आज के समय में एक ओर जहां लोग गांवों को छोड़ शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं। पैसे कमाने की ज़द में लोग अपने घर का सुकून, अपनों का साथ और संतुलित जीवन छोड़कर दौड़ती-भागती, असंतुलित जिंदगी अपना रहे हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने शहर की अच्छी खासी नौकरी छोड़ खेती को अपना लिया और कुछ पारंपरिक किसानों ने नए-नए तरीकों से खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमाया। ऐसे ही 10 किसानों (Top 10 farmers) की कहानियां हम आपके के लिए लाए हैं।
देश में आज भी एक बड़ा तबका ऐसा है, जो खेती को गरीब और कम पढ़ें-लिखे लोगों का काम मानता है। ऐसे में हमारी कोशिश है कि हम अपनी कहानियों के ज़रिये लोगों की इस सोच को बदल सकें। आपको हमारी वेबसाइट पर देश के हर एक कोने से ऐसे किसानों की कहानियाँ मिल जाएंगी, जो शिक्षा, प्रशिक्षण, जानकारी, संपन्नता, हौसले और दृंढ़ संकल्प से आज ना सिर्फ सुखी जीवन जी रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी खेती से जुड़ी जानकारियां देकर संपन्न बना रहे हैं।
अब जब साल 2021 अपने अंतिम पड़ाव पर है, तो हम आपके लिए इस साल की किसानों से जुड़ी वे कहानियां लेकर आए हैं, जिन्हें आपने सबसे ज्यादा पढ़ा (Top 10 farmers) और सराहा है। हमें उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी आप हमसे यूँ ही जुड़े रहेंगे।
1. सुमेर सिंह, हरियाणा

हरियाणा में भिवानी के ढाणी माहू के रहनेवाले प्रगतिशील किसान सुमेर सिंह (Among Top 10 farmers) ने 1999 से खेती शुरू की थी। अन्य किसानों की तरह सुमेर सिंह भी पहले खेतों में रासायनिक खाद आदि का इस्तेमाल करते थे। लेकिन पिछले छह सालों से जैविक तरीकों से खेती कर, वह आज न सिर्फ खुद अच्छा खा और कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
सुमेर सिंह अपनी 14 एकड़ जमीन में जैविक तरीके से गेहूं, चना, दलहन और सरसों की खेती कर रहे हैं। उन्होंने जैविक मल्चिंग से अपनी एक एकड़ जमीन पर प्याज की खेती शुरू की। साथ ही उन्होंने प्याज को स्टोर करने का अनोखा और किफायती तरीका भी निकाला। आमतौर पर जब प्याज को बोरियों में भरकर रखा जाता है, तो बहुत-से प्याज नीचे दबने और गर्मी के कारण ख़राब हो जाते हैं।
अगर एक प्याज भी बोरी में खराब हो जाए, तो दूसरे प्याज भी खराब होने लगते हैं। लेकिन सुमेर सिंह ने जो तरीका अपनाया, उसमें प्याज के खराब होने की संभावना न के बराबर है। अगर कोई प्याज खराब हो भी जाता है, तो आपको पता चल जाएगा और आप इसे आराम से बाहर निकाल सकते हैं। इस नए प्रयोग से सुमेर, घाटा कम और ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं।
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2. संजीव सिंह, पंजाब

पंजाब के टांडा गाँव निवासी 54 वर्षीय संजीव सिंह (Among Top 10 farmers) साल 1992 से मशरूम उगा (mushroom cultivation) रहे हैं और इलाके के लोग उन्हें ‘मशरूम किंग’ कहते हैं। 25 साल की उम्र में ही उन्होंने सामान्य खेती के साथ-साथ मशरूम उगाना भी शुरू कर दिया था और आज देशभर में उन्हें अपने काम के लिए जाना जाता है।
जब संजीव ने मशरूम उगाना शुरू किया, तब उन दिनों उनके आसपास कोई भी इसकी खेती (mushroom cultivation) नहीं कर रहा था। उस समय मशरूम के बारे में लोगों में ना तो उतनी जागरूकता थी और ना ही स्थानीय तौर पर, मशरूम के बीज मिलते थे। इसके लिए उन्हें दिल्ली जाना पड़ता था।
साल 2008 में, उन्होंने मशरूम के बीज बनाने के लिए, एक प्रयोगशाला भी बना ली और बीज बनाकर बेचने लगे। आज संजीव का मशरूम उत्पादन प्रतिदिन सात क्विंटल तक है। उनके बीज और अन्य उत्पाद जम्मू, जालंधर, हरियाणा, हिमाचल और अन्य राज्यों में भी जाते हैं। फिलहाल, संजीव की सालाना कमाई लगभग 1.25 करोड़ रुपये है। साल 2015 में, उन्हें राज्य सरकार द्वारा उनकी प्रगतिशील खेती के तरीकों के लिए सम्मानित किया गया था।
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3. श्री किशन सुमन (राजस्थान), संकल्प सिंह परिहार (मध्य प्रदेश)

