/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2021/11/jagmalbhai-garden-.jpg)
किसी भी क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए सकारात्मक सोच की जरूरत होती है। इंसान अगर कुछ करने की ठान ले, तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं और फिर बड़े से बड़ा काम भी आसान बन जाता है। अक्सर हम और आप पर्यावरण संकट की बात तो करते हैं, लेकिन हममें से बहुत कम लोगों ने इस दिशा में कुछ करने का हौसला दिखाया। लेकिन आज हम आपको गुजरात के एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने खुद के खर्च से एक छोटा-सा जंगल और बच्चों का पार्क (Children's park) तैयार किया है।
हम बात कर रहे हैं, राजकोट जिला स्थित उपलेटा तालुका के मजेठी गांव में रहने वाले जगमलभाई डांगर की। जगमलभाई सालों से पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वह ‘वेस्ट को बेस्ट’ में बदलने, गाय आधारित जैविक खेती और बागवानी जैसे कामों में भी माहिर हैं।
द बेटर इंडिया ने जगमलभाई से बात की और उनके काम के बारे में जानने की कोशिश की।
जगमलभाई कहते हैं, "अगर हम प्रकृति के पास रहने या अपने लिए एक शुद्ध वातावरण की चाह रखते हैं, तो हमें अपने आसपास खुद ऐसा इको-सिस्टम खड़ा करना होगा। मैंने इस बेहतरीन गार्डन (Children's park) को बनाने के लिए 18 साल मेहनत की है।"
खुद के खर्च पर बनाया सबके लिए गार्डन (Children's park)
पेशे से ड्राइवर जगमलभाई ने, अपनी जवानी के दिनों में ट्रक, ट्रैक्टर और जीप जैसी सभी गाड़ियां चलाई हैं। 18 साल पहले, उन्होंने तीन बीघा जमीन खरीदी थी।
वह कहते हैं, "जिस जगह पर मैंने खेती के लिए जमीन ली थी, उसके आस-पास का सारा इलाका बंजर और वीरान था। तब से, मैंने ठान लिया था कि मुझे इसका रूप बदलना है।"
शुरुआत में, उन्होंने अपने खेत के पास दो-तीन पेड़ लगाए थे। इसके बाद तो, उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिछले 18 साल से वह लगातार पौधारोपण कर रहे हैं। उनकी मेहनत का ही परिणाम है कि आज उनके खेत में पांच से छह हजार पेड़ लगे हुए हैं। जिसमें करीब 200 पेड़ 20 से 25 फीट की ऊंचाई तक पहुंच गए हैं। ये सभी सौराष्ट्र के आसपास प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़ हैं, जिनमें आम, सेतुर, शीशम, आवंला शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने विशेष रूप से, इलाके में विलुप्त हो चुके वनस्पतियों को उगाने पर बहुत जोर दिया है।
जगमलभाई ने 2016 के उरी हमले में शहीद हुए सैनिकों की याद में एक शहीद वन भी बनाया है। जिसमें उन्होंने 18 शहीदों की याद में 18 बरगद के पेड़ लगाए थे। वे सभी पौधे आज अच्छी तरह से विकसित हो चुके हैं। जगमलभाई का मानना है कि ये पौधे सालों-साल यहां (Children's park) आने वाले बच्चों को देश के इन शहीदों की याद दिलाएंगे।
जगमलभाई गार्डन में लगे फलों को खुद कभी नहीं तोड़ते हैं। बल्कि गार्डन (Children's park) में खेलने आए बच्चे इन फलों को तोड़कर खाते हैं। जो फल बच्चों की नजर से बच जाते हैं, उन्हें पक्षी खाते हैं। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा पक्षियों को आकर्षित करने के लिए ही यहां फलों के पौधे लगाएं हैं।
वेस्ट चीजों से बनाई बालवाटिका
पेड़-पौधों के शौक़ीन जगमलभाई, अपने रिटायरमेंट जीवन को पूरी तरह से प्रकृति की सेवा में गुजार रहे हैं। इसके अलावा, वह दूसरों में भी पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा करने का काम कर रहे हैं। वह लोगों को मुफ्त में पौधे बांटते हैं।
