनी जगह बना ली थी। लेकिन इसके लिए उन्होंने बहुत से त्याग किए।

द बेटर इंडिया ने भारतीय नौसेना के वॉरशिप पर तैनात रह चुकीं रिटायर्ड नौसेना अधिकारी (Woman Indian Navy Officer) संध्या सूरी से बात की। 

प्रश्न: नौसेना में शामिल होने के लिए आपको कहां से प्रेरणा मिली?

संध्या (Sandhya Suri)- हो सकता है कि यह सुनने में थोड़ा अटपटा लगे, लेकिन जब महिलाएं सशस्त्र बलों में नहीं जाया करती थीं, मैं तबसे ही इस बल में आना चाहती थी। मेरे पिता हमेशा से ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। जब मुझे फोन आया था, उस दौरान मैं अपने आईपीएस परीक्षा की तैयारी कर रही थी। कॉलेज में अंग्रेजी में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही थी। साथ ही राज्य के लिए बास्केटबॉल खेल रही थी और जम्मू के कालूचक में आर्मी स्कूल में अंग्रेजी भी पढ़ा रही थी।

जब नेवी से मेरे पास फोन आया, तो मैंने बड़ी खुशी-खुशी आईपीएस की राह छोड़ दी। मैंने सबसे पहले थल सेना, फिर नौसेना और फिर वायु सेना में आवेदन किया था। पहले मेरे पास कॉल वायु सेना की ओर से आया था। जब मैं वायु सेना के एसएसबी के लिए गई हुई थी, तभी नौसेना अकादमी को रिपोर्ट करने का फोन आया।

Sandhya Suri
Sandhya Suri

प्रश्न: चयनित होने पर आपको कैसा महसूस हुआ था?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri) ईमानदारी से कहूं तो आईपीएस परीक्षा की तैयारी छोड़कर मुझे काफी राहत का अहसास हुआ। मैं सुपर एक्साइटेड थी। मुझे याद है, वायु सेना एसएसबी बोर्ड के अध्यक्ष ने मुझसे वायु सेना में शामिल होने के लिए कहा था। हालांकि मुझे खुशी है कि मैं नौसेना में शामिल हुई। मुझे इसका कभी पछतावा नहीं हुआ। मेरे पिताजी खुश थे और मेरी माँ डरी हुई थीं। मैं अपने परिवार में अकेली लड़की हूं, जिसने सशस्त्र बलों में सेवा की है।

प्रश्न: काम पर आपका पहला दिन कैसा रहा?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)- मुझे 18 अगस्त 1994 को कमीशन दिया गया था और मैंने सात साल तक सेवा की है। हमें अपनी पहली पोस्टिंग से पहले, ट्रेनिंग लेनी होती थी। मैंने पहले गोवा में नौसेना अकादमी में प्रशिक्षण लिया। उसके बाद कोच्चि में CLABS, मुंबई में Hamla School of Management and Logistics, लोनावाला में NBCD बेसिक ट्रेनिंग और फिर डी-कमीशन एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत पर एक जहाज का अटैचमेंट। यह सब 11 महीने तक चला, जब तक कि मैं पूर्वी कमान में तैनात नहीं हो गई।

प्रश्न: उस समय आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)फिटनेस और मानसिक तौर पर मजबूत होना सबसे ज़रूरी चीज़ है। क्योंकि मैं पहले से ही जम्मू-कश्मीर के लिए बास्केटबॉल खेला करती थी, इसलिए मुझे हर दिन लगभग 4-5 घंटे वर्कआउट करने की आदत थी और इससे मुझे बहुत मदद मिली। मुझे वर्कआउट करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई। मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मैं एक ‘अधिकारी’ थी, न कि ‘महिला अधिकारी’। जैसा कि हमें बताया गया था।

ज्यादातर महिलाओं के लिए यह भूल पाना वाकई एक बड़ी चुनौती होती है कि वे एक महिला हैं और पुरुषों को भी ऐसा ही सोचने पर मजबूर करना और भी बड़ी चुनौती थी। सशस्त्र बलों में होना संतुलन, धैर्य और बेहद साहस भरा काम है। आप उतने ही मजबूत होते हैं, जितनी मजबूत आपकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है। नौसेना में मेरी सबसे बड़ी चुनौती, इस बात के लिए लड़ना था कि मुझे एक महिला नहीं, बल्कि एक वर्दीधारी सैन्यकर्मी माना जाए। मुझे लगता है कि सेवाओं में यह हर महिला की चुनौती होती है।

प्रश्न: आप उन भाग्यशाली महिलाओं में से हैं, जिन्हें युद्धपोत पर सेवा करने का अवसर मिला है। वह कैसा अनुभव था?

