महात्मा गाँधी का मानना था कि भारत की सही उन्नति तभी संभव है जब भारत के गाँव उन्नत होंगे। उन्होंने हमेशा देश के गाँवों को स्वाबलंबी और आत्म-निर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। देश में बहुत से गाँव ऐसे हैं जो गाँधी जी की विचारधारा को प्रेरणा मानकर आगे बढ़ रहे हैं।
इन गाँवों को न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा और सम्मानित किया गया है। आदर्श और स्मार्ट गाँवों की इस फेहरिस्त में उत्तर-प्रदेश के हसुड़ी औसानपुर गाँव, गुजरात के दरामाली और जेठीपुरा गाँव, छत्तीसगढ़ का सपोस गाँव, राजस्थान के पिपलांत्री गाँव, पंजाब के रणसिह कलां और छीना रेलवाला गाँव आदि के नाम शामिल हैं।
ये सभी गाँव इसलिए आदर्श गाँव नहीं बने हैं क्योंकि केंद्र या फिर राज्य सरकार ने यहाँ कोई खास काम किया है, बल्कि इन गाँवों को सबसे अलग और प्रगतिशील बनाया है यहाँ के सरपंच और गाँववालों ने। किसी भी गाँव या शहर का विकास तब तक संभव नहीं जब तक वहां के निवासी उस विकास में अपना योगदान न दें।
केंद्र सरकार हो, राज्य सरकार हो या फिर कार्यप्रणाली की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत हो, जब तक गाँव के लोग खुद अपने हाथ में विकास की कमान नहीं लेंगे, तब तक परिस्थितियाँ नहीं बदलेंगी। इसी सोच पर काम करते हुए, हरियाणा में बहादुरगढ़ जिले के पास स्थित सांखोल गाँव के निवासियों ने भी खुद अपने गाँव को आदर्श गाँव बनाने की ठानी है।
आज से लगभग 4 साल पहले गाँव के कुछ युवाओं ने मिलकर एक समिति का गठन किया- संघर्षशील जनकल्याण सेवा समिति– इस समिति के बैनर तले ये सभी युवा मिलकर गाँव के विकास के लिए काम करते हैं। उन्होंने गाँव के हर एक व्यक्ति को गाँव के विकास से जोड़ा है और आज यहाँ पर हर रविवार को 2 घंटे के लिए लोग श्रम दान करते हैं।
द बेटर इंडिया ने इस समिति और इसके कार्यों के बारे में अधिक जानने के लिए समिति के ही एक सदस्य मनीष चाहर से बात की। मनीष ने हमें बताया कि समिति की शुरुआत गाँव के पढ़े-लिखे और नौकरी-पेशा करने वाले चंद युवाओं से हुई थी। आज गाँव से हर उम्र के लोग इस समिति से जुड़कर गाँव की प्रगति में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।
“चार साल पहले जब हमने शुरुआत की, तब सबसे पहले साफ़-सफाई अभियानों और कुछ जागरूकता रैलियों पर जोर दिया। हमारा उद्देश्य काम करते हुए गाँव के लोगों को इन ज़रूरी मुद्दों से अवगत करना है। हमने बहुत छोटे-छोटे प्रयासों से शुरू किया और अब ये प्रयास बदलाव की राह बनने लगे हैं,” उन्होंने बताया।
समिति ने गाँव के सभी सार्वजानिक स्थानों के लिए स्वच्छता अभियान चलाया। गाँव की चौपाल, गलियों और रास्तों से लेकर सरकारी स्कूल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, आँगनवाड़ी और शमशान भूमि, सभी की साफ़-सफाई रेग्युलर तौर पर की जाती है। सभी जगहों पर कचरे के लिए डस्टबिन लगाए गए हैं।
साथ ही, सभी सार्वजनिक स्थानों को हरा-भरा रखने के लिए भारी संख्या में पौधारोपण भी किया गया है। गाँव के लोग जन्मदिन, सालगिरह या फिर अन्य ख़ुशी के मौकों पर उत्सव की शुरुआत पौधारोपण से ही करते हैं। इन पौधों की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी गाँव के लोगों ने ही ली हुई है।
मनीष आगे बताते हैं कि उनकी समिति ने पॉलिथीन और प्लास्टिक के इस्तेमाल को भी गाँव में बहुत हद तक रोका है। “गाँव में छोटी-बड़ी लगभग 45 दुकानें हैं और इन सभी दुकानदारों से हमने निजी तौर पर मुलाक़ात की और उन्हें पॉलिथीन मुक्त अभियान से जोड़ा। उन्हें कहा गया कि वे अपने यहाँ से कोई भी सामान पॉलिथीन में न दें और ग्राहकों को कपड़े की थैली लाने के लिए प्रेरित करें।”
यह भी पढ़ें: 20 साल से खराब ट्यूबलाइट्स को ठीक कर गाँवों को रौशन कर रहा है यह इनोवेटर!
इतना ही नहीं, समिति ने अपने खर्चे से 200 कपड़े के बैग बनाकर गाँव में वितरित भी किए ताकि आम नागरिकों को एक संदेश दे सकें।
गाँवों में जगह-जगह पानी आदि भरे होने के कारण बीमारी का खतरा भी काफी रहता है, जिसमें डेंगू आदि सबसे सामान्य है। इस समस्या के निदान के लिए समिति का प्रयास रहता है कि गाँव में कहीं भी गंदा पानी इकट्ठा न रहे। खासतौर पर बारिश के मौसम में काफी सावधानी बरती जाती है। इसके अलावा, गाँव के घरों में समिति द्वारा दवाई का छिड़काव भी करवाया जाता है।
मनीष आगे बताते हैं कि गाँव के सरकारी स्कूल के विकास पर भी उनका काफी ध्यान है। स्कूल में साफ़-सफाई और पौधारोपण के अलावा, बच्चों के भविष्य के लिए वे क्या अच्छा कर सकते हैं, इस पर भी समिति काफी कार्य कर रही है। हर साल स्कूल में परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को समिति की तरफ से ‘भारत भाग्य विधाता’ पुरस्कार दिया जाता है।
यह भी पढ़ें: अमेरिका छोड़ गाँव में बसा दंपति, 2 एकड़ ज़मीन पर उगा रहे हैं लगभग 20 तरह की फसलें!
