Placeholder canvas

छुट्टी के दिन दिहाड़ी मज़दूरों के बच्चों को पढ़ाती है अंकिता, आज अंग्रेज़ी में अव्वल है ये बच्चे!

दो साल पहले अंकिता ने इन बच्चों में शिक्षा की अलख जगाकर, इन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरीत किया और 'तालीम एक प्रयास' की शुरुआत की और आज इस पहल के माध्यम से वे लगभग 60 बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है ।

जो बच्चे कल तक पढ़ाई के महत्व से अंजान थे और अपना ज़्यादातर समय गलियों और चौराहों में खेलने में बिता दिया करते थे, वे अब न सिर्फ पढ़ाई के महत्व को समझ रहे हैं, बल्कि अपनी आंखों में कुछ बनने का सपना संजोयें नज़र आते हैं।

यह सब संभव हुआ है रायपुर, छत्तीसगढ़ की अंकिता जैन के प्रयासों से, जिन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की है और वर्तमान में एक सामाजिक संस्था के लिए काम करती हैं।

अंकिता जैन

दो साल पहले अंकिता ने इन बच्चों में शिक्षा की अलख जगाकर, इन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरीत किया और ‘तालीम एक प्रयास’ की शुरुआत की और आज इस पहल के माध्यम से वे लगभग 60 बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है ।

‘तालीम एक प्रयास’

‘तालीम एक प्रयास’ पहल के माध्यम से अंकिता रायपुर के आदर्श नगर बस्ती के बच्चों को पिछले दो साल से पढ़ा रही है। इनमें से ज़्यादातर बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता दिहाड़ी-मजदूरी करके अपना घर चलाते हैं। दो साल पहले इस बस्ती में शिक्षा को लेकर न कोई विशेष जागरूकता थी और न ही बच्चों को पढ़ने में कोई दिलचस्पी। तालीम के माध्यम से इन बच्चों में पढ़ाई के प्रति जागरूकता लाने का काम अंकिता लगातार दो सालों से कर रही है। समय-समय पर अधिक से अधिक बच्चों को इस पहल से जोड़ने के लिए अंकिता इन्हें नई कॉपी और स्टेशनरी आदि भी उपलब्ध कराती है।

chattisgarh

शहर के कई युवा भी अब समय-समय पर इस नेक काम में अंकिता का साथ देते हैं, इनमें रोशनी और आकांक्षा विशेष सहयोगी रही हैं, जो जब भी समय मिलता है अंकिता के इस कार्य मे उनकी मदद करती है।

कैसे हुई शुरुआत

chattisgarh

पढ़ाई के प्रति अंकिता की बचपन से ही रुचि रही है और ज़रूरतमंद की मदद करना उन्हें हमेशा से ही अच्छा लगता था। यही वजह है कि वे अपने काम से लौटते वक्त जब बस्ती के बच्चों की स्थिति देखती, तो उनके मन में इन बच्चों के लिए कुछ करने की इच्छा जागा करती।

“बस्ती के बच्चे हमेशा या तो खेलते रहते या फिर खाली बैठे समय व्यर्थ करते। एक दिन मैंने गाड़ी रोककर बच्चों से बात की, तो पता चला कि इनमें से ज़्यादातर बच्चे स्कूल ही नहीं जाते। जो बच्चे स्कूल जाते थे, वो भी सिर्फ मिड डे मील के नाम पर, जब मैंने पूछा कि आप लोग बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं, तो सब चुप हो गए,” अंकिता बताती है।

बच्चों की वह ख़ामोशी उन्हें बेहद असहज लगी।

अंकिता ने आगे बताया, “सब बच्चे मुझसे पूछने लगे कि क्या आप हमें पढ़ाने आएँगी? अगले दिन सुबह ही मैंने तय कर लिया कि अब इन बच्चों को मैं पढ़ाऊंगी।”

बस फिर क्या था, गुरु पूर्णिमा के दिन अंकिता ने इस नेक काम की शुरुआत कर दी। बच्चों और उनके माता-पिता को समझाना थोड़ा मुश्किल ज़रूर था पर उनकी मजबूत इच्छाशक्ति के आगे सारी मुश्किलों ने घुटने टेक दिए।

आसान नहीं थी डगर 

chattisgarh

अंकिता कहती है, “बड़ा मुश्किल काम था बस्ती वालों को विश्वास दिलाना कि मैं निस्वार्थ भाव से बच्चों को पढ़ाने आई हूँ।इसके साथ साथ-बच्चों को जोड़े रखना भी आसान तो नहीं था पर जो मैंने उन्हें कुछ उनकी पसंद की चीज़ें, गिफ्ट और फनी गेम खिलाकर, यह भी कर लिया।”

