बिहार के गया जिले के फतेहपुर गांव में एक 45 वर्षीय नेत्रहीन व्यक्ति, साधु माझी ने, न केवल अपने घर में शौचालय बनवाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि गाँव के बाकी लोगों को भी जागरूक किया जाये। आज यह गाँव खुला शौच मुक्त गाँव हैं और इसका पूरा श्रेय माझी को ही जाता है।
दरअसल, पहले इस गाँव में किसी भी घर में शौचालय नहीं था। ऐसे में सभी लोग खुले में ही शौच जाते थे। माझी देख नहीं सकते थे, इसलिए उनके और उनके परिवार के लिए यह और भी समस्या वाली बात थी।
एक बार माझी ने अपनी एक पड़ोसी, झालो देवी को घर में ही टॉयलेट होने फायदों के बारे में बात करते हुए सुना। झालो देवी भी अपने घर में ही शौचालय बनवाना चाहती थी ताकि उनकी बहु-बेटियों को तकलीफ न हो। लेकिन वे ऐसा कर नहीं पायी।
लेकिन हाल ही में कुछ समय पहले झालो देवी ने स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत बने एक शौचालय को देखा और उसे बनाने की प्रक्रिया समझी। जल्द ही झालो देवी और साधु माझी ने अपने घरों में टॉयलेट बनवाने की प्रशुरुआत कर दी। इसमें उन्हें वाटरऐड संगठन से सहायता मिली।
अपने घर में शौचालय बनने के बाद माझी ने और भी लोगों को इसकी सलाह दी और उन्हें घरों में ही टॉयलेट बनवाने को कहा। लेकिन किसी ने उसकी बात पर ज्यादा गौर नहीं किया। लेकिन फिर भी माझी ने हार नहीं मानी। बल्कि उन्होंने तो लोगों को जागरूक करने का और भी उम्दा तरीका खोज निकला।
उन्होंने अपनी ही स्थानीय भाषा, 'मगही' में एक गीत बनाया, जिसे वे गली-गली जाकर ढपली की थाप पर गाते थे। इस गीत के जरिये वे लोगों को घर में शौचालय होने के फायदे के बारे में बताते। लगभग 1 महीने तक यह सिलसिला जारी रहा और धीरे-धीरे गाँव में इस विषय पर चर्चा होने लगी।
सबसे पहले माझी के बड़े भाई ने अपने यहां शौचालय बनवाया। फिर बाकी सभी गाँववाले भी एक-एक कर, इसमें शामिल होते गए। और देखते ही देखते यह गाँव पूर्ण रुप से खुला शौच मुक्त हो गया। माझी न केवल अपने गाँव के लिए बल्कि आस-पास के गाँवों के लिए भी एक मिसाल हैं।
संपादन - मानबी कटोच
Follow Us