ज़ीरो सीमेंट से बने इस पर्यावरण के अनुकूल घर में, कुर्सियां तक बनी हैं पत्थर से

Popular writers, Echmukutty and Padmakumar used recycled and second hand materials instead of cement to build eco-friendly homes.

लोकप्रिय मलयालम लेखिका एचमुकुट्टी और उनके आर्किटेक्ट पति पद्मकुमार ने केरल में एक इको-फ्रेंड्ली घर बनाया है। रिसायकल की गई ईंटों, पत्थरों, मिट्टी, रिसायकल की गई फ्रेम और कांच से बने इस घर के हर कोने में प्रकृति का रूप झलकता है।

केरल के तिरुवनंतपुरम के बाहरी इलाके में स्थित पोडिकोणम में, एक दो मंजिला घर है जो दूसरे घरों से काफी अलग है। कई पेड़ों और चट्टानी इलाकों के बीच बना यह खूबसूरत व पर्यावरण के अनुकूल घर, दूर से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह घर है लोकप्रिय मलयालम लेखिका एचमुकुट्टी और उनके आर्किटेक्ट पति, आर डी पद्मकुमार का।

साल 2009 में एकमुकुट्टी और उनके पति ने 20 सेंट ज़मीन खरीदी थी, क्योंकि डी पद्मकुमार एक आर्किटेक्ट हैं, इसलिए उन्हें अपने राज्य में रीयल स्टेट की काफी अच्छी जानकारी थी। उन्हें अपना घर बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

वह कहते हैं, “राज्य में पहले से ही एक क्षेत्र में बड़ी संख्या में ज़रूरत से ज्यादा घर और अपार्टमेंट हैं। इसके बावजूद, बेघर लोगों की संख्या में कमी नहीं आ रही। हम संरचनाओं की संख्या में वृद्धि नहीं करना चाहते थे, लेकिन फिर ‘अपने घर में रहने’ के सामाजिक दबाव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।”

लेकिन पद्मकुमार एक बात को लेकर काफी स्पष्ट थे कि उनका घर कंक्रीट की इमारत नहीं होगी। बहुत सोच-विचार कर उन्होंने एक इको-फ्रेंड्ली घर, ‘गीत’ का निर्माण किया।

घर को बनाते समय इन 3 बातों का रखा ध्यान

Popular Malayalam writer Echmukutty
Popular Malayalam writer Echmukutty 

1400 वर्ग फुट के इस घर में कई तरह की विशेषताएं हैं, जो हमें चकित करती हैं। इस घर को बनाते समय आर्किटेक्ट ने तीन प्रमुख सस्टेनेबल सिद्धांत का पालन किया है।

  1. डिजाइन और निर्माण की योजना बनानाः जब भी किसी संरचना को तोड़ने की ज़रूरत होती है, तो करीब 95 प्रतिशत सामग्री को बचाया जा सकता है और रिसायकल किया जा सकता है। इसमें लकड़ी, ईंटें, पत्थर, स्टील की छड़ें, जाली, बांस की प्लाई और कांच शामिल हैं।
  2. सेकंड-हैंड सामग्री का उपयोगः घर के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली करीब सभी चीजें फिर से इस्तेमाल की जा सकती हैं। जैसे- नए घर में लगाए गए ग्रिल, उल्लूर में एक ध्वस्त घर से एकत्र की गई छड़ों से बने हैं। घर के अंदर दिन की रोशनी बढ़ाने के लिए कुछ क्षेत्रों में पुरानी कारों और ऑटो रिक्शा के शीशे लगाए गए हैं।
  3. सीमेंट का नहीं किया इस्तेमालः इस घर को बनानें में सीमेंट की जगह चूने और मिट्टी का उपयोग किया गया है। इसे बनाने में ज्यादा समय, प्रयास और पैसा लगा है। लेकिन आखिर में, यह बेहद कम कार्बन फुटप्रिंट वाला, पूरी तरह से इको-फ्रेंड्ली घर बना है। इसे बनाते समय पानी की खपत को कम करने के लिए विशेष ध्यान रखा गया। साथ ही घर बनाते समय जो कचरा उत्पन्न हुआ, उसके हर हिस्से को अलग किया गया और जिम्मेदारी से निपटाया गया।

पर्यावरण के अनुकूल घर बनाने में कितना लगा समय?

a bedroom in an eco friendly house in keral
bedroom in an eco friendly house in Kerala

एकमुकुट्टी और पद्मकुमार के नए घर में दो बेडरूम और दो बाथरूम हैं। साथ ही एक कॉमन स्पेस भी है, जहां लिविंग रूम, डाइनिंग रूम, लाइब्रेरी और रसोई घर बनाया गया है। इस घर को बनाने में करीब 4.5 साल का समय लगा। पद्मकुमार के पास अपनी फील्ड में करीब 35 सालों का अनुभव है।