राजस्थान के किसान श्री किशन सुमन और मध्य प्रदेश के किसान संकल्प सिंह परिहार (Among Top 10 farmers) , दुनिया के सबसे महंगे आम उगा रहे हैं। आम की यह किस्म 2.7 लाख रुपये प्रति किलो तक बिकती है। श्री किशन के पास 2 एकड़ ज़मीन है। उन्हें यूट्यूब से आम की इस किस्म के बारे में पता चला और वह इससे काफी प्रभावित हुए।
उन्होंने फल के व्यावसायिक मूल्य के साथ-साथ, भारतीय मौसम की स्थिति के बारे में अपनी समझ बढ़ाने के लिए, अपने दोस्तों के साथ चर्चा की और फिर इसके पौधे लेने और विदेशी किस्म के फलों से पैसा कमाने के बारे में सोचा। साल 2018 में, उनके दोस्त ने उन्हें इस आम के तीन पौधे दिए, जो उन्होंने थाईलैंड से मंगवाए थे। तब से, किशन इन पौधों की देखभाल कर रहे हैं और उन्हें स्वस्थ रख रहे हैं।
वहीं संकल्प सिंह परिहार ने साल 2016 में आम की इस किस्म को उगाना शुरू किया और अब उनके पेड़ फल भी देना शुरू कर चुके हैं। संकल्प को इस अनोखे आम का पौधा एक यात्रा के दौरान मिला था।
अपने देश में आम की ढेर सारी किस्में पाई जाती है। इसके बारे में आप यहाँ देख सकते हैं।
4. जितेंद्र चौधरी, उत्तर प्रदेश

गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के मुरादनगर में खुरमपुर गाँव के रहनेवाले जितेंद्र चौधरी (Among Top 10 farmers) अपने घर में ही व्यावसायिक स्तर पर मोती उगा (Pearl Farming) रहे हैं। कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर्स करने वाले जितेंद्र, एक किसान परिवार से संबंध रखते हैं। कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने मोती पालन की शुरुआत की। साल 2009 में उन्होंने 20 हजार रुपये के निवेश के साथ मोती पालन शुरू किया।
जितेंद्र ने कुछ ऑनलाइन शोध किए और फिर इस प्रकिया को अच्छी तरह से समझने के लिए, ओडिशा के ‘सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर’ (CIFA) में एक कोर्स के लिए पंजीकरण किया। मोती पालन करने में जितेंद्र को 95% तक सफलता मिली है और वह आज इससे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।
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5. जाकिर मुल्ला व शमशाद जाकिर हुसैन मुल्ला, गुजरात

गुजरात के नवसारी में रहनेवाले किसान, जाकिर मुल्ला और उनकी पत्नी शमशाद जाकिर हुसैन मुल्ला (Among Top 10 farmers), गुलाब से जैविक तरीकों से गुलकंद, गुलाबजल और चेहरे पर लगाने के लिए ‘फेस पैक’ बनाकर प्रतिमाह 25 हजार रुपये से ज्यादा की कमाई कर रहे हैं।
जाकिर और शमशाद ने 1000 देसी किस्म के गुलाब के पौधे खरीदकर, उसे अपनी जमीन पर उगाने से शुरुआत की थी। आज वह अपने गुलकंद को ‘जैविक शमा गुलकंद ब्रांड’ के नाम से पैक करते हैं और कृषि विज्ञान केंद्र पहुँचाते हैं। उनके गुलकंद 400 रूपये प्रतिकिलो के हिसाब से बिकते हैं।
उन्होंने गुलाब के पौधों के बीच बची खाली जगह में एलोवेरा और अन्य औषधीय पौधे भी लगाए हैं। आगे, उनकी योजना बालों के लिए प्राकृतिक तेल बनाने की है।
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6. हरिसिंह जाडेजा, गुजरात

