सोनू के दिल जीत लेने वाले ट्वीट की प्रेरणा भी कई बार साधू बनते हैं। चूंकि साधू हिंदी बेल्ट से हैं और पूर्वांचल से काफी परिचित हैं। इसलिए उन्हें मालूम है कि कैसे लोगों से संवाद किया जाए।
कोरोना महामारी के दौर में सबसे अधिक नुकसान श्रमिक वर्ग का हुआ है। इन सभी तक मदद पहुंचाने के लिए कुछ युवा और उनकी संस्थाएं बढ़-चढ़कर आगे आ रही हैं।देश के अलग-अलग हिस्सों में भागीरथ प्रयास में जुटे ऐसे ही कुछ युवाओं के बारे में हम यहां बता रहे हैं।
‘अपनेआप संस्था’ की कार्यकर्ता टिंकू खन्ना के अनुसार समुदाय के पुरुष कोई काम नहीं करते हैं और दिन भर शराब का सेवन और महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा करते हैं। शाम के समय घर की सभी महिलाओं को गाड़ियों में भरकर अलग-अलग स्थानों पर खरीदारों के पास ले जाया जाता है।
महिलाओं द्वारा बनाया गया सामान 'सम्भली' के जोधपुर स्थित शोरूम में विदेशी पर्यटकों एवं अन्य लोगों को बेचा जाता है और इसके बदले महिलाओं को उचित वेतन दिया जाता है।
हमारी आँखों पर शहरों की चकाचौंध का ऐसा चश्मा चढ़ा हुआ है कि अपने पीछे छूटे हुए गाँव का अंधेरा हमें दिखाई ही नहीं देता। इसी अंधेरे को दूर करने के लिए एक कदम उठाया है अन्नू और भावेश ने !
मोमसार केवल दीपावाली तक ही सीमित नहीं है। साल भर में विनोद की यह संस्था अलग-अलग त्योहारों पर 34 उत्सवों का आयोजन करवाती है। जिससे साल भर क्षेत्रीय कलाकारों के पास काम रहता है।