बिहार के इस पारंपरिक भोजपुरिया गांव में सामूहिक प्रयास से संचालित हो रही लड़कियों की स्पोर्ट्स एकेडमी। बिहार की टीम में चुनी जा रहीं लड़कियां और हर आंख में पल रहे हैं, नेशनल टीम के लिए खेलने के सपने।
बिहार के कोसी अंचल में एक अनूठा प्रोडक्शन यूनिट संचालित हो रहा है, इस यूनिट में सिर्फ महिलाएं ही काम करती हैं और उन्हें नियमित सम्मानजनक आजीविका का अवसर मिलता है।
कोरोना काल में जब थाली में दाल को भी तरस रहा था पूरा गांव, इन महिला किसानों ने छोटी सी जमीन पर किचन गार्डन लगा कर पूरे साल के लिए फल, सब्जियां और जड़ी बूटियों का इंतजाम किया और अपने पड़ोसियों की मदद भी की।
चूंकि इनमें से ज्यादातर बच्चे गरीब परिवार से आते हैं, इसलिए उनके परिवार में इन दिनों खाने-पीने की भी दिक्कत हो रही है। वह उन्हें मुफ्त राशन भी उपलब्ध करा रहे हैं।
महज कुछ साल पहले तक अपने इलाके में सुशील की पहचान 2011 में केबीसी के विनर के रूप में थी, जब उन्होंने पाँच करोड़ रुपए जीते थे। मगर अब सुशील चंपा वाले, पीपल और बरगद वाले हो गए हैं।
पढ़िये एक चौकीदार कवि के संवेदनशील मन की कहानी, जिसने उसे अपनी सैलरी के पैसों से अपने इलाके के गरीब-वंचित बच्चों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित किया!