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हाल ही में, मैं बिहार से एक स्टार्टअप के बारे में जानकारी हासिल कर रहा था जो किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए काम करता है। दिलचस्प बात यह है कि ‘एग्रीफीडर’ नामक इस स्टार्टअप के सह-संस्थापक रमन कुमार के साथ बातचीत के दौरान, मुझे एक तरह के हर्बल चाय के बारे में पता चला जो वह किसानों के साथ मिलकर बेच रहे थे, वह भी तब जब लॉकडाउन के कारण व्यवसाय पर काफी प्रभाव पड़ा था।
उन्होंने हमें बताया कि वह चाय से मिलने वाले आय का दो-तिहाई हिस्सा सीधे किसानों को सौंप देते हैं।
रमन कहते हैं, “हम 50 ग्राम चाय के पैकेट के लिए 120 रुपये लेते हैं। लेकिन इसमें से शायद ही कोई पैसा हमारे पास बचता है।”
इसके बारे में रमन बताते हैं कि 120 रुपये में से, 13 रुपये पैकेजिंग में लगते हैं और साथ ही कंपनी द्वारा अन्य पैकेजिंग और कूरियर शुल्क लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पैकेजिंग और पोस्ट के माध्यम से उत्पाद को कूरियर करने में लगभग 80 रुपये का खर्च आता है।
रमन कहते हैं कि प्रत्येक बिक्री पर लगभग 30 रुपये लाभ के रूप में आता है जिसमें से 20 रुपये किसानों को दी जाती है और 10 रुपये कंपनी की ऑपरेशनल लागतों को पूरा करने के लिए रखा जाता है।
एक सवाल यह है कि इन तीन महीनों के दौरान इस नए स्टार्टअप ने कितना पैसा कमाया है? जवाब है, 2.5 लाख रुपये।
आईए जानते हैं, यह कैसे हुआ।
लॉकडाउन के लिए मसाला
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एग्रीफीडर तीन साल पुराना स्टार्टअप है जो किसानों को वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है। यह कंपनी किसानों को पारंपरिक खेती की बजाय अन्य आकर्षक विकल्पों को अपनाने में मदद करने की दिशा में भी काम करती है ताकि वह बेहतर जीवन जी पाएं। इस कंपनी को दो भाई मिलकर चलाते हैं – रौनक और रमन। रौनक ने कृषि के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी जबकि रमन मैनेजमेंट ग्रेजुएट हैं।
रमन कहते हैं, “यहाँ के किसान पूरी तरह से गेहूँ, मक्का जैसी फसलों की खेती पर निर्भर हैं। ये फसल 2,500 रुपये प्रति क्विंटल या 14 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकती है। लेकिन, बाजार में इसकी कीमत 19 रुपये किलो है, और गेहूँ के आटा की कीमत 40 रुपये किलो है। हालांकि,किसान अपनी उपज के लिए ज़्यादा निवेश करते हैं लेकिन इन्हें सबसे कम मुनाफा मिलता है।”
रमन और रौनक को एक ऐसा तरीका चाहिए था जिससे लॉकडाउन के दौरान किसान जल्दी पैसे कमा सकें जिसमें उन्हें कम निवेश करना हो और रिटर्न ज़्यादा हो।
दोनों भाईयों ने एक प्लान बनाया। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वह अपनी जमीन के एक छोटे से हिस्से में मसाले उगाएँ। मसाले ये भाई हर्बल चाय बनाने के लिए उपयोग करेंगे। मसाले उगाने के लिए ज़्यादा जगह और बहुत ज़्यादा मेहनत की भी ज़रुरत भी नहीं होती है। साथ ही ये मसाले काफी जल्दी बढ़ते भी हैं।
रमन बताते हैं कि किसानों को दिखाने के लिए उन्होंने अपनी ज़मीन पर लेमनग्रास उगाया। उन्होंने बताया, “हमने लेमनग्रास के साथ एक चाय का फॉर्मूला तैयार किया और बिहार के भागलपुर जिला के डबौली गाँव में ग्राहकों की प्रतिक्रिया का परीक्षण किया।”
चाय के साथ व्यापार बढ़ाया
स्थानीय लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया के साथ, सात किसान व्यवसाय में आने के लिए सहमत हुए। रमन बताते हैं, “हमने किसानों को अपने खेत के आधे एकड़ के हिस्से में तुलसी और लेमनग्रास उगाने के लिए राजी किया। पौधों को कम रखरखाव और न्यूनतम सिंचाई की आवश्यकता होती है। साथ ही कीटनाशकों की भी कोई ज़रुरत नहीं होती है।”