कई बार कुछ असामाजिक तत्त्व अंकिता की ऐसे भी कहकर हँसी उड़ाते थे कि ‘ये देखो मैडम जी पढ़ाने आई है’, लेकिन अंकिता ने हमेशा इस बात को याद रखा कि नेक राह में चलने वालों को बहुत परेशानियाँ आती है पर हिम्मत और साहस से काम लेने में ही भलाई होती है।

“मैं उन लोगों की बातों पर ध्यान न देते हुए, बच्चों को निरंतर पढ़ाती रही और 5 महीने बाद मैडम जी नाम से चिढ़ाने वाले लोग ही व्यवस्था में सहयोग करने लगे,” अंकिता ने मुस्कुराते हुए बताया।

अंकिता हफ्ते में 2 बार इन बच्चों को पढ़ाने जाती है। शुरुआत में बच्चों को पढ़ने के लिए बैठाने में उन्हें काफी मुश्किलें आई, लेकिन उनका दिल जीतने के लिए उन्होंने खेल-खेल में बच्चों को अपने से जोड़ा। जब बच्चों के साथ अच्छे से तालमेल बनने लगा तो इन्हें पढ़ाना शुरू किया। वे इंग्लिश, मैथ्स और हिंदी विषय पर ज़्यादा से ज़्यादा फोकस करती है, क्यूंकि अधिकाशं बच्चों को इन्हीं विषयों में ज्यादा मुश्किलें आती है। इतना ही नहीं पढाई के साथ-साथ सामान्य ज्ञान की भी एक विशेष क्लास लगती है, जिसमें देश और दुनिया की तमाम जानाकरी बच्चों को सरल शब्दों में दी जाती है।

बच्चों को आगे बढ़ता देख मिलता है सुकून

chattisgarh
बच्चों के बीच ड्राइंग बनाते लेखक जिनेन्द्र पारख

अंकिता बताती है, “जो बच्चे कभी इंग्लिश में अपना नाम नहीं लिख पाते थे, वे अब इंग्लिश में अपना पूरा इंट्रोडक्शन देते हैं। जो मैथ्स का नाम सुनकर ही डरते थे, वे कब फटाफट जोड़-घटाना व गुणा-भाग कर लेते हैं। तात्कालिक भाषण और निबंध में हिस्सा लेकर अव्वल आते हैं, जिसे देखकर मुझे बहुत खुशी होती है।”

इन बच्चों के माता पिता की आँखों में सुकून है कि अब इनके बच्चे अपना समय व्यर्थ नहीं करते और वे भी अब कुछ बनने का सपना देखते हैं। अंकिता का सपना है कि वो ऐसे बच्चों के लिए एक स्कूल खोले, जहां सारी सुविधाएँ हो और बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके।

इन कक्षाओं की शुरुआत करने का मकसद बच्चों को शिक्षा के साथ जोड़ना और उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास करना था। इसके बाद जब पढ़ाई के प्रति बच्चों का भी सकारात्मक रुझान देखने को मिला तो अंकिता का हौंसला और बढ़ गया। गरीब बच्चों को पढ़ाने का विचार तो शायद हममें से बहुत लोगों के ज़हन में आता है, लेकिन उस विचार को ज़मीन पर अंकिता जैन जैसे लोग ही ला रहे हैं। आज समाज में बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं, जिनको देख कर असहजपन महसूस होता है, क्योंकि इस समाज की परेशानियों और उनका निदान करने का जिम्मा सरकार पर होता है।

दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो समाज में रहकर इन सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए आगे भी बढ़ते हैं और अपने जीवन को समाज के कार्यो में लगाते हैं। लेकिन जब कोई अंकिता जैन जैसी युवा सोच समाज की परेशानियों से जुड़कर उनके समाधान के लिए कदम बढ़ाती है, तो वह काबिल-ए-तारीफ़ होता है।

इस नेक पहल से जुड़ने के लिए, या फिर बच्चों की शिक्षा में योगदान देने हेतु आप jainankita095@gmail.com पर संपर्क कर सकते है।

संपादन – मानबी कटोच
ऑटो-ड्राईवर ने गर्भवती महिला को पहुँचाया अस्पताल, 18 दिनों तक रखा नवजात बच्चे का ख्याल!


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X