पढ़िए, उन जांबाज़ महिला बाइकर्स की कहानियां जिन्होंने बदल दी लोगों की सोच!

ये दूसरी महिलाओं के लिए मिसाल तो बन ही रही हैं, साथ ही उन्हें खुद के सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित भी कर रही हैं!

पढ़िए, उन जांबाज़ महिला बाइकर्स की कहानियां जिन्होंने बदल दी लोगों की सोच!

क औरत जितनी ममतामयी और कोमल होती है, उतनी ही मजबूत और फौलादी भी। बस जरूरत है उसे अपने अंदर की ताकत को पहचानने की। हमारे समाज में ऐसे कई काम हैं, जिन पर पुरुषों का आधिपत्य बना हुआ है हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है, लेकिन सदियों से बनी मानसिकता के चलते महिलाओं के लिए यह लक्ष्मण रेखा खींची गई है। बहुत-सी महिलाएं इस सीमा को लांघने की हिम्मत नहीं कर पातीं, लेकिन कई ऐसी भी हैं, जिन्होंने ऐसी हर लकीर को मिटा दिया है। आज हम आपको मिलाने जा रहे हैं ऐसी ही कुछ महिला बाइकर्स से, जिन्होंने न कभी किसी के तानों की परवाह की और न यह सोच कर हिम्मत हारी कि लोग क्या कहेंगे।

1. पल्लवी फौजदार : माँ की जिम्मेदारी निभाने के साथ आसान नहीं है एक बाइकर का सफ़र

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बाइक राइडिंग में विश्व रिकार्ड बनाने वाली पल्लवी फौजदार

लखनऊ की रहने वाली पल्लवी फौजदार ने एक पत्नी और माँ की भूमिका को निभाने के साथ-साथ अपने शौक को भी जिंदा रखा। यह आसान नहीं था, लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं कि किया नहीं जा सके। बाइक राइडिंग में विश्व रिकॉर्ड कायम करने वाली पल्लवी 18774 फीट की ऊंचाई तक बाइक ले जाने वाली देश की पहली महिला बाइकर हैं और इनका नाम लिम्का बुक में भी दर्ज है।

उन्होंने बताया कि घूमने-फिरने का शौक उन्हें शुरू से था।

वह कहती हैं, "पिता जी के पास तब राजदूत मोटरसाइकिल हुआ करती थी। पता नहीं क्यों, मुझे उस गाड़ी से बहुत लगाव था। बाइक का शौक उम्र के साथ-साथ बढ़ता गया। मुझे कभी किसी ने बाइक चलानी नहीं सिखाई, बल्कि मैंने खुद गिरते-पड़ते चलाना सीखा। मेरे घर में जब भी कोई रिश्तेदार बाइक से आते थे, मेरी नज़र उसकी चाबी पर होती और मौका पाते ही मैं बाइक लेकर गायब हो जाती थी। यहीं से शुरू हुआ मेरे बाइकर बनने का सफ़र।"

 

डीलए वीमेन ऑफ द ईयर 2017 रह चुकीं पल्लवी फौजदार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सम्मानित कर चुके हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार से नवाज़ा है।

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आज सबको पल्लवी पर गर्व है, लेकिन एक समय था जब लोगों को पल्लवी का बाइक चलाना बिल्कुल मंजूर नहीं था।

वे बताती हैं, “आज का समय तो फिर भी काफी बदल चुका है, लेकिन जब मैंने बाइक चलाना शुरू किया था, तब यह लड़कियों के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। या यूँ कहें कि लड़कियों को इजाजत ही नहीं थी बाइक चलाने की। लोग मुझसे कहते थे कि लड़कों से टक्कर लेने की कोशिश करके क्या बताना चाहती हो सबको, लड़कों के शौक पालोगी तो क्या लड़का हो जाओगी? लेकिन इन तानों ने मेरी जिद को और भी मजबूत किया। मैंने तय कर लिया कि अब तो बाइक जरूर चलाऊंगी।“

 

