भारत में आज भी बहुत से परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। दो वक्त की रोटी की तलाश में, माता-पिता के साथ कई बार नन्हें बच्चों को भी काम करना पड़ता है। फैक्ट्री से लेकर छोटे-बड़े होटलों तक, आपको बच्चे काम करते हुए दिख जाएंगे। लेकिन कुछ संगठन ऐसे भी हैं, जो इन बच्चों की जिंदगी संवारने में जुटे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही होनहार बच्चे की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो कभी ईंट भट्टे में मजदूरी किया करता था, लेकिन अब लोग उसे आविष्कारक के तौर पर जानते हैं। यह कहानी ओडिशा के लछमन डुंडी की है। कभी अपने माता-पिता के साथ ईंट-भट्ठे पर काम करनेवाले लछमन डुंडी को, अब लोग एक इनोवेटर के रूप में जानते हैं। हाल ही में, ओडिशा सरकार के सहयोग से, उन्होंने अपनी एक कंपनी (startup company entrepreneur industries) भी रजिस्टर कराई है, ताकि अपने इनोवेशन को लोगों तक पहुंचा सकें।
ओडिशा के नुआपड़ा जिला में कोटमाल गाँव के रहनेवाले लछमन फिलहाल फिजिक्स विषय से बीएससी कर रहे हैं। इसके साथ ही, वह अपने इनोवेशन और स्टार्टअप पर भी काम कर रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैं बहुत ही साधारण परिवार से हूँ। मेरे माता-पिता दिहाड़ी-मजदूरी करते हैं और मैं भी स्कूल के समय से ही पार्ट टाइम नौकरी कर रहा हूँ, ताकि अपनी शिक्षा का खर्च उठा सकूं।”
लछमन के माता-पिता के पास थोड़ी सी जमीन है, जिस पर वह धान लगाते हैं। धान की कटाई के बाद, उनका परिवार काम की तलाश में आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) पलायन करता था। यहाँ वे ईंट भट्ठों पर काम किया करते थे। लछमन बताते हैं, “वे दिन मुश्किलों से भरे थे। लेकिन एक स्थानीय NGO, Lokdrusti मेरे जीवन में आशा की किरण लेकर आया। Lokdrusti की टीम ने मुझे ईंट-भट्ठे से निकालकर स्कूल में पहुँचाया। उस वक्त मेरी उम्र 10 साल रही होगी। NGO की तरफ से मेरा दाखिला स्कूल में कराया गया और रहने के लिए हॉस्टल भी मिला,” उन्होंने कहा।
विज्ञान में थी गहरी रूचि
लछमन पढ़ाई में ठीक थे और खासकर उन्हें विज्ञान में दिलचस्पी थी। वह जो कुछ भी स्कूल में पढ़ते, उसपर एक्सपेरिमेंट करना चाहते थे। उनकी इसी जिज्ञासा ने उन्हें हमेशा लीक से हटकर काम करने के लिए प्रेरित किया। वह बताते हैं कि नौंवी या दसवीं कक्षा में थे और अपने घर पर पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन गाँव में बिजली की बहुत समस्या थी और इस वजह से उन्हें रात को पढ़ाई करने में दिक्क्त होती थी। लेकिन इस समस्या के कारण, उन्होंने पढ़ाई करना नहीं छोड़ा, बल्कि समस्या का समाधान तलाशा।
