आज उत्तराखंड में खेती-किसानी के क्षेत्र में दिव्या एक जाना-माना नाम हैं। लोग उन्हें ‘मशरूम गर्ल’ के नाम से जानते हैं। साल 2016 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
मिलिए टिहरी गढ़वाल के एक छोटे से गांव भैंसकोटी में रहनेवाले कुलदीप बिष्ट और उनके मित्र प्रमोद जुयाल से, जो कभी पढ़ाई और काम के लिए शहर चले गए थे। लेकिन आज गांव में रहकर ही मशरूम की खेती कर रहे हैं और इससे लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं।
कोटा के 21 वर्षीय यशराज ने अपने साथी राहुल मीणा की मदद से बिना मिट्टी, भूसे और बीज के जरिये हैंगिंग फ्रेश Oyester Mushroom की खेती कर, 45 दिनों में फसल तैयार कर अच्छी कमाई कर रहे हैं।
बिहार के दरभंगा जिला के बलभद्रपुर गांव में रहनेवाली पुष्पा झा ने साल 2010 में मशरूम की खेती शुरू की थी। शुरुआत में उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन आज हर दिन हजारों की कमाई हो रही है। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!
सामान्य सब्जियों के अलावा घर के एक कमरे में रहकर गुजरात की पुष्पा पटेल और पीनल पटेल मशरूम की खेती कर रही हैं। वे इससे खाखरा और आटा जैसे कई प्रोडक्ट्स तैयार करके बढ़िया मुनाफा भी कमा रही हैं।
डॉ. पूजा दुबे पाण्डेय एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट हैं और इंदौर में अपनी कंपनी, 'Biotech Era Transforming India' (BETi) के जरिए मशरूम पर काम करने के साथ-साथ, पराली से इको फ्रेंडली पैकजिंग भी बना रही हैं।
2013 के उत्तराखंड आपदा की वजह से देहरादून की हिरेशा वर्मा के जीवन में भी एक बड़ा बदलाव आया। आपदा में बेसहारा हुई महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए, उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की और अपने साथ कई लोगों को ट्रेनिंग दी। आज उनकी कंपनी विदेश तक मशरूम पहुंचा रही है।
COVID-19 महामारी के कारण, उत्तराखंड के सतिंदर रावत की नौकरी जाने के बाद, उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर एक मशरूम व्यवसाय शुरू किया, जिससे आज वे लाखों कमा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में जौनपुर के रहनेवाले, 62 वर्षीय रामचंद्र दूबे पहले ऑटो चलाया करते थे, लेकिन पिछले चार सालों से वह किसानों से मशरूम खरीदकर उनसे खाने की चीज़ें बनाते हैं और लाखों का मुनाफा हैं।