पल्लवी की पहली ट्रिप लद्दाख की थी। यह ट्रिप 18 दिन की थी और इसमें उन्होंने कुल 16 दर्रे पार किए थे, जिनमें 8 तो 5000 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर थे। यह उनका पहला विश्व रिकॉर्ड था। अब तक उनके नाम चार विश्व रिकॉर्ड दर्ज हो चुके हैं।

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वे अकेले जंगलों और पहाड़ों पर बाइक लेकर निकल पड़ती हैं। उन्हें इतनी हिम्मत कहाँ से मिलती है, यह पूछने पर वे बताती हैं कि जिंदगी की कुछ घटनाएं आपको बहुत कुछ सिखा जाती हैं। उन्होंने बताया कि एक बार उनके पिता जी का एक्सीडेंट हुआ और वे काफी समय तक अस्पताल में रहे। वे कोई काम नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनकी उंगलियां काट दी गई थीं।

"जब मैं उनके लिए मेडिसिन लेने जाती थी, तो बाइक के आगे दवाओं का कॉर्टर रखती थी और यहीं से मेरी प्रैक्टिस शुरू हुई। मैं हर दिन खुद एक टास्क लेती थी कि ब्रेक नहीं लगाना है। अगर ब्रेक लगाऊंगी तो पैर नीचे रखने होंगे और पैर नीचे रखूंगी तो कॉर्टर गिर जाएगा। कहने को तो यह बहुत छोटी-सी बात थी, लेकिन यही करते-करते मैं बेहतर राइडर बनती चली गई। जब पहली बार मैं अकेले पहाड़ों पर गई तो कभी-कभी डर लगता था कि कहीं गलत फैसला तो नहीं ले लिया, लेकिन अगले ही पल आत्मविश्वास से भर जाती थी यह सोच कर कि मेरे अंदर हिम्मत है और फिर दोबारा सफ़र शुरू कर देती थी। अब मुझे डर नहीं लगता, बल्कि बाइक चलाने से हिम्मत और भी बढ़ती है,"  उन्होंने कुछ इस तरह अपनी हिम्मत की कहानी सुनाई।

2. नवाबी बुर्का राइडर आयशा, जिसे देख लोग हो जाते हैं हैरान

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लखनऊ की आयशा आमीन को लोग नवाबी बुर्का राइडर के नाम से भी जानते हैं।

लखनऊ की रहने वाली आयशा आमीन बुर्का पहन कर जब बाइक से सड़कों पर निकलती हैं तो लोग उन्हें हैरानी भरी निग़ाहों से देखते हैं। लेकिन इससे आयशा ने बाइक पर कभी ब्रेक नहीं लगाई, बल्कि एक्सीलेटर और तेज ही किया।

 

आयशा ने बताया, "हम कई भाई-बहन थे और बचपन में जब मेरे बाकी भाई-बहन गुड़िया, किचनसेट और दूसरे खिलौनों से खेलते थे, तो मुझे बाइक ही भाती थी। धीरे-धीरे यह शौक दीवानगी में बदलता चला गया। मुझे याद है कि तब मैं छठी क्लास में थी, जब फ़िल्म ‘धूम’ रिलीज हुई थी। उसमें तरह-तरह की स्पोर्ट्स बाइक्स दिखाई गई थीं, जिन्होंने मेरे दिल में घर कर लिया था। मैंने सोच लिया था कि मैं बड़ी होकर इसी तरह बाइक चलाऊंगी।

आयशा आगे बताती हैं, “हमारे समुदाय में कहीं न कहीं अभी भी लड़कियों को इतने खुलेपन की इजाजत नहीं है, लेकिन इसके बावजूद मेरे घर में कभी किसी ने मुझे मेरे इस सपने को पूरा करने से नहीं रोका। बाइक चलाने वाला लड़का है या लड़की, यह दीवार हमने ही खड़ी की है। जितने भी विज्ञापन आप बाइक के देखेंगे, उनमें लड़का होगा और स्कूटी में लड़की, जबकि ऐसा नहीं है कि हम बाइक नहीं चला सकते और फिर लोग कौन होते हैं यह फैसला करने वाले।”