वह बताते हैं, “मैंने एक साइकिल में डाइनमो लगाया और इससे एक बल्ब को अटैच किया। ताकि साइकिल चलाने पर बिजली बने और उससे बल्ब जलता था। फिर मैं पढ़ाई कर पाता था। मेरा लगाव इलेक्ट्रॉनिक चीजों में बढ़ने लगा। अपने आसपास कबाड़ में पड़ी इलेक्ट्रॉनिक चीजों को ही इस्तेमाल करके मैं कुछ-कुछ बनाने लगा। दसवीं कक्षा के बाद मैं खरियर के इंटरकॉलेज में पढ़ने गया। मेरी पढ़ाई में मुझे एनजीओ की मदद मिल रही थी लेकिन साथ में, मैंने पार्ट टाइम छोटा-मोटा काम करना शुरू कर दिया।”
लोकदृष्टि संगठन के एक प्रोजेक्ट हेड, भुबनेश्वर राउत बताते हैं, “लछमन हमेशा से ही एक अलग सोच रखता है। किसी की गाड़ी में कोई समस्या आ गयी या किसी को कोई इलेक्ट्रॉनिक चीज ठीक करानी है तो लोग उसको संपर्क करते थे। लेकिन दसवीं कक्षा के बाद, उसने अपने खुद के कई आइडियाज पर काम करना शुरू किया। जैसे सबसे पहला उसका कमाल था, पुराने 500 रुपए के नोट से बिजली का बल्ब जलाना। इस काम के लिए उसे बहुत सराहना मिली।”
साल 2017 में जब नोटबंदी हुई तो उनके मन में एक विचार आया कि अब पुराने नोट का क्या होगा? “ऐसा नहीं था कि सभी नोट समय रहते बदल दिए जायेंगे। इसलिए मैंने कुछ अलग करने की सोची ताकि लोगों को एक आईडिया मिले कि कैसे बचे हुए नोटों का सही इस्तेमाल किया जा सकता है,” उन्होंने कहा। उस समय, लछमन ने 500 रुपए के नोट से बिजली बनाई। वह कहते हैं कि 500 रुपए के नोट से पांच वाल्ट बिजली बन सकती है।
लछमन कहते हैं, “मैंने बिजली बनाने के लिए 500 रुपए के नोट पर लगी सिलिकॉन कोटिंग का उपयोग किया। सबसे पहले सिलिकॉन कोटिंग को सीधी धूप में रखा और फिर इसे एक इलेक्ट्रिक वायर की मदद से ट्रांसफॉर्मर से जोड़ा ताकि सिलिकन से मिलने वाली ऊर्जा को इसमें स्टोर किया जा सके।“ साल 2017 में उनके इस काम की खूब चर्चा हुई थी। प्रधानमंत्री ने भी ओडिशा सरकार से उनके प्रोजेक्ट पर रिपोर्ट मांगी थी। हालांकि, यह कोई एक ही इनोवेशन नहीं है, जो उन्होंने किया।
Currency Notes Sanitizer Machine
कॉलेज के दौरान भी लछमन लगातार अपने आईडियाज पर काम करते रहे हैं। उन्होंने लड़कियों की सुरक्षा के लिए safety gadgets for women बनाया है। इसे पहनने के बाद, अगर कोई भी उस लड़की से बदतमीजी करता है या उसे छूने की कोशिश करता है, तो इस गैजेट से उसे काफी तेज झटका लगेगा। इससे लडकियां खुद को सुरक्षित रख पाएंगी। वह कहते हैं कि safety gadgets for women का ट्रायल अभी चल रहा है।
इसके अलावा, उन्होंने Wireless Charger बनाया है। उन्होंने बताया, “मैं एक बार भुवनेश्वर गया था और स्टेशन पर फोन को चार्जिंग में लगाया। वहां से मेरा फोन चोरी हो गया। फ़ोन चोरी होने के बाद मुझे लगा कि ऐसा कोई सिस्टम हो कि मोबाइल में चार्जर लगाए बिना भी फोन चार्ज हो जाए। फ़िलहाल, मैंने खुद के लिए ही इस तकनीक का इस्तेमाल किया है। और भी बहुत से लोगों ने मुझसे सम्पर्क किया है कि मैं उनके लिए भी यह चार्जर बनाऊं। लेकिन बड़े स्तर पर इस तकनीक को बनाने के लिए मुझे पेटेंट चाहिए।”
