जून 2020 में, सतिंदर सिंह रावत ने COVID-19 महामारी के कारण दुबई में अपनी रीटेल ऑपरेशन मैनेजर की नौकरी खो दी और नोएडा लौट आए। 46 वर्षीय सतिंदर, 15 साल से गल्फ में काम कर रहे थे और अचानक नौकरी छूटने से, वह कुछ नया शुरू करने के बारे में विचार करने लगे।
उन्होंने कहा, “मैं वहाँ लगभग 200 स्टोर संभाल रहा था और 2,500 करोड़ रुपये के व्यवसाय का मैनेजमेंट देख रहा था। मैं उसी क्षेत्र में दूसरी नौकरी के लिए आवेदन कर सकता था, लेकिन महामारी के दौर में यह जोखिम और चुनौतियां कब तक बनी रहेंगी, कोई नहीं जानता।“ इसलिए सतिंदर ने एक अलग क्षेत्र में करियर बनाने का फैसला किया और खेती की ओर मुड़ गए।
द बेटर इंडिया के साथ बातचीत को दौरान उन्होंने बताया कि कैसे वह आय के नुकसान से उबरे और अपने कृषि स्टार्टअप, श्रीहरि एग्रोटेक के माध्यम से आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो पाए।
कड़ी मेहनत से मिला अच्छा परिणाम
सतिंदर ने अपने ससुर और दोस्तों से अपनी प्लानिंग डिस्कस की और उस पर काम करना शुरू किया। जैसे ही सितंबर के आस-पास लॉकडाउन में ढील दी गई, वह उत्तराखंड के नैनीताल के रामनगर गाँव गए और 1.5 एकड़ जमीन लीज़ पर ली। उनका कहना है, “मेरे ससुर ने सुझाव दिया कि मैं शुरू में बागवानी करूँ, क्योंकि इससे हर दो महीने में फूल उगाने में मदद मिलेगी। हालाँकि, यह आर्थिक रूप से संभव नहीं था, इसलिए मैंने और मेरी पत्नी सपना ने बटन मशरूम उगाने की कोशिश करने का फैसला किया।”
जनवरी में सतिंदर ने एक कंक्रीट फेसीलिटी और बांस व प्लास्टिक से बनी दो झोपड़ियों का सेट-अप करके मशरूम उगाना शुरू किया। इनके अंदर, अनुकूल तापमान बनाए रखने के लिए उन्होंने एयर-कंडीशनर्स लगाए। वह कहते हैं, “मार्च और अप्रैल में, हमने अपनी पहली उपज काटी और इससे 6 लाख रुपये की कमाई हुई।”

उन्होंने रामनगर के सब्जी बाजार, विवाह स्थलों, बैंक्वेट हॉल, रेस्तरां और अन्य ग्राहकों को मशरूम बेचे थे।
सतिंदर का कहना है कि उन्हें उपज से 50 प्रतिशत तक मुनाफा हुआ। इस दंपति ने बताया कि शुरुआती छह महीने मुश्किल भरे थे, लेकिन उन्होंने सब कुछ ठीक कर लिया।
ना बैकग्राउंड खेती से जुड़ा, ना कोई ट्रेनिंग
वे कहते हैं, “हमारा बैकग्राउंड खेती से बिल्कुल नहीं था और ना ही हमने मशरूम उगाने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग ली थी। हमने कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर एक प्रोफेशनल हायर किया था। बाद में, हमने स्थायी रूप से एक पेशेवर ग्रोअर रखा। हमारी कोर टीम उनके साथ काम करती है और मशरूम की खेती की मूल बातें सीख रही है। हालांकि, अब हमने काफी कुछ सीख लिया है और स्वतंत्र रूप से मशरूम कम्पोस्ट बना सकते हैं और उन्हें बिना बाहरी मदद के उगा सकते हैं।”
उनकी कोर टीम में गाँव के 10 स्थानीय लोग शामिल हैं, जिनमें से दो COVID-19 के कारण दिल्ली से रिवर्स माइग्रेट हुए हैं।
सतिंदर ने बताया, “मशरूम रसायन मुक्त प्रक्रिया के माध्यम से उगाए जाते हैं। तापमान 18 और 19 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। इसलिए, हमने एयर-कंडीशनर्स लगाए हैं।” उन्होंने अपने इस बिजनेस में खुद ही निवेश किया है।
सतिंदर का कहना है कि अनियमित बिजली आपूर्ति और जमीनी दिक्कतों के कारण कई अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने आगे कहा, “लेकिन हमारे प्रयास और जोखिम के बाद रिटर्न में जो परिणाम मिला वह बहुत सुखद है। मैं अब 9-5 की नौकरी के चक्कर में नहीं फंसा हुआ हूँ।” आज यह दंपति अपने उद्यम से प्रति माह 2.5 लाख रुपये कमाते हैं।
किसानों के लिए तैयार कर रहे कम लागत वाला मॉडल
कारोबार के तकनीकी संचालन को संभालने वाली सपना का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर से 70 टन मशरूम की खेती हो सकती है। वह कहती हैं, “पौड़ी जिले के बीरोनखल ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले भटवारों गाँव में दो औऱ झोपड़ियां बनाने की प्रक्रिया चल रही है। हमारा लक्ष्य उत्पादन को 70 टन तक बढ़ाने का है, जिसकी कीमत अगले छह महीनों में 40 लाख रुपये होगी।”
बटन मशरूम उगाने के अलावा, दंपति ने स्थानीय बाजार में लोकप्रिय, ओयस्टर किस्म के मशरूम उगाना भी सीखा है। सपना कहती हैं, “हाल ही में, हमने मौसमी सब्जियों को जैविक रूप से उगाने की प्रक्रिया शुरू की। हम ज्यादा से ज्यादा जैविक उत्पादों को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। क्योंकि हमें लगता है कि यह मनुष्यों के साथ-साथ प्रकृति के लिए भी मददगार होगा।”
सतिंदर ने कहा, “मैं उन किसानों के लिए कम लागत वाले मॉडल को बढ़ावा देना चाहता हूँ, जो अनाज, गेहूं और गन्ना जैसी पारंपरिक फसलें उगाते हैं। उनके क्षेत्र में गैर-पारंपरिक कृषि का उत्पादन उनके लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है।”
झोपड़ी मॉडल को बढ़ावा देना

सतिंदर का कहना है, “हमारे इस स्टार्टअप का लक्ष्य है कि हम अन्य किसानों तक भी झोपड़ियों में मशरूम उगाने के अपने मॉडल को ले जाएं। 20×50 फीट की झोपड़ी लगभग 1,000 वर्ग फीट क्षेत्र में फैली हुई है। एयर-कंडीशनर के साथ बुनियादी ढांचे की लागत 1.5 लाख रुपये है और यह छह साल तक चल सकता है।
इसमें हम जितना निवेश करते हैं, वह लागत फसल के पहले चक्र में ही निकल आती है और शेष उत्पादन लाभ के रूप में आता है। एयर कंडीशनिंग के कारण मशरूम साल भर उगते हैं।”
वह आगे कहते हैं, “हम किसानों को पारंपरिक खेती से थोड़ा अलग सोचने में मदद करना चाहते हैं। यदि कोई किसान बाजार और अच्छे स्थान की पहचान कर सकता है तो वह एक छोटी सी जमीन से भी अधिक पैसा कमा सकता है और उसे बड़ी फसलों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी।”
मूल लेख- हिमांशु नित्नावरे
संपादन- जी एन झा
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