‘हिमालयन रिसर्च ग्रुप’ के संस्थापक डॉ. लाल सिंह ने महिलाओं की दुर्दशा को देख, साल 2007 में एक ऐसे सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम को बनाया, जिससे उनकी जलावन पर निर्भरता 40 फीसदी तक कम हो गई।
मुंबई में रहने वाले शिव कंपानी ने आगजनी की घटनाओं को देखते हुए, ‘Sensafe’ नाम की एक ऐसी मशीन बनाई है, जिससे आगजनी के किसी भी खतरे से पहले ही लोगों को अलर्ट किया जा सकता है।
ओडिशा के रेसिंगा गाँव के रहने वाले दिलीप बरल 1997 से फसलों से बीज तैयार करने के बिजनेस में हैं। इस दौरान उन्हें हाथों से बीज निकालने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने कुछ अलग करने का प्रयास किया, ताकि कम समय में अधिक से अधिक बीज निकाला जा सके।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर की शोधार्थी प्रोफेसर जयीता मित्रा और साई प्रसन्ना ने खीरे के छिलके से पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग मैटेरियल बना दिया, जो सौ फीसदी बॉयोडिग्रेडेबल है।
साइकिल और अनाजों को पीसने के लिए चक्की, दोनों की प्रकृति एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है, लेकिन जमशेदपुर के रहने वाले मंदीप तिवारी और उनकी बहन सीमा ने मिलकर लॉकडाउन के दौरान कसरत करने वाली साइकिल से जुगाड़ कर आटा चक्की बना दी।
हरियाणा के पानीपत के रहने वाले अर्श शाह दिलबगी ने महज 16 साल की उम्र में ‘टॉक’ नाम से एक ऐसे यंत्र को बना डाला था, जो एमियोट्रॉफ़िक लैटरल स्कलिरॉसिस और पार्किंसन रोग जैसी बीमारियों की वजह से अपनी आवाज खो बैठे लोगों को साँसों के जरिए बोलने में मदद कर सकती है।
"मैं देश के अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचना चाहता हूं और किसी कार्पोरेट या एमएनसी पर निर्भरता के बिना अधिक पैदावार में उनकी मदद करना चाहता हूँ।” -जय प्रकाश सिंह