लछमन कहते हैं कि वह जल्द ही अपनी इस तकनीक के लिए पेटेंट अप्लाई करेंगे। इसके अलावा, उन्हें इस इनोवेशन के लिए राज्य स्तर का ‘यूथ इनोवेशन अवॉर्ड’ मिल चुका है। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान ‘ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर’ और currency notes sanitizer machine भी बनाई। उनकी currency note sanitizer मशीन न सिर्फ नोटों को सैनिटाइज करती है, बल्कि असली और नकली नोट की पहचान भी करती है। “इस मशीन को रेलवे स्टेशन, बैंक, पेट्रोल पंप आदि पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस मशीन का ट्रायल डिस्ट्रिक्ट इंडस्ट्रीज सेंटर के लोगों ने लिया था। फ़िलहाल, कालाहांडी के एक पेट्रोल पंप और नुआपड़ा के एक बैंक में इस मशीन का इस्तेमाल हो रहा है,” उन्होंने कहा।
खरियर ब्लॉक के, इंडस्ट्रीज प्रमोशन अफसर, आनंद बेहेरा बताते हैं कि उन्होंने खुद नोट सैनिटाइज करने वाली मशीन का ट्रायल लिया है। यह काफी अच्छा इनोवेशन है। “इसके अलावा, उन्होंने एक सस्ता ‘ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर’ भी बनाया है। जिसकी टेस्टिंग अभी चल रही है। लछमन बहुत ही अलग तकनीक इस्तेमाल करके अपने डिवाइस बनाते हैं जो आम लोगों के काम आ सकते हैं। अभी उन्होंने अपना एक स्टार्टअप भी रजिस्टर किया है,” उन्होंने कहा।
शुरू किया स्टार्टअप
अपने इनोवेशन को लोगों तक पहुंचाने के लिए लछमन स्टार्टअप शुरु करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें ओडिशा स्टार्टअप पॉलिसी के तहत मदद भी मिली है। उन्होंने ‘Dundi Electronics and Electricals Pvt Ltd‘ के नाम से अपना स्टार्टअप रजिस्टर कराया है। स्टार्टअप शुरू करने के अलावा, उन्हें KIIT-टेक्नोलॉजी बिज़नेस इन्क्यूबेटर प्रोग्राम के तहत NIDHI-EIR फ़ेलोशिप भी मिली है। इस फ़ेलोशिप के अंतर्गत वह एक ‘इंटेलीजेंट बाइक’ पर काम कर रहे हैं। इसके बारे में उन्होंने बताया, “यह ऐसी बाइक है, जो पानी की ऊर्जा पर काम करेगी और इसे ईंधन की आवश्यकता नहीं होगी। मुझे उम्मीद है कि मार्च 2022 तक मैं इसका काम पूरा कर लूंगा।”
फिलहाल, कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण, उनके कई आइडियाज पर काम नहीं हो पा रहा है। लेकिन लछमन कहते हैं कि धीरे-धीरे वह लोगों की जरूरत के हिसाब से उनके लिए डिवाइस बनाने पर काम करेंगे। अगर किसी को करेंसी सैनिटाइजिंग मशीन की जरूरत है तो उनसे संपर्क किया जा सकता है।
“मैंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। अभी भी मैं लोगों के यहां जाकर छोटे-मोटे काम करता हूँ जैसे किसी की लाइट ठीक करना, किसी की मोटर। लेकिन मुझे उम्मीद है कि एक दिन मैं अपने बनाए डिवाइस और गैजेट्स लोगों तक पहुंचा सकूंगा,” उन्होंने अंत में कहा।
यकीनन, लछमन डुंडी हम सबके लिए एक प्रेरणा है क्योंकि उन्होंने किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानी और अपने आइडियाज को हक़ीक़त में बदला है। अगर आप लछमन से संपर्क करना चाहते हैं तो उनको lachhhamandundi@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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