कच्छ के हरिसिंह जाडेजा (Among Top 10 farmers), जैविक तकनीक से आम की खेती करते हैं। साथ ही आम से, बिना किसी केमिकल के कई प्रोडक्ट्स भी तैयार करते हैं। वह सीलपैक मैंगो पल्प (mango pulp), 10 प्रकार के आम पापड़, मैंगो आइसक्रीम, मैंगो पेड़ा, मैंगो कुल्फी, जूस और मिल्कशेक जैसे कई आम के प्रोडक्ट्स बनाते हैं।
गांधीधाम निवासी, हरिसिंह के पास कोटका (रोहा) में लगभग 13 एकड़ खेत हैं, जिसमें वह पिछले चार सालों से केसर आम, देसी आम, नारियल, सीताफल, बिजौरा, चीकू, मौसंबी वगैरह की खेती करते आ रहे हैं। वह खेती में किसी तरह के रसायन का उपयोग नहीं करते। वह अदरक, काली मिर्च, इलाइची, गुड़, शक्कर, सहित 10 तरह के फ्लेवर्स वाले आम पापड़ बनाते हैं।
तक़रीबन दो साल तक कई प्रयोगों के बाद, उन्होंने इन प्रोडक्ट्स को बनाना शुरू किया और उन्हें इसमें सफलता भी मिली। वह अपनी वेबसाइट बनाने पर भी काम कर रहे हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा जा सके। हरिसिंह को प्रोडक्ट प्रॉसेसिंग और उसे बेचने के लिए सरकारी मान्यता भी मिली है। गुजरात सरकार की ओर से उन्हें प्रगतिशील किसान का ख़िताब मिल चुका है। वहीं, कई और संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित किया है।
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7. जयंती प्रधान, ओडिशा