अपनी आजीविका चलाने के लिए, वह अपनी तीन बीघा जमीन पर गाय आधारित खेती करके गाजर, टमाटर और बैगन जैसी सब्जियां उगा रहे हैं।
पेड़ लगाने के साथ-साथ वह पक्षियों के लिए घोंसले भी बनाते हैं। उन्होंने बताया, "गांव के शमशान में अंतिम संस्कार के बाद, लोग अपने प्रियजनों के लिए मिट्टी के चार घड़े लाकर रखते थे। मैंने इन घड़ों से घोंसला बनाना शुरू किया। लोग मेरा मजाक भी उड़ाते थे, लेकिन मैं किसी की परवाह किए बिना अपना काम करता हूं, जो पर्यावरण के लिए हितकारी होता है।"
उन्होंने बताया कि आज कई लोग, उन्हें लकड़ी और मिट्टी के बने घोंसले दे जाते हैं। वहीं गांववालों के घर से निकले कचरे से, उन्होंने गार्डन में बैठने की व्यवस्था और बच्चों के लिए कसरत करने की जगह (Children's park) बनाई है।
उन्होंने राहगीरों और जंगली जानवरों के लिए पानी के फव्वारे और तालाब भी बनाया है। वहीं इंसानों के लिए पानी की परब बनाई है। इस परब में पानी को फ़िल्टर करने के लिए मिट्टी और रेत का इस्तेमाल किया जाता है। हर साल मिट्टी और रेत की परब को बदला जाता है। इस तकनीक से पानी साफ होने के साथ ठंडा भी होता है।
जगमलभाई ने गार्डन (Children's park) बनाने के लिए अब तक किसी से आर्थिक मदद नहीं ली है। उनकी वजह से ही, गांव में बच्चों और बुजुर्गों के लिए एक सुंदर गार्डन बन गया है।
वह कहते हैं, "मैं हमेशा कोशिश करता हूं कि कैसे किसी चीज को रीसायकल करके उपयोग में लाया जा सके। इसी सिद्धांत के आधार पर, मैंने बिना ज्यादा पैसे खर्च किए यह बालवाटिका बनाई है। आज जब वहां (Children's park) बच्चे खेलते हैं तो मुझे आनंद मिलता है।"
उन्होंने ड्रिप सिंचाई के लिए पाइप, बांस का इस्तेमाल किया है। वहीं दूसरी बेकार वस्तुओं की मदद से, गार्डन में झूले और बैठने के लिए सीट तैयार किया है। इन सभी चीजों का डिज़ाइन उन्होंने खुद तैयार किया है। गांव भर के कचरे को रीसायकल कर, उन्होंने इस बालवाटिका को तैयार किया है।
जगमलभाई ने शादी नहीं की है। वह यहां अपने माता-पिता और एक गाय के साथ रहते हैं। अपनी दिनचर्या के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, "मैं सुबह चार बजे उठ जाता हूं। जिसके बाद, मैं साफ-सफाई और गाय की सेवा का काम करता हूं। दोपहर 12 बजे तक खेत में काम करने के बाद, मैं पेड़-पौधों और गार्डन (Children's park) की देखरेख का काम करता हूं।"
सालों से वह इसी तरह का जीवन जी रहे हैं। कभी-कभी तो वह महीनों तक अपने गांव भी नहीं जा पाते हैं।
आज के समय में, जब इंसान अपने और अपनों के लिए भी समय नहीं निकाल पाता, ऐसे में जगमलभाई की जीवनशैली और पर्यावरण के प्रति उनके लगाव की जितनी तारीफ की जाए, कम है। द बेटर इंडिया प्रकृति की सेवा करने वाले जगमलभाई के जज्बे को सलाम करता है।
मूल लेख- किशन दवे
संपादन- जी एन झा
यह भी पढ़ें – कच्छ का रण: जानिए 4000+ सोलर पैनल से कैसे आबाद हुआ ‘नमक का रेगिस्तान’
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2021/11/jagmalbhai-garden-1-1024x580.jpg)
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2021/11/jagmalbhai-garden-3-1024x580.jpg)
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2021/11/jagmalbhai-garden-5-1024x580.jpg)
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2021/11/jagmalbhai-garden-2-1024x580.jpg)