/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2020/11/Untitled-design-56.jpg)
यह कहानी पंजाब के एक ऐसे किसान परिवार की है, जिसने मशरूम की खेती में किसानों के लिए मिसाल पेश किया है। इस कहानी का सबसे रोचक पक्ष यह है कि माँ ने सबसे पहले मशरूम की खेती शुरू की और फिर उनके चारों बेटे ने इस फसल को बाजार तक पहुँचाकर अपनी उपज को ब्रांड बना दिया।
पंजाब के अमृतसर जिला के धरदेव गाँव के रहने वाले मंदीप सिंह पूरे इलाके में मशरूम उत्पादन के लिए पहचाने जाते हैं। मंदीप अपने फर्म “रंधावा मशरूम” के तहत बड़े पैमाने पर मशरूम का कारोबार करने के साथ ही, वह इसे प्रोसेस कर अचार, भूजिया, बिस्कुट आदि जैसी कई खाद्य सामग्रियों भी बनाते हैं, जिससे उन्हें हर साल करोड़ों की कमाई होती है।
32 वर्षीय मंदीप ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमारे यहाँ पिछले 30 वर्षों से मशरूम की खेती हो रही है। इसे मेरी माँ ने साल 1989 में शुरू किया था। अब हम चार भाई मिलकर इसे संभालते हैं।”
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/11/Punjab-Farmer-The-Better-India.jpg)
वह आगे बताते हैं, “मशरूम उत्पादन से लेकर इसे बाजार में बेचने तक के लिए, हर भाई की भूमिका अलग-अलग है। हमारे बड़े भाई मंजीत सिंह प्रोडक्शन का काम संभालते हैं, तो हरप्रीत सिंह स्पॉन बनाने और प्रोसेसिंग का। मेरे पास मार्केटिंग, बैंकिंग, मीडिया, आदि के कार्यों को संभालने की जिम्मेदारी है। हमारे एक और भाई आस्ट्रेलिया में खेती करते हैं और जब भी यहाँ आते हैं हमारा भरपूर हाथ बँटाते हैं। जबकि, सभी कार्यों की बागडोर हमारी माँ संभालती हैं।”
फिलहाल, मंदीप के पास हर दिन करीब 8 क्विंटल मशरूम का उत्पादन होता है, जिसमें बटन मशरूम, ऑयस्टर मशरूम (गुलाबी, सफेद, पीला, ब्राउन), मिल्की मशरूम, आदि जैसी 12 से अधिक किस्में हैं। इसके साथ ही, वह इससे अचार, भूजिया, बिस्कुट आदि जैसी कई चीजों को भी बनाते हैं, जिससे उनका वार्षिक टर्न ओवर 3.5 करोड़ रुपए से अधिक है।
कैसे हुई थी शुरूआत
मंदीप बताते हैं, “मेरे पिता जी पंजाब पुलिस में नौकरी करते थे और माँ स्वेटर बुनने का काम करती थी। लेकिन, धीरे-धीरे बाजार में रेडीमेड स्वेटर की माँग बढ़ने लगी, जिस वजह से माँ ने स्वेटर बनाना छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने घर के आँगन में मशरूम की खेती करने का फैसला किया। लेकिन, उस समय मशरूम का ज्यादा चलन नहीं था, जिस वजह से इसे बाजार में बेचने में काफी दिक्कत होती थी।”
वह बताते हैं, “मुझे याद है कि जब मेरे पिता जी पहली बार दुकान में मशरूम बेचने गए तो दुकानदार ने सस्ते दर पर मशरूम खरीदने के लिए उन्हें यहाँ तक कह दिया कि आपके मशरूम को खाकर शहर के लोग बीमार हो रहे हैं, लेकिन मेरी माँ ने हिम्मत नहीं हारी और हम सभी भाईयों को इसे सीधे ग्राहकों को बेचने की जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद हम साइकिल से सीधे ग्राहकों को मशरूम बेचने के लिए स्टेट हाइवे के पास जाने लगे।”
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/11/Punjab-Farmer-tbi1.jpg)
धीरे-धीरे रंधावा मशरूम की पूरे क्षेत्र में पैठ जम गई लेकिन साल 2001 में फसल में वेट बबल नाम की बीमारी लग गई और पूरा फसल बर्बाद हो गया। इसके बाद कृषि वैज्ञानिकों ने यहाँ अगले 4-5 वर्षों तक मशरूम की खेती को न करने की सलाह दी और इसे कहीं और शिफ्ट करने के लिए कहा।
मंदीप बताते हैं, “यह हमारे लिए कठिन समय था। लेकिन, हम रुक नहीं सकते थे। इसलिए हमने घर से 2 किलोमीटर दूर बटाला-अमृतसर स्टेट हाइवे के पास अपनी 4 एकड़ जमीन पर मशरूम को उगाना शुरू किया। यहाँ पहली बार में ही काफी अच्छी ऊपज हुई, लेकिन बाजार में अच्छी दर नहीं मिल रही थी, इसलिए हमने अपने आउटलेट को शुरू किया, ताकि अधिकतम लाभ सुनिश्चित हो।”
अत्याधुनिक तकनीकों से मशरूम की खेती
