मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली 55 वर्षीया दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) ने कभी स्कूल की सीढ़ियां तक नहीं चढ़ी, 25 साल पहले उन्हें पद्म श्री अवार्ड के बारे में कोई जानकारी भी नहीं थी। लेकिन आज पूरा देश उन्हें ‘पद्म श्री दुलारी देवी’ (Padma Shri Dulari Devi) के नाम से जानता है। लेकिन यकीन मानिए इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया है।
जिस तरह वह अपने कैनवास को अगल-अलग रंगों से रंगीन बनाती हैं ठीक उसी तरह उन्होंने अपनी मेहनत से जीवन में सफलता के रंग भरे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) कहती हैं, “मैंने जीवन में बहुत गरीबी देखी है। मुझे पेंटिंग बनाना पसंद है और आज इसी के बदौलत मुझे इज्जत और सम्मान मिल रहा है।”
इसी साल 8 नवंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जिन 145 लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया था, उनमें बिहार की दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) भी शामिल हैं।
दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) के परिवार का दूर-दूर तक मिथिला पेंटिंग से कोई वास्ता नहीं है। बावजूद इसके उनकी कला को आज देश भर में विशिष्ट पहचान मिली है।
कैसे एक मछुआरे की बेटी बनी पद्मश्री
दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) की जिंदगी की शुरुआत भी पिछड़े तबके से आने वाली किसी आम लड़की की तरह गरीबी में ही हुई। परिवार में शिक्षा को लेकर कम जागरूकता और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह कभी स्कूल भी नहीं गई हैं। उनका परिवार मजदूरी करके जीवन यापन करता था। दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) बचपन से ही माँ के साथ काम पर जाती और घर में भाई-बहनों की देखभाल करती थीं। उनके पिता मछुआरे थे।
शादी के बाद उन्होंने अपनी संतान को छह महीने में ही खो दिया था जिसके बाद एक-दो साल में ही वापस मायके लौट आई थीं। इसके बाद वह दोबारा कभी ससुराल नहीं गईं।
मायके वापस आकर उन्होंने, मिथिला पेटिंग की प्रख्यात कलाकार कर्पूरी देवी और महासुंदरी देवी के यहां झाड़ू-पोछे का काम करना शुरू किया। आगे चलकर यहीं से उन्होंने मधुबनी पेंटिंग बनाना भी सीखा। दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) ने तक़रीबन 25 साल तक कर्पूरी देवी के घर पर काम किया।
इन दोनों मिथिला आर्टिस्ट्स के प्रति अपने लगाव के बारे में बात करते हुए, वह कहती हैं, “मैं कर्पूरी देवी और महासुंदरी देवी को पेंटिंग बनाते देखती थी और जब उन्हें पता चला की मुझे इसे सिखने की चाह है तब उन्होंने ही मुझे यह कला सिखाई। आज मैं जो कुछ भी कर पाई हूं, इसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है।”
दुलारी देवी को मिथिला पेंटिंग का शौक तो था, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह रंग, कागज़ और कपड़े ख़रीद पातीं। इसी दौरान उनकी लगन को देखते हुए कर्पूरी देवी ने उनकी की मदद की और पेंटिंग की बारीकियां सिखाई। 1983 में प्रख्यात पेंटर गौरी मिश्रा ने महिलाओं को मिथिला पेंटिंग सिखाने और उनके काम को प्रमोट करने के लिए एक संस्था बनाई थी। कर्पूरी देवी की मदद से दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) को वहां सीखने का मौका मिला।
पहली पेंटिंग मात्र पांच रुपये में बिकी थी
इस संस्था से जुड़ने के बाद उनकी कुछ पेंटिंग बिकने लगीं। चूंकि बिहार का मधुबनी जिला मिथिला पेंटिंग के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसलिए कई विदेशी लोग यहां के कलाकारों से मिलने और पेंटिंग खरीदने आते रहते हैं। पेंटिंग से जुड़ी अपनी पहली कमाई के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि जापान से आए कुछ मेहमानों ने उनसे पेंटिंग वाले सात पोस्टकार्ड्स ख़रीदे थे और एक कार्ड की कीमत मात्र पांच रुपये थी।
गौरी मिश्रा की संस्था से जुड़कर, उन्होंने 16 साल तक काम किया। वहीं अपनी सबसे महंगी पेंटिंग के बारे में बात करते हुए कहती हैं, “मैंने अपनी एक पेंटिंग तीन लाख रुपये में बेचीं थी, जिसे बिहार सरकार ने ख़रीदा था। आज भी वह पेंटिंग पटना के बिहार म्यूजियम में लगी है। वह पेंटिंग कमला पूजा के बारे में थी। मैं मछुआरे के परिवार से ताल्लुक रखती हूं और हमारे समुदाय में कमला पूजा का विशेष महत्व है। इसलिए मैंने वह पेंटिंग बनाई थी।”
हालांकि, वह पेंटिंग ज्यादा बड़ी भी नहीं थी, उन्होंने इसे 10x 9 के कैनवास पर बनाया था।
दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) को पढ़ना लिखना भी नहीं आता था लेकिन कर्पूरी देवी ने उन्हें मधुबनी पेंटिंग के साथ खुद का नाम लिखना भी सिखाया था। कला के प्रति अपनी रूचि और मेहनत के दम पर दुलारी देवी ने आगे चलकर कई अवार्ड जीते। साथ ही उनकी पेंटिंग्स को अलग-अलग जगहों पर स्थान भी मिला।
दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) के जीवन की कहानी और कलाकृतियां गीता वुल्फ की पुस्तक ‘फॉलोइंग माई पेंट ब्रश’ में देखने को मिलती है। साथ ही उनकी एक पेंटिंग को आप ‘सतरंगी’ नामक किताब में भी देख सकते हैं। उनकी पेंटिंग को इग्नू के लिए मैथिली में तैयार पाठ्यक्रम के होमपेज के लिए भी चुना गया था।
पिछले आठ सालों से वह मिथिला आर्ट इंस्टिट्यूट में पेंटिंग सिखाने का काम भी कर रही हैं। इसके अलावा मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए उन्हें राज्य सरकार से भी ‘मिथिला अस्मिता सम्मान’ मिल चुका है।
आज भी वह सुबह चार बजे उठकर पेंटिंग बनाने का काम करती हैं। वह कहती हैं कि ब्रह्म मुहूर्त में किया गया काम हमेशा अच्छा होता है इसलिए वह जल्दी उठकर पेंटिग बनाती हैं। साथ ही वह कोशिश करती हैं कि अपनी कला के माध्यम से लोककथा और संस्कृति से लोगों को जोड़ सके।
पद्म श्री से नवाजे जाने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अंत में उन्होंने बताया, “जब दाईजी (महासुंदरी देवी) को पद्म श्री मिला था तब मैंने पहली बार इस विशेष सम्मान के बारे में सुना था। आज अगर मेरी गुरु जिन्दा होतीं तो मुझे मिले इस सम्मान को देखकर उन्हें बेहद ख़ुशी मिलती।”
आने वाले समय में वह बिहार की अलग-अलग सस्थानों में मिथिला पेंटिंग सिखाने का काम करने वाली हैं। ताकि मिथिला की कला ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके।
पद्म श्री दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) के जीवन संघर्ष और उनकी उपलब्धियों को द बेटर इंडिया का सलाम करता है।
संपादन- जी एन झा
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