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उत्तर प्रदेश: शिक्षक ने शुरू की पार्ट टाइम खेती, सालाना टर्नओवर हुआ 1 करोड़ रूपये

अमरेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश के एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक हैं। 60 एकड़ जमीन में वह केला, स्ट्रॉबेरी, मशरूम, शिमला मिर्च और तरबूज जैसे फल और सब्जियों की खेती भी करते हैं।

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उत्तर प्रदेश: शिक्षक ने शुरू की पार्ट टाइम खेती, सालाना टर्नओवर हुआ 1 करोड़ रूपये

पिछले एक दशक से अधिक समय से उत्तर प्रदेश के एक स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे अमरेंद्र सिंह को जब खेती करने की इच्छा हुई तो उन्होंने सबसे पहले खेती के गुर सीखे और फिर पारंपरिक खेती की जगह फल और सब्जी की खेती के क्षेत्र में कदम रख दिया। आज वह खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं और साथ में स्कूल की नौकरी भी कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के दौलतपुर गाँव के सरकारी स्कूल में शिक्षक अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, “स्कूल में मेरा सालाना वेतन 1.20 लाख रुपये है, लेकिन मैं खेती करके हर साल 30 लाख रुपये कमा रहा हूँ।”

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अमरेंद्र प्रताप सिंह

लखनऊ से एक घंटे की दूरी पर रहने वाले इस किसान ने न केवल खेती के कौशल में महारत हासिल है, बल्कि वह दूसरों को भी खेती के गुर सिखा रहे हैं।

अमरेंद्र कहते हैं, “मैं स्कूल में टीचर हूँ। अपने परिवार के साथ लखनऊ में रहता था। 2014 में स्कूल की छुट्टी के दौरान, मैंने अपने परिवार की 30 एकड़ जमीन में खेती में हाथ आजमाने का फैसला किया।”

खेती की शुरूआत

कुछ यूट्यूब वीडियो और ऑनलाइन ट्यूटोरियल से खेती के तरीके सीखने के बाद अमरेंद्र ने एक एकड़ जमीन में केले उगाने का फैसला किया।

“हमारे क्षेत्र में खेती के कार्य में बहुत सारी समस्याएं आती हैं। किसान आमतौर पर गन्ना, अनाज और गेहूँ उगाते हैं। लेकिन इन तीनों फसलों से ज्यादा कमाई नहीं हो पाती है। गन्ने से पैसे कमाने के लिए लगभग दो साल का इंतजार करना पड़ता है। अन्य फसलों से लंबे इंतजार के बाद केवल एक बार कमाई हो पाती है और इससे घर की आर्थिक स्थिति को सुधारना बहुत मुश्किल था। इसलिए मैंने केले उगाने के बारे में सोचा,”अमरेंद्र कहते हैं।

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अपने केले के बाग़ में अमरेंद्र

अमरेंद्र ने कई तरह की फसलों की खेती में हाथ आजमाने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “मैंने एक एकड़ जमीन में केले उगाने शुरू किए और धीरे-धीरे मुझे सफलता मिलने लगी। पिछले साल मुझे पता चला कि केले के साथ हल्दी, अदरक और फूलगोभी को अदल-बदल कर बोने से बेहतर उपज होती है। अदरक से तो बहुत मदद नहीं मिली लेकिन हल्दी की पैदावार काफी अच्छी हुई। हल्दी से हुई कमाई से केले की खेती में निवेश किए गए पैसे निकल आए। केले बेचने से जो पैसा बना वह पूरा का पूरा मुनाफा था।”

घाटे से मुनाफे तक का सफ़र

खेती के काम में सफलता मिलने के बाद अमरेंद्र दौलतपुर आ गए। अमरेंद्र कहते हैं, “बाद में मैंने तरबूज, खरबूज और आलू की खेती शुरू की। खेती के बेहतर तरीके सीखने के लिए मैं कई लोगों के खेतों में गया, बहुत से यूट्यूब वीडियो देखे और फिर स्ट्रॉबेरी, शिमला मिर्च और मशरूम उगाए।”

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अमरेंद्र के खेत में स्ट्रॉबेरी की बहार

पहली फसल से उन्हें काफी घाटा हुआ लेकिन बाद में अमरेंद्र ने घाटे को मुनाफे में बदल दिया।

वह कहते हैं, “सालों से मैंने खेती की कुछ इस तरह से योजना बनाई है कि एक फसल से निकले कचरे या अवशेषों का इस्तेमाल अगली फसल के लिए मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर और ऊपजाउ बनाने में करता हूँ। इस तरह से खेत से निकला कचरा कभी खेत से बाहर नहीं जाता है।”

