साल 1998 में कौस्तुभ ताम्हनकर ने 'गार्बेज फ्री लाइफस्टाइल' पर काम करना शुरू किया था। आज उनके यहाँ से किसी भी तरह का कोई कचरा डंपयार्ड या फिर लैंडफिल में नहीं जाता!
2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत, बेकार टेट्रा पैक को रीसायकल कर बेंच बनाया गया और ये बेंच सरकारी स्कूलों को दान दिए गए।
धनंजय अभंग ने ऐसा बायोगैस प्लांट बनाया है जिसे जगह के हिसाब से बनाकर लगाया जा सकता है। अच्छी बात ये है कि इसमें प्रोसेसिंग के दौरान कोई बदबू नहीं आती है!