दो भाईयों में से बड़े रौनक कुमार ने कहा कि किसान फसल को सुखाते हैं और फिर वह उनसे 100 रुपये किलो खरीदते हैं। वह कहते हैं “एक महीने से भी कम समय में, एक किसान 2,500 रुपये बनाता है। यह पैसा तत्काल खर्चों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, किसान छोटे खर्चों के लिए कर्ज लेने से बच जाता है।”
रमन बताते हैं कि पहल शुरू करने पर कई ग्रामीणों ने उनकी मंशा पर सवाल उठाया। किसानों ने सोचा कि औषधीय पौधों के सुझाव के पीछे कोई उनका अपना स्वार्थ हैं। गाँव वालों ने यह भी सोचा कि ये दोनों भाई कृषि में बिना ज्ञान के ही ज़्यादा स्मार्ट बन रहे हैं। रमन कहते हैं," लेकिन हालिया सफलता के साथ, कई किसानों ने हम पर विश्वास करना शुरू कर दिया है और हमारी गतिविधियों के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं।"
गाँव के एक किसान मुनमुन तिवारी ने कहा, “क्षेत्र में लेमनग्रास उगाने की कोई अवधारणा नहीं थी। मैंने इसे कुछ अन्य लोगों के साथ एक एकड़ भूमि में आजमाया।"
मुनमुन ने कहा कि उन्होंने दो महीने में लेमनग्रास की खेती के लिए 60,000 रूपये खर्च किए। वह बताते हैं, “मैंने खर्चों को छोड़कर 30,000 रुपये का लाभ कमाया। इसलिए अधिक किसान इससे प्रेरित महसूस कर रहे हैं।” लगभग 30 और किसानों ने अब एग्रीफीडर कंपनी के साथ मसालों को उगाने पर सहमति जताई है।
पिछले तीन महीनों में, कंपनी ने 4,000 से अधिक चाय के पैकेट बेचे हैं और इस समय में 2.5 लाख रुपये की कमाई की है। एग्रीफीडर ने जुलाई में 200 पैकेट बेचे, अगस्त में 1,700 और सितंबर में 3,000 से अधिक चाय के पैकेट बेचे हैं।
रौनक बताते हैं कि चाय को काली मिर्च, अदरक, मोरिंगा की पत्तियों और दालचीनी के साथ मिलाया जाता है। वह कहते हैं, “हम इसे दो स्वादों में बेच रहे हैं - अदरक और इलायची। दो मसालों में अंतर है, जबकि बाकी सामग्री दोनों चायों में आम हैं।”
रौनक कहते हैं, "लेमनग्रास त्वचा की बीमारियों के लिए अच्छा है, मोरिंगा रक्तचाप का संतुलन बनाने में मदद करता है जबकि दालचीनी और काली मिर्च जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है, जबकि तुलसी को प्रतिरक्षा यानी इम्यूनीटि बूस्टर के रूप में जाना जाता है।"
उन्होंने आगे बताया कि यह मिश्रण बाज़ार में उपलब्ध दूसरों मिश्रणों की तुलना में बहुत हल्का है।
रौनक ने भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हुए कहा, कुछ सुपरमार्केट के साथ सहयोग करने की कोशिश में है ताकि यह उत्पाद वहाँ भी बेचा जा सके।
स्टोर में बेचने की बड़ी योजना
रमन बताते हैं, “बिहार के किसान कॉर्पोरेट खेती या मशरूम, बेबी कॉर्न और अन्य जैसी विदेशी सब्जियां उगाने के बारे में नहीं जानते हैं जिनकी बाज़ार में कीमत ज़्यादा होती है।”
रमन कहते हैं, “अब एक सवाल कि बिहार में मशरूम कौन खाता है? इसको समझाना हमारे लिए ठीक वैसी ही चुनौती है जैसा कि हमने किसानों को मसाला उगाने के लिए मनाने में अनुभव किया है। हम अभी भी चाय के लिए काली मिर्च, दालचीनी और अदरक को आउटसोर्स करते हैं।”
वह कहते हैं, “हम मशरूम उगाने, व्यंजन बनाने और इन किसानों को सब्जियों से परिचित करने की योजना बना रहे हैं। हमारी योजना में बाजार में बिकने से पहले अनाज और सब्जियों को स्टोर करने की सुविधा देना भी शामिल है।”
रमन ने जोर देकर कहा कि वह सुविधा का उपयोग करने के लिए किसानों से कोई शुल्क नहीं लेंगे। वह कहते हैं, "हम एग्रीप्रेन्योर बनाना चाहते हैं और यह 'मेड इन बिहार' चाय इस दिशा में पहला कदम है।"
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मूल लेख - HIMANSHU NITNAWARE
संपादन - जी. एन झा