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कार्डबोर्ड से बना 10 रुपये का यह स्कूल बैग बन जाता है डेस्क भी!

By सोनाली

चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं, वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती है। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी स्कूल की सबसे बेसिक आवश्यकता होती है। इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूल इन सुविधाओं से दूर है। "

पढ़िए 76 साल की इस दादी की कहानी जिसने 56 की उम्र में की बीएड, खोला खुद का स्कूल!

''माँ के देहांत के कारण बचपन में ही नन्हें कंधों पर रसोई और घर के कामों की जिम्मेदारी आ गई। 15 वर्ष की उम्र तक स्कूल का दरवाजा नहीं देखने वाली इस महिला के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था। ज़िद करते हुए नन्हीं बच्चियों के साथ साड़ी पहने हुए ही स्लेट पकड़कर अक्षर ज्ञान लिया। 18 वर्ष की होने तक शादी कर दी गई। ससुराल में पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी के बावजूद पढ़ाई का क्रम जारी रखा। प्राइवेट कैंडिडेट के तौर पर घर पर पढ़ाई कर किसी तरह ग्रेजुएशन और फिर अपनी बेटी के साथ ही बीएड किया। आज खुद का स्कूल चला रही है। शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल बनकर उभरी है।''

माता-पिता न बनने का लिया फ़ैसला ताकि पंद्रह ज़रूरतमंद बच्चों को दे सके बेहतर ज़िन्दगी!

'' मुझे सबसे अधिक ख़ुशी तब होती है जब यह बच्चे अपनी छोटी से छोटी समस्या मेरे पास हक से लेकर आते हैं, तो मुझे लगता है कि मैं सही मायनों में अपना फ़र्ज़ निभा पा रही हूँ। बच्चे बेझिझक मुझसे अपनी बातें शेयर किया करते हैं।''

इस KBC विनर ने बिहार में एक साल में लगवा दिए 70 हजार से ज्यादा चंपा के पौधे

By पुष्यमित्र

महज कुछ साल पहले तक अपने इलाके में सुशील की पहचान 2011 में केबीसी के विनर के रूप में थी, जब उन्होंने पाँच करोड़ रुपए जीते थे। मगर अब सुशील चंपा वाले, पीपल और बरगद वाले हो गए हैं।

बिलासपुर के कलेक्टर का नेक कदम, जेल में कैदी की 6 वर्षीय बेटी का कराया शहर के बड़े स्कूल में दाख़िला!

By निशा डागर

महज छह साल की ख़ुशी जेल की सलाखों के पीछे रहने के लिए इसलिए मजबूर है क्यूँकि उसके पिता यहाँ पर सजा काट रहे हैं।

बिहार का पहला खुला शौच-मुक्त गाँव अब है बेफ़िक्र-माहवारी गाँव भी; शिक्षकों ने बदली तस्वीर!

बिहार में केवल 15-25 साल की केवल 31 प्रतिशत महिलाएं ही सुरक्षित रूप से अपने माहवारी का प्रबंधन करती है। ऐसे में इस तरह के सकारात्मक पहल हमें एक नए भविष्य की उम्मीद दिलाते हैं, जहाँ किशोरियों को भी बिना किसी भेद-भाव के अपने अधिकार मिले और वे लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल सकें!

पुणे: दिल की बिमारी से ग्रस्त बच्ची को गोद लेकर इस कुंवारी माँ ने कराया इलाज!

By निशा डागर

Maharashtra में पुणे की रहने वाली 42 वर्षीय अमिता मराठे ने साल 2013 में एक बच्ची गोद ली है। उन्होंने शादी नहीं की, लेकिन वे बच्चा गोद लेना चाहती थीं। उनके इस फ़ैसले में उनके परिवार ने उनका पूरा योगदान दिया।

90 या 99 नहीं बल्कि 60% लाने पर है इस माँ को अपने बेटे पर गर्व!

By निशा डागर

दिल्ली की रहने वाली वंदना सुफिया कटोच ने CBSE का रिजल्ट आने के बाद 6 मई, 2019 को फेसबुक पर अपनी पोस्ट शेयर की। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि 10वीं क्लास में उनके बेटे के 60% अंक आये हैं और वे अपने बेटे की इस कामयाबी पर बहुत खुश हैं!

मॉडलिंग छोड़,14 सालों से लड़ रहे हैं छुआछूत की लड़ाई; मल उठाने वालों को दिलवाया सम्मानजनक काम!

By निशा डागर

बिहार में खगड़िया जिले के परबत्ता गाँव से ताल्लुक रखने वाले संजीव कुमार ने हमेशा से दिल्ली में पढ़े-लिखे और मॉडलिंग में करियर बनाया। लेकिन अपने गाँव में डोम समुदाय की दयनीय स्थिति ने उनकी ज़िंदगी की दिशा बदल दी। पिछले 14 सालों से वे बिहार में छुआछुत जैसी सामाजिक कुरूति के खिलाफ़ लड़ रहे हैं।