अमरेंद्र अपने खेतों से अधिकतम पैदावार हासिल करने के लिए इंटरक्रॉपिंग टेक्निक का सहारा लेते हैं।

इन सालों में इस प्रगतिशील किसान ने 60 एकड़ भूमि में खेती बढ़ा दी है, जिसमें से 30 एकड़ उनकी खुद की जमीन है, 20 एकड़ जमीन लीज पर है और उन्होंने हाल ही में 10 एकड़ जमीन खरीदी है। इन खेतों में वह धनिया, लहसुन और मक्का की खेती करते हैं।

अमरेंद्र ने बताया, “30 एकड़ भूमि का इस्तेमाल वह सब्जियों और फलों को उगाने के लिए करते हैं, जबकि शेष आधी भूमि का इस्तेमाल गन्ना, गेहूँ और अनाज उगाने के लिए किया जाता है। कुल जमीन में वह एक साल में 1 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं और हर साल 30 लाख रुपये का मुनाफा कमाते हैं।”

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समय के साथ वह फ्लड इरिगेशन की जगह ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर से फसलों की सिंचाई करने लगे। मल्चिंग तकनीक मिट्टी की नमी को बनाए रखने में मदद करती है। अमरेंद्र कहते हैं कि खेती की माँग के अनुसार वह अक्सर अपने स्कूल से बिना वेतन के छुट्टी लेते हैं।

“कई लोगों और सहकर्मियों ने कहा कि मेरे लिए खेती का फैसला खराब साबित हो सकता है। मेरे रिश्तेदारों ने कहा कि लोग खेती छोड़कर नौकरी से बेहतर आय की तलाश करते हैं और आप हैं कि विपरित रास्ते पर जा रहे हैं, लेकिन मैं अपना काम करता रहा," अमरेंद्र मुस्कुराते हुए कहते हैं।

खेती में सफलता पाने में दूसरों की मदद करना

अमरेंद्र की सफलता को देखकर अपने पारंपरिक खेती के तरीकों को बदलने के लिए 350 किसान उनके साथ जुड़े हैं। उनके बचपन के दोस्त और किसान नरेंद्र शुक्ला ऐसे ही एक किसान हैं जिन्होंने अमरेंद्र से खेती के गुर सीखे हैं।

“अमरेंद्र और मैंने एक साथ पढ़ाई की। उनकी सफलता को देखकर मैं भी अलग तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित हुआ। मैंने 2015 में एक एकड़ जमीन में केले उगाने का फैसला किया और सभी तकनीकों को सीखा।”

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अमरेंद्र बताते हैं कि उन्होंने अधिक पैसे बनाने के लिए सब्जियां भी उगाईं।

“यह विधि बहुत प्रभावी है क्योंकि इसका उत्पादन हर 60 दिनों में प्राप्त हो जाता है। इससे एक स्थायी आमदनी हो जाती है और इन पैसों को दूसरी फसल की खेती में निवेश करके मुनाफा कमाया जा सकता है”, वह कहते हैं।

अमरेंद्र कहते हैं कि यदि किसान को फसल की उचित कीमत नहीं मिलती है तो काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

इसके बारे में वह बताते हैं, “मुझे विश्वास था कि अधिक मुनाफा कमाने के लिए जोखिम भी ज्यादा उठाना पड़ेगा। फसल को बाजार में लाना अभी भी काफी थका देने वाला काम है। बाजार लखनऊ में, 70 किमी दूर है और हर बार इतनी दूरी तय करने के लिए पेट्रोल पर 200 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। समस्या हर किसान के साथ है। मैं इन बाजारों में बिचौलियों को कम करना चाहता हूँ और सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचना चाहता हूँ। हम इस दिशा में काम करने की योजना बना रहे हैं।

शिक्षक से किसान बने अमरेंद्र का कहना है कि उन्होंने अभी भी शिक्षक की नौकरी छोड़ने का फैसला नहीं किया है।

“बेशक मैं इस पर विचार कर रहा हूँ। मैंने फूड प्रोसेसिंग और फलों का रस बनाने के लिए लाइसेंस ले लिया है। एक बार इसे शुरू करने के बाद मैं शिक्षक की नौकरी छोड़ने के बारे में आराम से सोच सकता हूँ।”

शिक्षण की दुनिया से किसानी में प्रवेश कर रहे अमरेंद्र के जज्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है।

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मूल लेख - HIMANSHU NITNAWARE

संपादन - जी. एन. झा और मानबी कटोच

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