/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2019/05/अस्तु-इको-.png)
पिछले साल जून में पब्लिश हुई डाउन टू अर्थ मैगज़ीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर एक भारतीय पूरे साल में लगभग 11 किलोग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है और हमारे देश में हर रोज़ लगभग 4, 059 टन प्लास्टिक वेस्ट उत्पन्न होता है। आने वाले सालों में स्थिति और भी गंभीर हो जाएगी।
इन आंकड़ों की अगर शहरों को लेकर बात करें तो महानगरों/मेट्रो सिटी से सबसे ज़्यादा प्लास्टिक वेस्ट आ रहा है। दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु जैसे शहरों में शिक्षा और रोज़गार की वजह से जैसे-जैसे पलायन बढ़ रहा है, वैसे ही प्रदुषण भी बढ़ रहा है। शहरों के ये बदलते हालात उन लोगों को अच्छे से समझ में आते हैं, जिन्होंने अपने बचपन से लेकर अब तक अपने शहर को बदलते देखा है।
ऐसा ही कुछ बंगलुरु में पली-बढ़ी तेजश्री मधु और उनकी दोस्त, अनिता शंकर के साथ हुआ। तेजश्री और अनिता, दोनों ने ही साथ में एमबीए की पढ़ाई साथ में की। पढ़ाई के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गये। कई सालों तक उन्होंने अलग-अलग शहरों में अलग-अलग जगहों पर काम किया। पर साल 2015 में जब उनकी एक बार फिर मुलाक़ात हुई, तो शहर की हालत देख वे हैरान थीं। बढ़ता प्रदुषण, सड़कों के किनारे लगे कचरे के ढेर, और सबसे ज़्यादा प्लास्टिक का कचरा अदि।
लगभग 15 साल तक कॉर्पोरेट जॉब करने के बाद ये दोनों ही कुछ नया करना चाहती थीं और फिर उन्होंने अपने शहर के लिए कुछ करने की ठानी। काफी वक़्त तक उन्होंने देश में प्लास्टिक के उत्पादन, कचरे, इस्तेमाल आदि पर रिसर्च किया। उन्होंने जाना कि प्लास्टिक वेस्ट के सबसे बड़े स्त्रोत- पॉलिथीन, प्लास्टिक की चम्मच, प्लेट, गिलास आदि।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2019/05/Astu.jpg)
"इस बेसिक रिसर्च के बाद हमने इन सबका विकल्प तलाशने पर ध्यान दिया। हमें लोगों को कुछ ऐसा देना था जिसे वे अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बना पाएं। यह कहना आसान है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें, लेकिन फिर क्या इस्तेमाल करें? इसलिए हमने पहले इस तरह के विकल्प तलाशे, फिर उनकी डिजाइनिंग और प्रोडक्शन पर काम किया," उन्होंने आगे बताया।
अस्तु-इको स्टार्टअप
दो सालों में इको-फ्रेंडली कॉन्सेप्ट पर काम करते हुए उन्होंने आख़िरकार साल 2017 में 'अस्तु इको' की शुरुआत की। 'अस्तु' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है 'रहने दो' और 'इको' का सीधा संबंध पर्यावरण से है तो इस स्टार्टअप का मतलब और उद्देश्य है- 'पर्यावरण को रहने दो'!
"बचपन में बंगलुरु को हम 'गार्डन सिटी' कहते थे क्योंकि यहाँ इतनी हरियाली और साफ़-सफाई थी। लेकिन आज जहाँ देखो वहां कूड़े-कचरे के ढेर हैं और सबसे ज़्यादा प्लास्टिक और यह इतना बढ़ गया है कि इसे 'गार्बेज सिटी' कहा जाने लगा। बस इसी बात ने मुझे और अनिता को प्रभावित किया कि हमें इस स्थिति को बदलने के लिए कुछ करना होगा," द बेटर इंडिया से बात करते हुए 'अस्तु इको' की को-फाउंडर तेजश्री मधु ने कहा।
बंगलुरु में स्थित यह स्टार्टअप 'पृथ्वी और पर्यावरण के अनुकूल' उत्पाद जैसे शॉपिंग बैग, क्रोकरी (प्लेट, गिलास, चम्मच), स्टील की स्ट्रॉ, बॉक्स आदि की डिजाइनिंग व निर्माण करता है। उनके दो प्लांट्स, जहाँ पर उत्पादों का निर्माण होता है, शिमोगा और होसुर में हैं। जहाँ उनकी टीम सिर्फ़ 2 लोगों से शुरू हुई थी, वहीं आज उनके पास 7 स्टाफ मेंबर हैं। इसके अलावा अपने उत्पादों के कच्चे माल के लिए वे अलग-अलग लोगों से टाई-अप करते हैं। इसी तरह उनके कई दर्जी के साथ भी टाई-अप हैं।
इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स
"आज हमारे पास 20 अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स हैं, जिनमें से 10 हमारे 'फ्लैगशिप प्रोडक्ट' हैं जिन्हें सबसे पहले हमने ही इन्वेंट किया है। इनमें एक एरेका क्रोकरी की पार्टी पैक, वैजी टू फ्रिज़ी बैग, स्टील स्ट्रॉ पैक (स्ट्रॉ, क्लीनर और पाउच), फॉरगेट मी नोट बैग, स्कार्फेब्ल बैग आदि शामिल हैं," तेजश्री ने कहा।
