महाराष्ट्र में मालवान के रहने वाले आर्किटेक्ट सुमित देवूलकर ने एक अनोखे और सस्टेनेबल तरीके से अपने शहर के टूरिज्म में योगदान देने का फैसला किया और बनाया विहारा होमस्टे। यहाँ आने वाले मेहमान नेचुरल मटेरियल्स से बने घर में रहने के साथ-साथ, स्थानीय संस्कृति को भी जान सकते हैं।
ओडिशा के देबरीगढ़ अभ्यारण्य के पास बसे गांव ढोड्रोकुसुम में, पिछले एक साल से सभी ईको-फ्रेंडली जीवन जी रहे हैं ताकि जंगल के सभी वन्य प्राणी भी प्राकृतिक माहौल में जी सकें। यह सब मुमकिन हुआ यहां की DFO अंशु प्रज्ञान दास की पहल की वजह से।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की शोभा बढ़ातीं इमारतों और हवेलियों के बीच, एक घर ऐसा है जो मिट्टी का बना है और अपनी सुंदरता से आस-पास से गुज़रने वालों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचता है। इसे देखकर किसी को भी लगेगा कि इस फार्महाउस को बनाने में सबसे महंगे और आधुनिक मटेरियल्स का इस्तेमाल किया गया होगा, लेकिन शून्य स्टूडियो की फाउंडर और आर्किटेक्ट श्रेया श्रीवास्तव कुछ और ही बताती हैं।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का जैन परिवार हमेशा से प्रकृति के बीच रहना और समय बिताना चाहता था। उनकी इस इच्छा को पूरी करने में उनका साथ दिया अर्किटेक्ट श्रेया श्रीवास्तव ने। उन्होंने एक ऐसा फार्म हाउस बनाया है जो इको-फ्रेंडली होने के साथ-साथ बेहद खूबसूरत भी है।
कोयंबटूर में A PLUS R आर्किटेक्चर फर्म चलानेवाले राघव ने विदेश से रोबॉटिक आर्किटेक्चर की पढ़ाई की है और तकरीबन 40 देशों की यात्रा भी की है। बावजूद इसके वह पारम्परिक तकनीक से बने भारतीय घरों को सबसे ज्यादा सस्टेनेबल मानते हैं। इसका अच्छा उदाहरण पेश करने के लिए उन्होंने अपने परिवार के लिए एक जीरो कार्बन फुट प्रिंट वाला घर तैयार किया है, जिसका नाम है Casa Roca!
पेशे से पत्रकार अंकित अरोड़ा साइकिल से पिछले चार साल में भारत के 15 राज्यों की यात्रा की है। इस दौरान वह 600 परिवारों के साथ रहे हैं। यात्रा से मिले अनुभव से अब वह एक सस्टेनेबल गांव का मॉडल बना रहे हैं।
मौजूदा कूकिंग स्टोव की स्थिति को देखते हुए IIT Guwahati के प्रोफेसर, पी मुथुकुमार की अगुवाई में एक ऐसे स्टोव को डिजाइन किया गया है, जिससे न सिर्फ 50% तक ईंधन की बचत हो सकती है, बल्कि इससे 30 फीसदी समय भी बचता है।
बेंगलुरु में इको फ्रेंडली घर में रहने वाले चोक्कलिंगम और उनका परिवार पिछले लगभग 14 सालों से अपनी जीवनशैली को प्रकृति के अनुकूल ढालने के लिए प्रयासरत हैं।
छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) के पातालकोट निवासी, सुकनसी भारती ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और पर्यावरण को बचाने के उदेश्य से, पत्तों से कटोरी (दौना) बनाना सीखा। आज वह, आस-पास के गावों और होटलों में अपने दौने बेच रहे हैं।