Sandhya Suri with team members
Sandhya Suri with team members

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)मैं उन भाग्यशाली लोगों में से हूं, जिन्हें युद्धपोत पर सवार होने का सौभाग्य मिला। मुझे एक लॉजिस्टिक वॉरशिप पर तैनात किया गया था। वह विशेष पोस्टिंग, नौसेना में मेरी सबसे अच्छी पोस्टिंग थी। हालांकि वह काफी चुनौतीपूर्ण काम था, लेकिन मैं अपनी जिम्मेदारियों को जानती थी और उसके लिए जवाबदेह भी थी।

नौसेना के लिए किसी महिला को युद्धपोत पर तैनात करना आसान नहीं है। यह बहुत लंबे समय से एक पुरुष डोमेन रहा है। मुझे तो यह भी नहीं पता कि जब मुझे तैनात किया गया था, क्या तब भी लोग इसके लिए तैयार थे। पेशेवर रूप से खुद को बार-बार साबित करना एक चुनौती थी। यह उतना ही आसान था, जितना  एक ही जगह पर ‘अधिकारी और महिला’ दोनों कहे जाने पर आपत्ति करना। 

तुम्हें पता है, मैं वर्दी में हूं, बस इतना काफी है। मैं पुरुष या महिला हो सकती हूं। मेरी भी जिम्मेदारियां उतनी ही हैं। लगभग सभी पुरुषों को लगता था कि महिलाओं के पास विशेषाधिकार हैं, जैसे कि एक निजी शौचालय की जगह, केबिन के दरवाजे बंद कर सकना, आदि। लेकिन मैंने तो यह सब नहीं मांगा। नियम और प्रावधान तो अधिकारियों द्वारा बनाए गए थे। मुझे पता है कि मैंने किसके लिए साइन अप किया है। मैंने विशेषाधिकार नहीं मांगे। मुझे बस वही करना था, जिसके लिए मैं आई थी।

“आज भी देश को पड़ी मेरी जरूरत, तो हटूंगी पीछे”

आपको एक बात समझनी होगी – कम से कम भारत में जहाज पर महिलाओं के होने का मतलब है उनके लिए कीमती जगह की कुर्बानी देना। विदेशी नौसेनाओं में, ऐसी कोई जगह नहीं बनाई गई है। आप सेना में शामिल होते हैं और अपना काम करते हैं। मैं बहुत खुश हूं कि अब महिलाएं दुनिया भर में नौकायन और पर्वतारोहण जैसी बहुत सारी साहसिक गतिविधियां कर रही हैं और मुझे वास्तव में उन पर गर्व होता है। हालांकि और भी बहुत कुछ होना चाहिए। मैं तो यह भी नहीं मानती कि महिलाओं को जहाजों से बाहर रखा जाना चाहिए। हां, बस जरूरत है निष्पक्षता और महिलाओं के विशेषाधिकारों को न निकाले जाने की।

एक अधिकारी को प्रमोशन के लिए कम से कम एक वर्ष के लिए समुद्री सेवा करनी होती है। मुझे लगता है कि यहीं से वे शुरुआत कर सकते हैं। कानूनों को ऑब्जेक्टिन होने की जरूरत है, न कि विषयगत रूप से जेंडर केंद्रित होने की। अगर महिलाएं सेना में शामिल होती हैं और विशेषाधिकार चाहती हैं, तो उन्हें इसमें शामिल नहीं होना चाहिए। यह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले तिरंगे की सेवा करने का काम है। मुझे नहीं लगता कि यहां किसी भी चीज के लिए सौदेबाजी की जगह होनी चाहिए। शायद मेरे विचार पुराने जमाने के हों। लेकिन, यह कोई नौकरी या सिर्फ एक करियर नहीं है। यहां आपके लिए विशेषाधिकार देश की सेवा करना है। मैं भाग्यशाली हूं और यह मेरे लिए सम्मान की बात है। अगर आज 65 साल की उम्र में भी देश को मेरी जरूरत पड़ी, तो मैं साइन अप करूंगी।

(बेशक, मैं उतनी फिट नहीं हूं जितनी मैं हुआ करती थी, लेकिन आपको बात समझ में आ ही गई होगी।)

प्रश्न: क्या आपको कभी एक महिला होने के नाते खुद पर संदेह हुआ?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri) एक क्षण भी नहीं। अभी नहीं, कभी नहीं।

प्रश्न: नौसेना अधिकारी होने के नाते अपनी कुछ यादें शेयर करें।

Sandhya Suri, One of Indian Navy’s First Women Officers
Sandhya Suri, One of Indian Navy’s First Women Officers