ओडिशा में बारगढ़ जिले के गोड़भगा में रहनेवाली 38 वर्षीया जयंती प्रधान (Among Top 10 farmers) एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने धान और गेहूं की सामान्य खेती छोड़, ‘एकीकृत खेती’ के मॉडल को अपनाया है, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। इलाके में उनके खेतों को ‘गोपाल बायोटेक एग्रो फार्म’ के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम की खेती और उनके बीज तैयार करने की ट्रेनिंग ली और साल 2003 में इसकी खेती शुरू कर दी।उनके इलाके में पानी की अच्छी उपलब्धता है, इसलिए वहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है और खेतों में बची पराली को किसान जला देते हैं, जिस वजह से बहुत प्रदूषण होता है। इसलिए जब उन्होंने मशरूम उगाने शुरू किए, तो इन्हीं पुआलों का इस्तेमाल किया।
जयंती के पति बीरेंद्र प्रधान एक सरकारी नौकरी करते थे। लेकिन, साल 2013 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर कृषि की राह अपना ली। फिलहाल, दोनों का मशरूम फार्म, ट्रेनिंग सेंटर, वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट और पौधों की नर्सरी का सेटअप है। साथ ही वे मछली पालन, मुर्गी पालन, बत्तख पालन, और बकरी पालन भी करते हैं।
अपने इस फार्म मॉडल से जयंती और उनके परिवार ने लगभग 40 लोगों को रोजगार दिया हुआ है। साथ ही, उनका सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपए से ज्यादा है। जयंती को कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई अवॉर्ड्स भी मिले हैं।
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8. काकासाहेब सावंत, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के सांगली इलाके के 43 वर्षीय काकासाहेब सावंत (Among Top 10 farmers) ने तकरीबन 10 सालों तक पुणे की कई बड़ी-बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में मैकेनिक के तौर पर काम किया है। लेकिन अब उनकी पहचान मैकेनिक के तौर पर नहीं, बल्कि एक सफल किसान के रूप में होती है। उनकी एक नर्सरी है, जिससे उनकी सालाना कमाई 50 लाख रुपये है।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘उद्यान पंडित’ की उपाधि से सम्मानित सावंत के दो भाई हैं, जो प्राथमिक स्कूल में शिक्षक हैं। उनके परिवार के पास महाराष्ट्र के सांगली जिले के जाट तालुका के सूखाग्रस्त क्षेत्र में 20 एकड़ जमीन है। यहां के किसान, अंगूर या अनार तो उगाते हैं, लेकिन आम की खेती को मुश्किल समझते हैं और बाजरा, मक्का, ज्वार, गेहूं, दाल आदि उगाते हैं।
सावंत ने साल 2010 में एक आम का बगीचा बनाया और पांच साल बाद, उन्हें पौधों की नर्सरी का बिज़नेस करने का ख्याल आया। इसके बाद, उन्होंने 2015 में ‘श्री बंशंकरी रोप वाटिका’ के नाम से अपनी नर्सरी शुरू की, जिसमें अलग-अलग फलों के पौधे लगे हैं। वह हर साल, प्रति एकड़ 2 टन आम की फसल उगाते हैं। इस तरह 10 एकड़ के हिसाब से, कुल 20 टन आम उगते हैं। वह सूखे इलाके में आम उगाकर दूसरे किसानों के लिए एक आदर्श बन गए हैं और अपने खेत और नर्सरी से वह 25 और लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। वह सालाना लगभग 2 लाख का मुनाफा कमाते हैं।
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9. सविता लभडे, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के नासिक में रहनेवाली 40 वर्षीया सविता लभडे (Among Top 10 farmers) ने अपने पति की मौत के बाद, 7 लाख का कर्ज चुकाने और परिवार चलाने के लिए खेती शुरू की। उनके पास 2.5 एकड़ जमीन थी, जहाँ उनका परिवार पहले अंगूर की खेती करता था और इससे साल में सिर्फ एक बार कमाई होती थी। सविता को अंगूर की खेती के बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए उन्होंने सब्जियों की खेती शुरू कर दी।
लेकिन इससे भी हर महीने मुश्किल से 10 हजार की कमाई होती थी। फिर सविता को उनके एक दोस्त ने मसाला बनाने वाली मशीन खरीदकर दी और साइड बिजनेस शुरू करने को कहा। कुछ सेविंग्स और अपने सोने के जेवरों को बेचकर उन्होंने बिजनेस शुरू किया और उनकी महीने में करीब 50 हजार की कमाई होने लगी।
सविता ने सब्जी की खेती में घाटे को कम करने के लिए, सोयाबीन और गेहूँ की खेती शुरू की। 6 वर्षों की मेहनत के बाद, उन्होंने अपना कर्ज चुकाया और अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा भी सुनिश्चित की। साल 2019 में, सविता ने ‘साधना जनरल स्टोर’ के नाम से एक दुकान भी खोली।आज उनके बेटे, धीरज ने इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अपना करियर बना लिया है। वहीं, उनकी बेटी साधना, राज्य पुलिस सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही हैं।
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10. बिक्रमजीत चकमा, त्रिपुरा

त्रिपुरा में उनाकोटी के पेचारथल गांव के रहनेवाले 32 वर्षीय बिक्रमजीत चकमा (Among Top 10 farmers), ओबीसी कॉरपोरेशन में फील्ड ऑफिसर की नौकरी करते हैं और छुट्टी के दिन अपने चाचा और भाइयों के साथ खेती करते हैं। पिछले एक-डेढ़ साल से खेती में उनका योगदान काफी बढ़ा और राज्य के बहुत से किसान उनसे प्रेरणा भी ले रहे हैं। चकमा परिवार अब अपने खेतों में कश्मीरी एप्पल बेर और सिंदूरी एप्पल बेर की खेती कर रहा है।
बिक्रमजीत ने एक दिन एक वीडियो देखी, जिसमें बांग्लादेश के एक जर्नलिस्ट कश्मीरी एप्पल बेर के बारे में बता रहे थे। उन्होंने अपने भाइयों और चाचा से इस बारे में बात की और सबसे सलाह-मशविरा करके कोलकाता से 1400 पौधे लेकर आए, जिसमें दो किस्म के पौधे थे। एक कश्मीरी एप्पल बेर और दूसरा सिंदूरी एप्पल बेर। इन पौधों को लगाने और इनकी देखभाल में ढाई लाख रुपये खर्च हुए।
उन्होंने मार्च, 2020 में पौधे लगाए थे। अक्टूबर के अंत में इन पर फूल आने लगे और जनवरी में तो फल की शुरुआत हो गई। 2021 में 40 क्विंटल से ज्यादा फलों का उत्पादन हुआ और पहली फसल से उन्हें लगभग छह लाख रुपये की कमाई हुई है। चकमा परिवार के प्रयासों की सराहना राज्य के मुख्यमंत्री ने भी की।
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