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इतिहास के पन्नों से

History Pages | Motivational History | Inspirational History \ इतिहास के वे भुला दिए गए नायक, जिनकी कहानियां हर भारतवासी को ज़ुबानी याद होनी चाहिए!

चापेकर बंधू: इन भाइयों ने पुणे से शुरू की थी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की लड़ाई!

बाल गंगाधर तिलक द्वारा अपने अखबार ‘केसरी’ में इस्तेमाल की जाने वाली उत्तेजक भाषा से प्रभावित होकर इन्होंने रैंड के ख़िलाफ क़दम उठाने का फ़ैसला किया, क्योंकि उसने पुणे के कई परिवारों को अपमानित किया था।

पुणे के इस वकील का है गोवा की आज़ादी में बड़ा हाथ; पुर्तगाली जेल में बिताये थे 14 साल!

गोवा में पुर्तगाली शासन 1498 में शुरू हुआ था और करीब 450 साल तक चला। वास्को द गामा ने पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से अपनी यात्रा शुरू की।

लाल बहादुर शास्त्री : भारत के पहले ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’!

जब भी कहीं लाल बहादुर शास्त्री का नाम सामने आता है तो बहुत-से लोग इनका प्रसिद्ध नारा ‘जय जवान, जय किसान’ को याद करते हैं।

हिन्दी पत्रकारिता जगत को रौशन करने वाला पहला सूर्य, 'उदन्त मार्तण्ड'!

By निशा डागर

साल 1826 के फरवरी महीने में वकील युगल किशोर शुक्ल को उनके एक साथी मुन्नू ठाकुर के साथ 'हिंदी समाचार पत्र' निकालने का लाइसेंस मिल गया। और फिर 30 मई 1826 को 'उदन्त मार्तण्ड' समाचार पत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ या फिर कहना चाहिए कि औपचारिक रूप से हिंदी पत्रकारिता का उद्भव हुआ।

गामा पहलवान: कद कम बता कर जिसे किया टूर्नामेंट से बाहर, उसी ने जीता 'रुस्तम-ए-जहाँ' का ख़िताब!

By निशा डागर

ग़ुलाम मोहम्मद बख़्श उर्फ़ गामा पहलवान, जी हाँ, वही गामा पहलवान जिसने कुश्ती में न सिर्फ़ रुस्तम-ए-हिन्द बल्कि रुस्तम-ए-जहाँ का ख़िताब हासिल किया। वही गामा पहलवान जिसने दम पर आज भी भारत को कुश्ती में विश्व विजेता कहलाने का मुक़ाम हासिल है।

दुनिया के सबसे बड़े हीरों में गिना जाने वाला 'जैकब हीरा' देखना हो, तो यहाँ आयें!

By द बेटर इंडिया

कभी निज़ामों के परिवार की निजी संपत्ति रहे इन आभूषणों की रिज़र्व बैंक के तहखानों तक पहुंचने की कहानी भी बड़ी दिलचस्‍प है।

1971 : जब भुज की 300 महिलाओं ने अपनी जान ख़तरे में डाल, की थी वायुसेना की मदद!

8 दिसम्बर 1971 की रात को भारत- पाक युद्ध के दौरान, भुज में IAF के एयरस्ट्रिप पर, सबरे जेट विमान के एक दस्ते ने 14 से अधिक नापलम बम गिराए। जिसकी वजह से यह एयरस्ट्रिप खराब हो गयी। ऐसे में, इस एयरस्ट्रिप की भुज के माधापुर गाँव की 300 महिलायों ने मरम्मत कर वायुसेना की मदद की।

अर्जन सिंह : मात्र 19 वर्ष की आयु में बने थे भारतीय वायु सेना में पायलट, 31 साल में चलाये 60 से भी ज़्यादा एयरक्राफ्ट!

By मानबी कटोच

19 साल की छोटी सी उम्र में पायलट ऑफिसर के रूप में वे वायु सेना में दाखिल हुए थे। और 1965 के युद्ध में उन्होंने देश के पहले वायु सेनाध्यक्ष के रूप में भारतीय वायु सेना का नेतृत्व किया। उनके इस सफ़र में उन्होंने ऐसे-ऐसे कारनामे कर दिखाए थे, जिनके लिए वे सदियों तक याद किये जायेंगे!