हरियाणा में झज्जर के एक गाँव में रहने वाले कुलदीप सुहाग, अपनी दो एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर रहे हैं। इस काम में उनके घर के सभी छोटे-बड़े बच्चे उनकी मदद कर रहे हैं।
चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं, वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती है। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी स्कूल की सबसे बेसिक आवश्यकता होती है। इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूल इन सुविधाओं से दूर है। "
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के दम दम कैंटोनमेंट में ज़ोमैटो का एक फ़ूड डिलीवरी एजेंट हर दिन फूटपाथ पर गुज़र-बसर करने वाले मासूम बच्चों का हर दिन पेट भर रहा है। इन गरीब बच्चों के बीच 'रोल काकू' के नाम से मशहूर पथिकृत साहा दुनिया को सीखा रहे हैं कि कैसे अच्छाई का एक छोटा-सा कदम समाज में एक अहम बदलाव ला सकता है।
शशि रायगढ़ के डोंगीपानी गांव में प्राइमरी स्कूल के शिक्षक हैं। उन्होंने स्कूल के बच्चों को अंग्रेजी बोलना, लिखना और पढ़ना सिखाया है और आज स्कूल के बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते है।
32 वर्षीय देव कुमार वर्मा का जन्म झारखंड के धनबाद जिले के कतरास गाँव में हुआ। उनके पिता कोयला मज़दूर थे, लेकिन उन्होंने पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी हासिल की। आज देव और उनकी पत्नी, अपने गाँव एक कोयला मज़दूरों के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देकर उनका जीवन संवार रहे हैं!
22 वर्षीय श्री निवास झा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से एम. ए कर रहे हैं। मूलतः बिहार के मधुबनी से ताल्लुक रखने वाले श्री निवास का परिवार भोपाल में रहता है। साल 2015 में भोपाल के अन्ना नगर स्लम में रहने वाले बच्चों के जीवन में शिक्षा का प्रकाश फैलाने के लिए उन्होंने 'आरोह तमसो ज्योति' पहल की शूरुआत की।