कोलकाता के नीलांजन चक्रवर्ती ने पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना क्षेत्र में पर्यटकों की मेजबानी के लिए एक ऐसा होमस्टे बनाया है जहाँ कोई भी शहर की भाग-दौड़ वाले ज़िंदगी को भूलकर, शांति और सुकून से समय बिता सकता है।
पंजाब के फिरोजपुर के रहने वाले कमलजीत सिंह हेयर के परिवार में हुई कुछ घटनाओं ने उन्हें बैचेन कर दिया। इससे उन्हें वकालत छोड़, प्राकृतिक खेती अपनाने की प्रेरणा मिली। आज उन्होंने अपने 20 एकड़ जमीन को खेती के एक ऐसे मॉडल के रूप में विकसित किया है, जो हर किसान के लिए आदर्श है।
मोहाली, पंजाब के रहने वाले 57 वर्षीय किसान, चरणदीप सिंह अपनी सात एकड़ जमीन पर गेहूं, चावल, दाल, मौसमी सब्जियां, मसाले और कई तरह के फल उगा रहे हैं। कुदरती तरीकों से खेती करने के कारण, उनके खेतों में 50 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी आते हैं।
पंजाब के फाजिल्का में गांव ढिंगावाली के रहने वाले 60 वर्षीय किसान, सुरेंद्र पाल सिंह अनाज, दलहन, तिलहन और फलों के साथ-साथ, देसी कपास की भी जैविक खेती करते हैं। वह खुद अपने कपास की प्रोसेसिंग कर, इससे त्वचा के लिए उपयुक्त जैविक कपड़े भी बनवा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के रहने वाले रविकांत पाठक हॉंगकॉंग, अमेरिका और स्वीडन जैसे देशों में काम कर चुके हैं, लेकिन कुछ अलग करने की चाहत में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। वह 2007 से अपने “भारत उदय” प्रयास के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में संघर्षरत हैं।
मध्य प्रदेश के विदिशा के रहने वाले संकल्प शर्मा पुणे स्थित भारती विद्यापीठ से एमबीए करने के बाद बैंकिंग सेक्टर में नौकरी कर रहे थे। लेकिन, वह अपने नौकरी से खुश नहीं थे और साल 2015 में नौकरी छोड़, उन्होंने जीरो बजट फार्मिंग शुरू कर दी।
यह बात 1991 की है। मेरे पिता जी और चाची जी, दोनों की मौत कैंसर से हो गई थी। उस वक्त मुझे विचार आया कि आधुनिक कृषि तकनीकों की वजह से कई जहरीले रसायन हमारे खान-पान के जरिए शरीर को नुकसान पहुँचा रहे हैं। इसी जद्दोजहद में मैंने शिक्षक की नौकरी को छोड़ प्राकृतिक खेती शुरू कर दी।” - श्याम सिंह
गायत्री ने महाराष्ट्र में जैविक खेती शुरू करने के लिए 10 साल पहले अमेरिका में नौकरी छोड़ दी। अब वे अपने 10 एकड़ जमीन पर फलों और सब्जियों से लेकर, औषधीय पौधों की भी खेती करती हैं।