अभिषेक ने लू कैफे की शुरुआत, अपनी कंपनी एक्जोरा एफएम के तहत की है। जिसके जरिए, वह सार्वजनिक शौचालयों को नया रूप देने के साथ-साथ, इसके व्यवहार को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
मध्य-प्रदेश से ताल्लुक रखने वाली जूही झा ने अपने जीवन के 12 साल सार्वजनिक शौचालय भवन के कमरे में बिताये हैं। उनके पिता शौचालय में कर्मचारी थे। लेकिन आज जूही खो-खो में चैंपियन हैं। उन्हें सरकार ने विक्रम पुरुस्कार से सम्मानित किया है।
बिहार के गया जिले के फतेहपुर गांव में एक नेत्रहीन व्यक्ति, साधु माझी ने न केवल अपने घर में शौचालय बनवाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि गांव के बाकी लोगों को भी जागरूक किया जाये। आज यह गाँव खुला शौच मुक्त गाँव हैं और इसका पूरा श्रेय माझी को ही जाता है।
आईआईटी-दिल्ली के दो छात्र, हैरी सहरावत और अर्चित अग्रवाल ने महिलाओं के लिए एक डिवाइस- सनफी बनाया है, जिसकी मदद से वे सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल सुरक्षित रूप से कर सकती हैं। इस डिवाइस की कीमत मात्र 10 रूपये है और इसे बायोडिग्रेडेबल पेपर से बनाया गया है।