समिति के कार्यों से प्रभावित होकर, गाँव के ही रिटायर्ड मेजर सुधीर राठी ने अपने पिता के नाम पर बच्चों के लिए स्कॉलरशिप भी शुरू की है।
इसके अलावा, गाँव में जल-संरक्षण को लेकर काफी जागरूकता बढ़ी है। मनीष कहते हैं कि उनके गाँव की आबादी साढ़े पांच हज़ार से भी ज्यादा है और पूरे गाँव में पाइप लाइन बिछाई गई है। पाइप लाइन के पानी के लिए नल लगाए गए हैं, जिससे एक निश्चित समय पर ही पानी आता है।
समस्या यह है कि इन नलों को चलाने या फिर बंद करने का कोई सिस्टम नहीं है। इससे बहुत ज्यादा पानी बर्बाद होता है क्योंकि लोग अपनी ज़रूरत के हिसाब से पानी भर लेते हैं और उसके बाद, जब तक पीछे पाइप लाइन से पानी बंद न हो जाए, यह बहता रहता है।
इस समस्या के समाधान के लिए समिति ने इन नलों पर लगाने के लिए कैप/ढक्कन घर-घर बांटे। सभी गाँववालों को पानी का महत्व समझाते हुए, जागरूक किया गया कि वे पानी भरने के बाद नलों पर यह ढक्कन लगा दें। इससे पानी व्यर्थ नहीं बहेगा।
इसके अलावा, श्रमदान के ही ज़रिये गाँव के तालाब को पुनर्जीवित किया गया है ताकि बारिश के समय में जल-संरक्षण हो सके। इस तालाब से जो भी मिट्टी निकली, उसका इस्तेमाल गाँव में खेल का मैदान बनाने के लिए हुआ।
“हमारे गाँव का इतिहास काफी पुराना है लेकिन फिर भी हमारे यहाँ कोई खेल का मैदान नहीं था। समिति ने तय किया कि गाँव की ही कुछ सार्वजनिक ज़मीन को खेल के मैदान के रूप में तैयार किया जाए। इसके लिए हमें मिट्टी की ज़रूरत थी और ग्राम पंचायत ने इस बारे में कोई मदद नहीं की,” उन्होंने कहा।
ऐसे में, सभी युवाओं ने मिलकर गाँव के एक तालाब का पुनर्वासन किया और वहां से जो भी मिट्टी निकली, उसे खेल के मैदान के लिए लगाया। पिछले तीन सालों से लगातार गाँव में बच्चों और बड़ों के लिए खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन हो रहा है। इस साल, महिला दिवस के मौके पर गाँव की महिलाओं के लिए भी खेल प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी।
समिति का काम जहां एक तरफ सराहना बटोर रहा है, वहीं दूसरी तरफ गाँव में कुछ ऐसे लोग भी है, जो उनके काम में रुकावट डालने से बाज नहीं आते। इन युवाओं को ग्राम पंचायत से बहुत ही कम सहयोग मिलता है। अपने हर काम के लिए ये सभी अपनी जेबों से फंड्स इकट्ठा करते हैं और विकास कार्यों के लिए लगाते हैं।
यहाँ तक कि ग्राम पंचायत को मिलने वाले फंड्स के बारे में भी गाँव के लोगों को स्पष्ट जानकारी नहीं है। इस कारण समिति के सदस्य चाहते हैं कि सरकार द्वारा दो नियम बनाए जाएं।
पहला – हर गाँव में एक बुलेटिन बोर्ड लगे, जिस पर ग्राम पंचायत को आने वाले फंड्स का और फिर उन फंड्स को कहाँ-कहाँ, किस दिन, किस काम के लिए खर्च किया गया, इन सबका ब्यौरा हो। इससे गाँव के लोगों और ग्राम पंचायत के बीच पारदर्शिता बढ़ेगी।
यह भी पढ़ें: शिक्षक की एक पहल ने बचाया 3 लाख प्लेट खाना, 350 बच्चों की मिट रही है भूख!
दूसरा – ग्राम पंचायत के फैसलों में गाँव के लोगों को शामिल किया जाए। गाँव में रेग्युलर तौर पर ग्राम सभा आयोजित हो और गाँव के लोग सुझाव दें कि किस समस्या पर सबसे पहले काम होगा और कैसे होगा। इस ग्राम सभा का लाइव टेलीकास्ट होना चाहिए और जिला स्तर के अधिकारियों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
“यदि ये दो बातें हर एक गाँव में लागू हो जाएंगी तो भ्रष्टाचार की वजह से पिछड़ रहे ग्रामीण भारत को एक सकारात्मक दिशा मिलेगी,” उन्होंने अंत में कहा।
इस समिति द्वारा किए जा रहे सभी विकास कार्यों के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप मनीष चाहर से 7988663170 पर संपर्क कर सकते हैं!
संपादन – अर्चना गुप्ता
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।
Keywords: Gaon ka vikas, Haryana, Bahadurgarh, yuvashakti, yuva, vikas kary, village transformation, gram panchayat, Manish Chahar, Kendriya Vidyalay, shramdaan