आपने ये पंक्तियाँ तो सुनी ही होंगी, ‘साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर जोर लगाना, साथी हाथ बढ़ाना।’ जी हाँ, एकता में ताकत है- यह सिर्फ एक कहावत नहीं है बल्कि हमारे देश में बहुत से उदाहरण हैं जो इस बात को सार्थक करते हैं।
आज हम आपको ऐसी ही एक कहानी से रू-ब-रू कराएँगे, जहां एकता की ताकत से महिलाओं ने अपनी तक़दीर खुद लिखी है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के पाली जिले में नाना गाँव की घूमर महिला समिति की। लगभग साढ़े चार हज़ार महिलाओं की यह समिति पूरे देश के लिए उदाहरण है। पिछले एक दशक में इन महिलाओं ने न सिर्फ अपनी पहचान बनाई है बल्कि पूरे इलाके के लोगों को नए रास्ते दिखाए हैं।
पाली जिला आदिवासी बहुल इलाका है। यह पहाड़ और जंगलों से घिरा हुआ है। यहाँ के आदिवासी जंगलों की उपज से ही आजीविका कमाते थे या फिर कहीं दिहाड़ी-मजदूरी करते। यहाँ के जंगलों में सीताफल बहुत अधिक मात्रा में होता है। घूमर महिला समिति की अध्यक्ष सगी बाई बताती हैं कि पहले सीताफल ही उनकी कमाई का ज़रिया होता था। महिलाएं जंगलों में जाकर सीताफल इकट्ठा करती और इन्हें बेचती थी।
“हम दिन भर मेहनत करके टोकरियों में सीताफल भरकर लाते थे। लेकिन हमें ये नहीं पता था कि बाहर शहरों में इसका बहुत दाम मिलता है। हम सड़क किनारे या फिर किसी दफ्तर के बाहर इन्हें बेचा करते थे। बहुत मुश्किल से हमें पूरी टोकरी के 80-100 रुपये मिल पाते थे। लेकिन हमें लगता कि चलो कम से कम इतना तो मिला,” उन्होंने आगे बताया।
ज़्यादातर उनका जीवन दिहाड़ी-मजदूरी और कर्ज के सहारे ही चलता था। समिति की एक महिला, कर्मी बाई के मुताबिक अगर उन्हें कभी बहुत ज्यादा पैसे की ज़रूरत होती थी तो उन्हें साहूकारों के यहाँ अपने गहने या फिर थोड़ी-बहुत जो ज़मीन है, गिरवी रखनी पड़ती। बस जैसे-तैसे उनका गुज़ारा हो रहा था।
साल 2007-08 में सृजन संगठन ने भी राजस्थान प्रशासन के साथ यहाँ पर अपना एक प्रोजेक्ट शुरू किया। संगठन के कोऑर्डिनेटर प्रभुलाल सैनी बताते हैं, “हमने इस समुदाय में महिलाओं से जुड़ने की शुरूआत की क्योंकि हमने समझ में आ गया था कि उन्हीं के ज़रिए यहाँ विकास की नींव रखी जा सकती है। इसलिए सबसे पहले हमने इन गांवों में स्वयं सहायता समूह बनवाए और फिर धीरे-धीरे हम बचत से रोज़गार की राह पर पहुंचे।”
हालांकि, इस इलाके में समूह बनाना भी आसान काम नहीं था। संगठन के कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के साथ बैठक की और उन्हें जागरूक करने की कोशिश की। हर गाँव में 10-10 महिलाओं को जोड़कर समूह बनाए और उन्हें हर हफ्ते कुछ बचत के पैसे इकट्ठा करने के लिए कहा गया। “लेकिन यह काम आसान नहीं था। अगर हम कभी समूह में बैठते और बात-चीत करने की कोशिश करते तो गाँव के मर्द आकर झिड़कते। फब्तियां कसी जाती कि ये एनजीओ वाले गलत इरादों से आए हैं। महिलाओं को बहला-फुसला रहे हैं और न जाने क्या-क्या,” कर्मी बाई ने कहा।
ऐसे में, बहुत सी महिलाएं समूह की चर्चाओं में आती ही नहीं थीं। लेकिन सगी बाई, बबली बाई, कर्मी बाई और उनकी कुछ साथी महिलाएं पीछे नहीं हटीं। वह कहती हैं कि इतने बरसों बाद हमें अपने जीवन को सुधारने का मौका मिल रहा था और हम इसे गंवाना नहीं चाहते थे। धीरे-धीरे महिलाओं के समूह सफल हुए और उनका कर्ज के लिए साहूकारों के पास जाना कम हो गया।
समूह बनने के बाद ग्राम स्तर पर क्लस्टर बनाए गए और साल 2013 में स्थापना हुई ‘घूमर महिला समिति’ की। इस समिति से 26 गांवों की लगभग साढ़े 4 हज़ार महिलाएं जुडी हुई हैं। इस समिति के ज़रिए इन महिलाओं को अपना कोई रोज़गार चलाने के लिए ऋण तो मिलता ही था। साथ में, इन्हें समाज में फैली कुरूतियों के खिलाफ लड़ने का साहस भी मिला।
सैनी ने आगे बताया कि महिलाओं को जागरूक करने की उनकी पहल कामयाब रही लेकिन अभी भी बहुत कुछ था जो यहाँ होना बाकी था। सबसे बड़ी ज़रूरत थी इन महिलाओं के साथ में रोज़ी देना। लेकिन यह कैसे हो?