अस्तु इको के "वैजी टू फ्रिजी" बैग को बहुत पसंद किया जा रहा है। उचित कीमत के साथ यह बहुत ही अच्छा प्रोडक्ट है, जिसे आप कई चीज़ों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। सूती कपड़े से बने इस बैग में आठ अलग-अलग पाउच (अटेचेबल/नॉन- अटेचेबल) होते हैं, जिनमें कोई भी व्यक्ति अलग-अलग सब्ज़ी अलग-अलग पाउच में रख सकता है।
साथ ही, आप इस बैग को सीधा फ्रिज में रख सकते हैं। आपको फिर से सभी सब्जियों को अलग-अलग प्लास्टिक की टोकरी में रखने की ज़रूरत नहीं है। यह बैग अलग-अलग साइज़ में उपलब्ध है, जिसमें कॉपर बीच, गोल्डन पाम और सिल्वर फ़िर शामिल है।
कपड़े से बने इस बैग को आप आसानी से धोकर सालों-साल इस्तेमाल कर सकते हैं। इस बैग के इस्तेमाल से हर एक परिवार पूरे साल में लगभग 500 प्लास्टिक कवर्स का इस्तेमाल बंद कर सकता है।
इस बैग की सफलता के बाद अस्तु इको और भी कई इस तरह के प्रोडक्ट्स लेकर आया है, जिन्हें लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बना सकते हैं। तेजश्री बताती हैं कि उनका उद्देश्य लोगों को किसी भी तरह की शॉपिंग के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से रोकना है। और इसलिए उन्होंने शॉपिंग बैग्स में कई वैरायटी निकली हैं, जैसे कि फॉरगेट मी नोट बैग।
इसका मतलब है कि आप कहीं भी बाहर जाये तो यह बैग लेना न भूलें। इस बैग की ख़ासियत यह है कि इस बैग के साथ आपको रेडी-टू-स्टिक स्टील डोर हुक और एक 'फॉरगेट मी नोट' का टैग मिलता है। जिसे आप अपने दरवाजे के आस-पास या फिर दरवाजे पर लगा सकते हैं। इससे आपको बाहर-भीतर जाते समय बैग याद रहेगा। इसके अलावा, इस सूती बैग में एक क्लिप-ऑन भी लगाया गया है ताकि आप इस्तेमाल के बाद इसे रेडी-टू-स्टिक स्टील डोर हुक पर टांग दें।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2019/05/FNM-Collage2-3-555x500.jpg)
उनका एक और ख़ास प्रोडक्ट है 'स्टील स्ट्रॉ!' प्लास्टिक स्ट्रॉ के इस्तेमाल पर कई राज्यों में बैन लगने पर दुकानदार स्ट्रॉ के लिए इको-फ्रेंडली विकल्प तलाशने में जुटे हैं। वैसे तो कई पर्यावरण के अनुकूल विकल्प हैं पर अस्तु-इको आपको जो इक्ल्प देता है उसके लिए आपको केवल एक ही बार इन्वेस्ट करना होगा।
उन्होंने ख़ास तरह की स्टील स्ट्रॉ बनाई हैं, जो कि स्टेनलेस स्टील की बनी हैं और बार-बार इस्तेमाल की जा सकती हैं। दो स्ट्रॉ का यह पैक एक क्लीनर के साथ आता है, जिसकी मदद से आप आसानी से स्ट्रॉ को साफ़ कर सकते हैं और साथ ही, जुट का बना एक पाउच इन्हें रखने के लिए दिया जाता है। आप आसानी से अपने बैग में हर जगह इन्हें ले जा सकते हैं।
स्टील के अलावा उन्होंने 'पेपर स्ट्रॉ' का विकल्प भी लोगों के लिए रखा है। 'पेपर स्ट्रॉ' भी पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2019/05/स्ट्रॉ-.png)
इन कुछ प्रोडक्ट्स के आलावा उन्होंने ऐरेका नट यानी कि सुपारी/पुंगीफल की बनी क्रोकरी का पैक, ज़ीरो-प्लास्टिक ट्रेवल किट आदि भी डिजाईन किये हैं। उनके सभी प्रोडक्ट्स के लिए ग्राहकों की प्रतिक्रिया सकारात्मक ही रही है। न सिर्फ़ भारत में बल्कि अन्य देशों में उनके प्रोडक्ट्स के लिए बाज़ार उपलब्ध हो रहा है।
"हमारा उद्देश्य लोगों की लाइफस्टाइल से प्लास्टिक को बाहर करना है। इसके लिए हम बिल्कुल अलग और ख़ास तरह प्रोडक्ट्स लाने पर मेहनत कर रहे हैं, जो न सिर्फ़ इको-फ्रेंडली हों, बल्कि किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारें, जैसा कि कोई भी अन्य प्रोडक्ट करता है।"
प्रोडक्ट्स के बारे में और 'गो ग्रीन' के अभियान के बारे में जागरूकता लाने के लिए साल में एक बार प्लांटेशन ड्राइव भी अस्तु-इको द्वारा करवाई जाती है। उनका एक यूट्यूब चैनल भी है, जिस पर 'इको बीट' के नाम से उन्होंने एक सीरीज़ शुरू की है। इस सीरीज़ में वे छोटी-छोटी विडियो के ज़रिए लोगों को तरीके बताते हैं जिससे वे हर दिन एक प्रयास करके पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान दे सकते हैं।
अंत में तेजश्री सिर्फ़ इतना ही कहती हैं कि बातें करने से कुछ नहीं होगा, आपको आगे बढ़कर खुद में बदलाव लाना होगा। 'सिर्फ़ आज ही इस्तेमाल कर लूँ या फिर एक दिन तो चलता है,' इस तरह की सोच को पीछे छोड़ना होगा। यदि एक बार भी प्लास्टिक इस्तेमाल करने की गुंजाईश रही तो हम कभी भी पूरी तरह से प्लास्टिक फ्री नहीं हो पायेंगें।