कोरोना काल में जब थाली में दाल को भी तरस रहा था पूरा गांव, इन महिला किसानों ने छोटी सी जमीन पर किचन गार्डन लगा कर पूरे साल के लिए फल, सब्जियां और जड़ी बूटियों का इंतजाम किया और अपने पड़ोसियों की मदद भी की।
गुजरात के किसान अश्विन नारिया, पिछले 20 सालों से जैविक खेती में पंच संस्कारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसमें उन्होंने गौमूत्र, गाय का दूध, हल्दी जैसी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करके कम खर्च में बेहरतीन मुनाफ़ा कमाया है।
प्लास्टिक का कचरा, खासकर बोतलें पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा हैं। मुंबई में USB के दस छात्र इस कचरे से निपटने में जुटे हैं। प्लास्टिक की बोतलों को अपसाइकिल कर, वे ऐसे हाइड्रोपॉनिक प्लांटर बना रहे हैं जिसकी लागत काफी कम है और पानी भी ज्यादा खर्च नहीं होता।
2013 के उत्तराखंड आपदा की वजह से देहरादून की हिरेशा वर्मा के जीवन में भी एक बड़ा बदलाव आया। आपदा में बेसहारा हुई महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए, उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की और अपने साथ कई लोगों को ट्रेनिंग दी। आज उनकी कंपनी विदेश तक मशरूम पहुंचा रही है।
झारखंड के रहनेवाले, जीवनबोध एग्रोटेक के संस्थापक, प्रसेनजीत कुमार ने बोकारो में अपने बैकयार्ड में तटीय क्षेत्रों में उगने वाली शहतूत (noni cultivation) उगाने में कामयाबी हासिल की है।
कच्छ (गुजरात) के किसान हरिसिंह केसर आम की खेती करते हैं। सालभर अपने ग्राहकों तक आम पहुंचाने के लिए, वह इससे कई तरह के प्रोडक्ट्स, जैसे-सीलपैक मैंगो पल्प, 10 प्रकार के आम पापड़, मैंगो आइसक्रीम, मैंगो पेड़ा, मैंगो कुल्फी, जूस और मिल्कशेक आदि अपने खेत पर ही तैयार करते हैं।
अहमदाबाद के डॉ. दिनेश पटेल ने बीमारी के इलाज करने से ज्यादा जरूरी समझा, बीमारी को जड़ से मिटाना। इसी सोच के साथ, वह पिछले 30 सालों से प्रकृतिक खेती कर रहे हैं।