खेती से लेकर मसालों के बिज़नेस तक, पढ़िए कभी कर्ज में डूबी एक विधवा की प्रेरक कहानी!

Inspiring Woman Farmer

महाराष्ट्र के नासिक में रहने वाली सविता लभडे, पति की मौत के बाद क़र्ज़ में डूबी हुईं थीं। हिम्मत न हारते हुए उन्होंने खेती की और अपना मसालों का बिज़नेस भी शुरू किया। आज वह 'साधना जनरल स्टोर' की मालकिन हैं।

यह बात वर्ष 2008 की है। दिल का दौरा पड़ने के कारण, सविता लभडे के पति की मौत हो गई। वह अपने पीछे पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गए। इसके साथ ही, वह 7 लाख रुपए के कर्ज में भी डूबे हुए थे।

हालांकि, महाराष्ट्र के नासिक में रहने वाली सविता अपने पति के कर्ज से अनजान थीं। उन्हें इसके बारे में तब पता चला, जब ‘कॉपरेटिव बैंक’ के अधिकारी उनके दरवाजे पर नोटिस के साथ आए और कर्ज चुकाने की माँग की।

इस घटना के बारे में, 40 वर्षीया सविता ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे इस कर्ज के बारे में करीब एक साल के बाद पता चला, और तब तक ब्याज भी काफी बढ़ चुका था।”

विपदा की इस घड़ी से निपटने के लिए, उन्हें अपनी सोने की चेन तक बेचनी पड़ी। ऐसे में, उन्होंने अपनी आर्थिक तंगियों को दूर कर, परिवार की बेहतर देखभाल के लिए एक योजना तैयार की।

वह कहती हैं, “उस वक्त, मेरा बेटा धीरज चौथी कक्षा में और बेटी साधना दूसरी कक्षा में थी। हमारे पास 2.5 एकड़ जमीन थी, जहाँ हम अंगूर की खेती करते थे। इससे हमें साल में सिर्फ एक बार कमाई होती थी। मुझे अंगूर की खेती के बारे में कुछ पता नहीं था। इसलिए, मैंने सब्जियों की खेती करना शुरू कर दिया।”

हालाँकि, इससे होने वाली कमाई अस्थिर थी, और यह उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए काफी नहीं था।

वह कहती हैं, “मुझे अपनी उपज बेचने से, हर महीने मुश्किल से 10 हजार की कमाई होती थी। इससे मैं कर्ज कैसे चुकाती, और अपने बच्चों की देखभाल कैसे करती?”

मिली नई उम्मीद

इसी दौरान सविता को एक मसाला बनाने वाली मशीन के बारे में पता चला, जिसकी कीमत 65,000 रुपये थी।

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Savita toiling in the sugarcane field

वह कहती हैं, “एक दोस्त ने मुझे इसे खरीद कर, एक साइड बिजनेस शुरू करने की सलाह दी। इसके बाद, मैंने कुछ पैसे अपनी सेविंग्स से जुटाए। और, बाकी पैसों का इंतजाम अपने सोने के जेवरों को बेचने के बाद हुआ। इस बिजनेस से मुझे महीने में करीब 50 हजार की कमाई होने लगी।”

सविता ने सब्जी की खेती में घाटे को कम करने के लिए, सोयाबीन और गेहूँ की खेती शुरू की। 6 वर्षों की मेहनत के बाद, उन्होंने अपना कर्ज चुकाया और अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा भी सुनिश्चित की।

इस तरह, साल 2015 तक, सविता ने हर महीने 60 हजार रुपए की कमाई करना शुरू कर दिया था।

वह कहती हैं, “मसाले का बिजनेस फरवरी से जुलाई तक चलता है। इस दौरान बाजार में ताजा मसाले उपलब्ध होते हैं और पूरे साल चलते हैं। इस तरह, मुझे हर महीने करीब 1 लाख की कमाई होती है। साल 2018 में, मैंने गन्ने की खेती को भी आजमाया। इससे कम रख-रखाव की जरूरत होती है, और फसल की कटाई दो बार होती है। हाल ही के मौसम में, मैंने एक फसल से 54 हजार रुपए कमाए हैं।”

2019 में, सविता ने एक जनरल स्टोर भी खोला, जिसे उन्होंने ‘“साधना जनरल स्टोर’” नाम दिया।

वह बताती हैं, “इस दुकान से मुझे मंदी के समय (ऑफ-सीजन) में मसाला बिजनेस में होने वाली कमी की, भरपाई करने में मदद मिलती है।”

वह बताती हैं कि, कई वर्षों के संघर्ष के बाद ही, उन्हें अपने बच्चों और परिवार की बेहतर देखभाल के लिए, अच्छी कमाई के कई तरीकों को खोजने में मदद मिली है।

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Sadhana General Store opened by Savita.

वह कहती हैं, “मैंने सिर्फ 8वीं तक पढ़ाई की। इस वजह से मुझे बिजनेस के तौर-तरीकों की समझ, तथा मुनाफे को बढ़ाने में समय लगा। साथ ही, मसाला बिजनेस काफी थकान भरा काम है। मुझे सुबह के 5 बजे से आधी रात तक काम करना पड़ता है, ताकि मैं अच्छी कमाई कर सकूं। मसालों से मेरी आँखों और त्वचा पर भी काफी बुरा असर होता है। जब भी मुझे लगता था कि, मैं इसे ज्यादा समय तक नहीं चला पाउंगी, मुझे अक्सर अपनी मशीन और खेतों को बेचने का ख्याल आता था।”

सविता कहती हैं, “मैंने देखा कि बुरे दौर में कोई दोस्त या रिश्तेदार साथ नहीं देता है। मैं यह अपने अनुभव से बोल रही हूँ। मैंने अपने इतने वर्षों की कठिन लड़ाई को अकेले दम पर लड़ा है।”

लेकिन, उनकी जी तोड़ मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनके बेटे, धीरज ने इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अपना करियर बना लिया है। वहीं, उनकी बेटी साधना राज्य पुलिस सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही है, जो तमाम निराशाओं के बीच उम्मीद की एक नई किरण जगाती है।

सविता कहती है कि, जिस दिन उन्होंने खुद को कर्ज के बोझ से मुक्त किया था, वह उनके जीवन का सबसे सुखद दिन था।

वह अंत में कहती हैं, “मैं हर महिला से मुश्किलों का सामना करने के लिए, सूझ-बूझ अपनाने और स्वतंत्र रहने की अपील करती हूँ।”

मूल लेख – हिमांशु नित्नावरे

संपादन- जी. एन. झा

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