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)जैसा कि मैंने पहले कहा, युद्धपोत पर पोस्टिंग, मेरे लिए सबसे अच्छा समय था। मैंने जो कुछ भी सीखा और जिसके लिए मुझे ट्रेनिंग दी गई थी, मैंने उसका पूरा उपयोग किया। मैंने जहाज को पेंट किया है, मैंने क्रू के लिए खाना बनाया है, क्रू के साथ खतरों का सामना किया है और हम सभी ने एक साथ एक शानदार यात्रा देखी है। मैंने इनमें से कुछ भी इनाम या पुरस्कार के लिए नहीं किया। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं उस टीम का हिस्सा थी, जो समुद्र में थी।

मैंने शायद दूसरों की तुलना में आपात स्थिति में खुद को अधिक संतुलित रखा। मुंबई में मेरी लास्ट पोस्टिंग भी काफी अच्छी रही। वहां मेरी यूनिट को फरवरी 2001 में अंतर्राष्ट्रीय फ्लीट रिव्यू के लिए बैठने, सुरक्षा और खानपान की पूरी योजना के प्रबंधन का काम सौंपा गया था। मेरी बेटी तब सात महीने की थी। हमने उस काम के लिए बहुत मेहनत की और इसे सफलता पूर्वक पूरा होते हुए देखना काफी संतोषजनक था।

प्रश्न: क्या नौसेना छोड़ने का निर्णय कठिन था? नौकरी छोड़ने का फैसला करते समय आपके दिमाग में क्या विचार आए?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)ईमानदारी से कहूं तो मैं एक प्रशिक्षक और प्रमाणित गोताखोर बनना चाहती थी। इसके लिए मैंने एसएसबी बोर्ड या नेवल इंटेल में स्थानांतरण के लिए अनुरोध भी किया गया था। उस समय, जब मुझसे पूछा गया कि क्या मैं एक्सटेंड करना चाहती हूं। जब मेरे अनुरोधों को खारिज कर दिया गया, तो मुझे रुकने का कोई मतलब नहीं दिख रहा था। पूरा टाइम मैं हर समय फाइलों को आगे बढ़ाने का कम नहीं करना चाहती थी। मैं इससे कहीं अधिक और बड़ा काम करना चाहती थी। उसी समय, नौसेना में महिलाओं की पोस्टिंग जारी नहीं रखने का फैसला भी हुआ था।

प्रश्न: क्या आप उस समय नौसेना में महिलाओं के लिए अवसरों की कमी से निराश महसूस करती थीं?

संध्या- मुझे लगता है कि हां, लेकिन बहुत हद तक नहीं। इसे तर्कसंगत रूप से देखना होगा और जेंडर के संदर्भ में खुद को एक राष्ट्र के रूप में भी देखना होगा। जितना भी इसे नजरअंदाज करना चाहें, वास्तविकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 

प्रश्न: आज का नौसेना दिवस आपके लिए कितना खास है?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)नौसेना दिवस आज भी मेरे लिए बहुत खास है। जैसे-जैसे साल बीतेंगे, मेरे जीवन में इसका महत्व बढ़ता ही जाएगा। आखिरी बार अपनी वर्दी को उतारे और फिर कभी न पहने पंद्रह साल हो गए हैं। लेकिन एक फौजी, हमेशा फौजी ही रहता है। 

प्रश्न: नौसेना में शामिल होने की इच्छुक महिलाओं के लिए उपलब्ध वर्तमान अवसरों के बारे में आप क्या कहेंगी?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम महिलाओं के लिए उपलब्ध अवसरों को देखना बंद कर दें। अब समय आ गया है कि हम योग्य युवा नागरिकों को सेवाओं में शामिल होने के लिए आमंत्रित करें, लेकिन जेंडर का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न: भारतीय नौसेना में शामिल होने की इच्छुक महिलाओं को आपकी क्या सलाह है?

संध्या (Indian Navy Officer Sandhya Suri)अगर आप इसे एक करियर या नौकरी के रूप में देख रहे हैं, तो कृपया इसमें शामिल न हों और राष्ट्र की सेवा करने के हमारे शुरुआती प्रयासों को कमजोर ना करें। अगर शामिल होना ही है, तो गौरव के लिए शामिल हों, अगर आप ली गई अपनी शपथ को जी सकते हैं, तो शामिल हों और अगर यूनिफॉर्म में सिर्फ ग्लैमर की सोच के अलावा, आपके लिए और भी कुछ है तो ही ज्वाइन करें। केवल तभी शामिल हों, जब आप अपने देश को सबसे ऊपर रख सकते हैं, अपने जहाज (इकाई पढ़ें) और अपनी टीम को अपने से पहले रख सकते हैं। अन्यथा, इसे धूमिल न करें। 

आप संध्या सूरी से sandhyasuri@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेखः अमीना शेख

संपादन- जी एन झा

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