केरल के वायनाड जिले में रहने वाली 64 वर्षीया राधामणि, ‘प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी’ नामक एक स्थानीय लाइब्रेरी में काम करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनका काम लाइब्रेरी में बैठकर लोगों को किताबें देना नहीं है बल्कि वह हर रोज लगभग चार किमी पैदल चलते हुए, घर-घर जाकर लोगों को किताबें देकर आती हैं।
जयपुर की अनुपमा तिवाड़ी, पिछले 12 साल से पौधे लगा रही हैं। अब तक उन्होंने 15000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। उनके जीवन का लक्ष्य एक लाख पेड़-पौधे लगाना है।
हेमलता अन्नामलाई ने 2008 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में अपनी कंपनी, Ampere Vehicles Pvt. Ltd की शुरुआत की, जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग इलेक्ट्रिक-वाहन बना रही है!
सहरसा में मात्र 55 प्रतिशत साक्षरता है, वहीं डिजिटल साक्षरता इससे भी काफी कम, लेकिन डॉ० शैलजा ने इन बाधाओं के बाद भी ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की मदद पहुंचाई।
पहले ये आदिवासी महिलाएं जंगलों से सीताफल इकट्ठे करके सड़क किनारे बेचतीं थीं और मुश्किल से दिन के 100 रुपये कमातीं थीं, आज इन्हें एक ही टोकरी के लगभग 250 रुपये तक मिल जाते हैं।