तेलंगाना के इंजीनियर दीपक रेड्डी ने एक ऐसी मल्टी हार्वेस्टिंग मशीन बनाई है, जो बंजर जमीन से पत्थरों और चट्टानों को खोदकर उन्हें बाहर निकाल फेंकती है। यह आलू, प्याज और अन्य जड़ों वाली सब्जियों की भी खुदाई कर सकती है।
टिहरी गढ़वाल के मैड तल्ला गांव में रहने वाले सुंदर लाल चमोली और उनकी पत्नी बिगुला चमोली पिछले 20 सालों से भी ज्यादा समय से पहाड़ों में जैविक तरीकों से खेती कर रहे हैं।
सतारा (महाराष्ट्र) के किसान, अशोक जाधव ने खरपतवार हटाने के लिए एक ऐसा किफायती डिवाइस बनाया है, जिसे चलाने के लिए न तो किसी तरह के ईंधन की जरुरत है और न ही ज्यादा रखरखाव की।
सामान्य सब्जियों के अलावा घर के एक कमरे में रहकर गुजरात की पुष्पा पटेल और पीनल पटेल मशरूम की खेती कर रही हैं। वे इससे खाखरा और आटा जैसे कई प्रोडक्ट्स तैयार करके बढ़िया मुनाफा भी कमा रही हैं।
सूरत के मांडवी तालुका के गोविंद वाघासिया, पिछले 35 साल से गन्ने की खेती कर रहे हैं। सालों पहले, उनके पिता अपनी फसल बेचने के लिए अच्छे भाव या बाजार पर निर्भर रहते थे। लेकिन आज वह अपने उत्पाद की कीमत खुद तय करते हैं और कई टन गुड़ बेचकर अच्छा मुनाफ़ा कमाते हैं।
भोपाल, मध्यप्रदेश के रहने वाले मिश्रीलाल राजपूत को, पिता की पारम्परिक खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यही कारण है कि वह, खेती में नए-नए प्रयोग करने लगे। इन प्रयोगों से न सिर्फ उनकी आय बढ़ी, बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरणा मिली।
हैदराबाद के सुनीथ रेड्डी ने अपने दोस्त शौर्य चंद्रा के साथ ‘बी फॉरेस्ट’ की शुरुआत की थी। उनकी यह पहल उन लोगों के लिए है, जो शहर की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के नजदीक रहकर जैविक खेती करना चाहते हैं।