“हमने महिलाओं से बात की। उनके साथ कई बैठकें की और हर बार रोज़गार के साधनों पर चर्चा की गई। समूह के ज़रिए लोन मिलने से कई महिलाएं अपने स्तर पर कुछ कर रही थीं लेकिन हमें बड़े पैमाने पर उन्हें रोज़गार से जोड़ना था। ऐसा कुछ जिससे कि पूरे पाली इलाके को फायदा हो,” सैनी ने आगे कहा।
महिलाओं को सशक्त बनाने का ज़रिया बना- सीताफल। वही सीताफल जो जंगलों में प्रचुर मात्रा में था और जिसका कोई सही उपयोग नहीं हो रहा था। कुछ महिलाएं चंद रुपयों में इसे बेच देती लेकिन बड़े स्तर पर इसके लिए कोई बाज़ार नहीं था। सृजन के ही एक और कार्यकर्त्ता रमेश कुमार बताते हैं कि उन्हें यह समझ में आ गया था कि सीताफल की यहाँ इस इलाके में भले ही मांग न हो लेकिन बहर बड़े शहरों और विदेशों में इसकी खूब मांग है। इसलिए सृजन के एक्सपर्ट्स ने सोचा कि क्यों न सीताफल की प्रोसेसिंग की जाए।
इसे सीधा फल के रूप में नहीं बल्कि इसके पल्प को निकालकर उसकी मार्केटिंग की जाए। सृजन ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर महिलाओं की ट्रेनिंग कराई। ट्रेनिंग होने के बाद उन्होंने घूमर महिला समिति के नाम पर ही ‘घूमर महिला प्रोड्यूसर कंपनी’ की शुरूआत की। जिसके तहत आज ये महिलाएं सीताफल की प्रोसेसिंग करके उसका पल्प और जूस बना रही हैं और इसे आगे आइस-क्रीम इंडस्ट्री व होटल इंडस्ट्री में भेजा जाता है।
कर्मी बाई बताती हैं कि समिति ने सीताफल इकट्ठे करने के लिए 10 गाँवो में कलेक्शन सेंटर बनाएं। पहले जिस सीताफल की एक टोकरी के उन्हें मुश्किल से 100 रुपये मिलते थे, अब उस टोकरी को पहले तोला जाता है। फिर सीताफल की ग्रेडिंग की जाती है और उस हिसाब से महिलाओं को पैसे मिलते हैं। अब एक टोकरी से महिलाएं 250-300 रुपये तक कमा पाती हैं। इसके साथ ही, गाँव में कलेक्शन सेंटर की ज़िम्मेदारी भी महिलाओं को ही मिली हुई है, जिसके उन्हें पैसे मिलते हैं।
कलेक्शन सेंटर से सीताफलों को प्रोसेसिंग यूनिट ले जाया जाता है। यहाँ पर कुछ महिलाओं को इनका पल्प बनाने की ट्रेनिंग दी गई है। ये महिलाएं पल्प बनाती हैं और फिर कुछ महिलाएं पैकेजिंग यूनिट से जुडी हुई हैं। बहुत-सी महिलाओं को कोल्ड-स्टोरेज रूम में काम मिला हुआ है।
कंपनी से जुड़े होने के साथ-साथ महिलाओं को अन्य स्किल ट्रेनिंग भी कराई जा रही हैं जैसे- जैविक खेती, वर्मीकंपोस्ट बनाना, किचन गार्डनिंग आदि। उनका उद्देश्य महिलाओं को कमाने के नए-नए तरीके सिखाना है ताकि वे अपने परिवारों को बेहतर भविष्य दे सकें।
सगी बाई कहती हैं कि बहुत-सी महिलाएं समिति से ट्रेनिंग और लोन लेकर अपने घरों में भी अलग-अलग काम कर रही हैं। जैसे किसी ने सिलाई मशीन लेकर काम शुरू किया है तो किसी ने जैविक खाद बनाने की यूनिट लगाई है। कई महिलाएं साथ में मिलकर जैविक कृषि की तरफ भी बढ़ रही हैं। पिछले कई सालों से उन्होंने इलाके में सीताफल के और पेड़ भी लगाना शुरू किया है।
पिछले तीन सालों में कंपनी का टर्नओवर लगभग 35 लाख रुपये रहा है। पहले जो महिलाएं महीने के मुश्किल से 500 रुपये कमा पाती थीं, आज उनकी कमाई पांच हज़ार रुपये से ऊपर है। अब उन्हें किसी साहूकार से कर्ज लेने की ज़रूरत नहीं है। पिछले साल एक कार्यक्रम के दौरान, घूमर महिला समिति की महिलाओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात करने का अवसर मिला। उन्होंने महिलाओं के जज़्बे की सराहना की।
लॉकडाउन के दौरान भी घूमर महिला समिति ने इलाके में जागरूकता अभियान चलाए और लोगों को मास्क भी वितरित किए हैं। सगी बाई कहती हैं कि घूमर महिला समिति से जुड़ी हर महिला की आज अपनी एक पहचान है और इस पहचान के लिए वे दिन-रात मेहनत करती हैं।
द बेटर इंडिया इन महिलाओं के जज़्बे को सलाम करता है और हमें उम्मीद है कि पूरे देश की महिलाएं इनसे प्रेरणा लेंगी।
अगर आप उनके बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो उन्हें ghoomarmahilasamiti@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं!
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