मंदीप बताते हैं, “पहले हम हट सिस्टम के जरिए मशरूम का उत्पादन करते थे, जिस वजह से सिर्फ सर्दियों में ही यह संभव हो पाता था। लेकिन, अब हम इंडोर कम्पोस्टिंग मेथड के जरिए एसी रूम में मशरूम की खेती करते हैं। इसमें सभी कार्यों को मशीनों के जरिए किया जाता है। इस तरह, इस तकनीक से सालों भर मशरूम की खेती संभव है और इससे उत्पादन भी जल्दी होता है। वहीं, मशरूम के बीजों को तैयार करने के लिए टिश्यू कल्चर तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।”
बता दें कि फिलहाल मंदीप से पास 12 मशरूम ग्रोइंग रूम हैं, जहाँ हर मशरूम की बुआई की जाती है। इसके अलावा, उन्हें अपने मशरूम को बेचने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती है और उन्होंने अपने फार्म पर ही, रिटेल और होलसेल मशरूम बेचने की सुविधा को विकसित कर लिया है।
किस विचार के साथ करते हैं कारोबार
मंदीप बताते हैं, “हम किसान हैं और अपने उत्पादों की कीमत हम खुद तय करते हैं, कोई व्यापारी या बिचौलिया नहीं। यदि उन्हें दाम सही लगा तो वह खरीदते हैं, नहीं तो हम इसे अपने गाँव में लगे प्रोसेसिंग यूनिट में भेज देते हैं। जिससे हमारे उत्पादों का मूल्य वर्धन होता है।”
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/11/Punjab-Farmer-The-Better-India-1.jpg)
मंदीप अपने प्रोसेसिंग यूनिट में सिर्फ अचार, बड़ियां, सूप पाउडर, आदि बनाते हैं, जबकि केनिंग का काम वह किसी थर्ड पार्टी को सौंप देते हैं। आज मंदीप के उत्पादों की माँग अमृतसर के अलावा, जालंधर, गुरदासपुर, बटाला, पठानकोट जैसे कई शहरों में है। इसके अलावा उनका उत्पाद थर्ड पार्टी के जरिए दुबई भी जाता है।
मंदीप किसानों को मशरूम कम्पोस्ट भी बेचते हैं, जिससे किसान बिना ज्यादा परेशानी के मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं।
महिलाओं को रोजगार
मंदीप बताते हैं, “मेरे पास फिलहाल 100 से अधिक लोग काम करते हैं, जिसमें 98 फीसदी महिलाएँ हैं। ऐसा इसलिए कि मशरूम की खेती काफी चुनौतीपूर्ण है और इसमें छोटी-छोटी बारीकियों का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है और हमारा मानना है कि महिलाओं से अच्छा यह काम कोई नहीं कर सकता है। यही कारण है कि हम सिर्फ महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं। हमारे कामगारों के देखभाल की जिम्मेदारी हमारी 66 वर्षीय माँ ही निभाती हैं।”
मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार
मंदीप को मशरूम खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने और सेल्फ मार्केटिंग के लिए साल 2017 में आईसीएआर द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
क्या है भविष्य की योजना
मंदीप बताते हैं, “अगले महीने से हम ग्रो ऑन डिमांड के तहत पंजाब के बड़े शहरों में मशरूम की होम डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध कर रहे हैं। इससे ग्राहकों को ताजा मशरूम कम दर पर मिल जाएगा और बिचौलिया नहीं होने के कारण हमें भी अधिक कमाई होगी।”
किसानों से अपील
मंदीप किसानों से अपील करते हैं, “आज देश में किसानों की स्थिति काफी बदहाल है। इससे निपटने के लिए उन्हें परंपरागत खेती के साथ ही, कुछ ऐसे उन्नत फसलों की खेती करनी होगी, जिससे उन्हें नियमित आमदनी होती रहे। ऐसे में मशरुम की खेती एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।”
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/11/Punjab-Farmer.jpg)
इसके साथ ही, मंदीप अंत में कहते हैं, “आज देश की आधी आबादी खेती पर निर्भर है और किसी भी हाल में इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। हमें स्कूली छात्रों को कृषि कार्यों के लिए शुरू से ही तैयार करना होगा, जिससे आने वाली पीढ़ी का खेती के प्रति एक रूझान पैदा हो और वह इसे एक कैरियर के तौर पर लें सकें।”
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप मंदीप सिंह से फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन - जी. एन झा
यह भी पढ़ें - हरियाणा: अपने घर में मिलिट्री मशरूम की खेती कर लाखों कमाता है यह किसान