वह कहते हैं, “केवल एक राजमिस्त्री, सहायक और बढ़ई के साथ सामग्री की खरीद और अच्छी तरह से काम को पूरा करने में समय लगा। इसके अलावा, अगर प्रक्रिया बहुत तेज़ हो जाती है, तो हम प्रोजेक्ट पर नियंत्रण खो सकते हैं और सस्टेनेबल घर बनाने का मकसद खत्म हो जाएगा। ऐसा होने से बचने के लिए हमने अपना पूरा समय लिया।” 

कॉस्टफोर्ड में अपने करियर के शुरुआती वर्षों के दौरान, पद्मकुमार, ब्रिटिश मूल के भारतीय आर्किटेक्ट लॉरी बेकर के साथ काम करते थे। लॉरी बेकर, लागत और ऊर्जा-कुशल आर्किटेक्चर के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा स्पेस, वेंटिलेशन और प्रकाश वाले घर डिजाइन करने के लिए मशहूर थे। अपने पूरे जीवन में, बेकर ने सस्टेनेबल संरचनाएं ही डिजाइन कीं।

पहले से मौजूद चट्टानें भी बनीं ‘गीत’ का हिस्सा

a mango shaped pond in Echmukutty's house in kerala
a mango shaped pond in Echmukutty’s house in kerala

पद्मकुमार कहते हैं, “लॉरी बेकर ने मुझे एक आर्किटेक्ट और एक इंसान के रूप में काफी प्रभावित किया है।” पद्मकुमार यह भी कहते हैं कि बेकर की साइटों से वे चीजें सीखने को मिलती थीं, जो कहीं और नहीं मिल सकतीं। आर्किटेक्ट्स और इंजीनियर्स, राजमिस्त्री, बढ़ई, इलेक्ट्रीशियन और मजदूरों के साथ काम करते थे। इससे हर क्षेत्र में आर्किटेक्ट्स और इंजीनियर्स को ज्यादा कुशल बनने में मदद मिली।

पद्मकुमार को अपने इस अनुभव का काफी फायदा अपने इको-फ्रेंडली घर को बनाने में हुआ। ‘गीत’ का निर्माण ईंटों और लकड़ी से गोल आकार में किया गया है। नींव में रिसायकल पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, वहीं पारंपरिक वॉशबेसिन के बजाय स्टील उरुली का उपयोग किया गया है। रसोई सिंक रिसायकल लकड़ी से बना है, फर्श मिट्टी और लकड़ी का उपयोग करके बनाया गया है और छत का फ्रेम लकड़ी व बांस की प्लाई, पुराने फ्लेक्स और बेकार टायर-ट्यूब से बना है।

इस इको-फ्रेंड्ली घर का एक और मुख्य आकर्षण यह है कि इस प्लॉट पर तीन प्राकृतिक चट्टानों के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है। एक चट्टान बेडरूम में है, जिससे उन्होंने एक खाट बनाई है, दूसरा कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल होने वाले बाथरूम में है और तीसरा लिविंग रूम में है और इसे उनके पोते के लिए कुर्सी, शेल्फ और खेलने की जगह में बदल दिया गया है।

कितना आया खर्च?

The highlight of this eco-friendly house is how the architect has retained three natural rocks found in the plot.
The highlight of this eco-friendly house is how the architect has retained three natural rocks found in the plot.

रिसायकल सामग्री के उपयोग के अलावा, ‘गीत’ में रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम और एक तालाब भी है, जो प्लॉट में गिरने वाले बारिश के पानी को एकत्र करता है। वह कहते हैं, “छत का पानी इकट्ठा करना बहुत आसान और आम है। लेकिन ग्राउंडवॉटर को रिचार्ज करने के लिए हमें ज़मीन में गिरने वाले पानी की एक-एक बूंद को इकट्ठा करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पानी बिना किसी रुकावट के वापस मिट्टी में मिल जाए।”

इस पर्यावरण के अनुकूल घर को बनाने में करीब 20 लाख रुपये का खर्च आया है। पद्मकुमार कहते हैं, “अगर आप सीमेंट का उपयोग करके घर बनाते हैं, तो यह राशि आसानी से 3-4 लाख रुपये कम हो सकती है। क्योंकि सीमेंट आसानी से उपलब्ध है। सीमेंट का इस्तेमाल नहीं करने से हमें ज्यादा पैसा और समय लगा, लेकिन हमें कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि आखिर में घर अच्छा बना।”

दोनों बड़े गर्व से बताते हैं कि यहां रहने के बाद, पिछले सात महीनों में उन्होंने केवल दो या तीन बार ही पंखा चलाया है। वह कहते हैं कि इस घर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह प्राकृतिक रूप से ठंडा रहता है।

मूल लेखः अनाघा आर मनोज

संपादनः अर्चना दुबे

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