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प्रेरक लाइब्रेरियन: रोज़ 4 किमी पैदल चलकर, गृहिणियों और बुजुर्गों तक पहुंचाती हैं किताबें

By निशा डागर

केरल के वायनाड जिले में रहने वाली 64 वर्षीया राधामणि, ‘प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी’ नामक एक स्थानीय लाइब्रेरी में काम करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनका काम लाइब्रेरी में बैठकर लोगों को किताबें देना नहीं है बल्कि वह हर रोज लगभग चार किमी पैदल चलते हुए, घर-घर जाकर लोगों को किताबें देकर आती हैं।

राजस्थान: घर में जगह नहीं तो क्या? सार्वजानिक स्थानों पर लगा दिए 15,000 पेड़-पौधे

By प्रीति टौंक

जयपुर की अनुपमा तिवाड़ी, पिछले 12 साल से पौधे लगा रही हैं। अब तक उन्होंने 15000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। उनके जीवन का लक्ष्य एक लाख पेड़-पौधे लगाना है।

केला, अमरुद, नींबू जैसे फलों के अचार व जैम बना लाखों में कमा रही है यह 64 वर्षीया महिला

By निशा डागर

केरल की महिला उद्यमी, शीला चाको पिछले 10 सालों से अचार व जैम का व्यवसाय चला रहीं हैं।

ई-स्कूटर से लेकर कचरा ढोने वाले इलेक्ट्रिक वाहन तक, नए भारत की नयी पहचान है यह स्टार्टअप

By निशा डागर

हेमलता अन्नामलाई ने 2008 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में अपनी कंपनी, Ampere Vehicles Pvt. Ltd की शुरुआत की, जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग इलेक्ट्रिक-वाहन बना रही है!

मेघालय: बांस और मिर्च के अचार से शुरू किया व्यवसाय, अब विदेशों तक जाते हैं प्रोडक्ट्स

By निशा डागर

वानशोंग ने ग्रामीण महिलाओं और छात्रों के लिए अब तक फ़ूड प्रोसेसिंग पर 30 से भी ज्यादा ट्रेनिंग सेशन किए हैं!

सिलबट्टे पर पीसतीं हैं 'पहाड़ी नमक' और सोशल मीडिया के ज़रिए पहुँचातीं हैं शहरों तक!

By निशा डागर

हर महीने उन्हें दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से लगभग 35 किलो पहाड़ी नमक के ऑर्डर्स मिलते हैं!

63 वर्षीया की फिटनेस का राज़: घर पर उगाई सब्ज़ियाँ और सौर कुकर में पकाया खाना

By निशा डागर

तिलोत्तमा के घर में 100 से भी ज्यादा पेड़-पौधे हैं, जिनके लिए वह खुद खाद और कीटप्रतिरोधक बनातीं हैं!

कभी बाढ़ से पलायन करते थे ग्रामीण, महिला आईएएस ने अभियान चला मोबाइल से पहुंचाई मदद

By द बेटर इंडिया

सहरसा में मात्र 55 प्रतिशत साक्षरता है, वहीं डिजिटल साक्षरता इससे भी काफी कम, लेकिन डॉ० शैलजा ने इन बाधाओं के बाद भी ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की मदद पहुंचाई।

सीताफल की प्रोसेसिंग ने बदली आदिवासी महिलाओं की तक़दीर, अब नहीं लेना पड़ता कहीं से कर्ज!

By निशा डागर

पहले ये आदिवासी महिलाएं जंगलों से सीताफल इकट्ठे करके सड़क किनारे बेचतीं थीं और मुश्किल से दिन के 100 रुपये कमातीं थीं, आज इन्हें एक ही टोकरी के लगभग 250 रुपये तक मिल जाते हैं।