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आने वाले समय में आयशा इंटरनेशनल राइडिंग में रिकॉर्ड बनाना चाहती हैं। इसके लिए वे तैयारी भी कर रही हैं। वे कहती हैं कि बुर्का पहनकर बाइक चलाने का कारण यह है कि हमारी कम्युनिटी में अभी भी लोगों को लगता है कि बुर्का महिलाओं के लिए एक बंदिश है और उसे पहनकर वे कुछ नहीं कर सकतीं। इसलिए मैं हमेशा बुर्का पहनकर ही राइड करती हूं, क्योंकि ऐसा नहीं है और यह सब सिर्फ़ हमारी सोच का फेर है। मैं आजकल स्पोर्ट्स बाइक चला रही हूँ, क्योंकि इसकी ड्रूम-ड्रूम की आवाज़ मुझे मानो ताकत देती है।

3. फरयाल : बाइक राइडिंग के शौक को समाज-सेवा से जोड़ दिया

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फरयाल फातिमा ने अपने बाइक राइडिंग के शौक को समाजसेवा से जोड़ लिया है।

लखनऊ की रहने वाली फरयाल हमेशा सोचती थीं कि अगर लड़कियाँ अब घूम-फिर रही हैं, सोशल मीडिया पर एक्टिव हो रही हैं, वे धीरे-धीरे वह सब कुछ कर रही हैं, जो अब तक नहीं करती थीं तो फिर बाइक चलाने में क्या दिक्कत है, उसे भी हमारी मर्जी पर छोड़ दें। अभी भी कार चलाने वाली अगर महिला है तो लोगों की नजरें नहीं मुड़तीं, लेकिन अगर बाइकर महिला है तो यह बात उन्हें हैरान करने वाली लगती है। वे चाहती हैं कि यह अंतर भी धीरे-धीरे खत्म हो जाए।

फरयाल ने ‘फ्लाइंग राइडर्स’ नाम से अपना एक ग्रुप बनाया है, जो समाज-सेवा से जुड़े काम भी करता है।

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फरयाल ने बताया, “शुरुआत में जब बाइक चलानी शुरू की थी, तो आस-पास के लोगों को यह नहीं पसंद आया कई बार ताने सुनने को मिले, लेकिन हमने वो एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिए। अगर आपका खुद का फैसला मजबूत है, तो कोई ताकत उसे बदल नहीं सकती। मेरे साथ भी यही था। मैंने ठान लिया था कि बाइक तो मैं चलाऊंगी, फिर कोई कुछ भी कहे।”

 

धीरे-धीरे फरयाल ने अपने इस शौक को समाज-सेवा से जोड़ दिया। वे बताती हैं कि हम सब कभी ग्रुप बनाकर किसी बस्ती में कुछ सामान बांटने निकल जाते हैं, तो कभी किसी गाँव में कुछ समस्याएँ पता चलती हैं, तो वहाँ चल देते हैं उन्हें निपटाने। जैसे लखनऊ में अभी बड़ा मंगल चलता है, जिसमें लोग भंडारे का आयोजन करते हैं तो हम धार्मिक सद्भावना को बढ़ाने के लिए बड़ा मंगल और इफ्तार, दोनों ही एक साथ करा रहे हैं। यह एक कोशिश है कुछ बेहतर करने और किसी के काम आ जाने की।

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फरयाल ने पिछले साल ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान के लिए बाइक राइडिंग में भाग लिया था। यह लखनऊ से इलाहाबाद होते हुए बनारस तक का सफर था। उनके इस प्रयास के लिए उन्हें पूर्व महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने सम्मानित भी किया था। अभी कुछ दिनों पहले ही महिला सशक्तिकरण के लिए फरयाल ने अभिनेता अक्षय कुमार के साथ बाइक राइडिंग की है।

ये सब वो महिलाएं हैं जो घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख दे रही हैं और दूसरों के लिए मिसाल पेश कर रही हैं। द बेटर इंडिया ऐसी सशक्त और मजबूत महिलाओं को सलाम करता है।    

 

संपादन – मनोज झा


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