जय प्रकाश सिंह अन्य किसानों की तरह ही एक सामान्य किसान हैं। इन्होंने धान की 460, गेहूं की 120 और दालों की 30 किस्में विकसित की हैं। वह कहते हैं, “मैंने ऐसा इसलिए किया ताकि मुझे बाजार से बीज खरीदने के लिए पैसे न खर्च करने पड़े। मैंने पारंपरिक तरीकों से ही बीजों को विकसित किया। दरअसल, मैंने बीज की जिन किस्मों को विकसित किया है, वो बाजार में मिलने वाले बीजों की अपेक्षा काफी अच्छी पैदावार देती है।“
जय प्रकाश की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। उन्होंने सिर्फ नौंवी कक्षा तक ही पढ़ाई की। उनके घरवालों ने उन्हें घुमक्कड़ मान लिया था।
घूमने की सनक ही शायद जय प्रकाश को खेतों तक ले गई। यहीं से उन्होंने कुछ सार्थक करने के बारे में सोचा। एक बार उनकी नजर कई फसलों के बीच गेहूं के एक पौधे पर पड़ी। गेहूं के उस पौधे में बहुत अनाज लगे थे और यह आसपास के अन्य पौधों की अपेक्षा काफी स्वस्थ भी दिख रहा था। यहीं से उनका उत्साह बढ़ा और इस तरह उनकी यात्रा की शुरूआत हुई। उन्होंने इसके बारे में खुद से पढ़ना और जानकारी जुटाना शुरू किया। इस दौरान वह सीड ब्रीडिंग टेक्निक से काफी गहराई से जुटते चले गए। उन्होंने बीजों के जीवनचक्र के बारे में जाना और यह भी पता किया कि पारंपरिक किसान खेती के लिए कभी बीज नहीं खरीदते बल्कि एक फसल के अच्छे बीजों को अगली फसल के लिए जमा करके रखते हैं।
वह बताते हैं,”जब मैंने पारंपरिक तरीकों और स्वदेशी बीजों से अधिक उपज पैदा करने की विधि खोजी तब अन्य किसान मदद के लिए मेरे पास आने लगे।”
जय प्रकाश के लिए कुछ भी आसान नहीं था। अपने परिवार से दूर रहने के साथ ही उन्हें लोगों की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी। सभी बाधाओं का सामना करते हुए वह अपने लक्ष्य पर डटे रहे और उन्होंने एक लंबा सफर तय किया। वह कहते हैं, “मैंने अपने काम में खुद को डुबो दिया और यह मेरे लिए एक वरदान बन गया।” दो लड़कियों और दो लड़कों के पिता जय प्रकाश अब वाराणसी जिले के टंडिया गांव के एक सफल और सम्मानित किसान हैं। जिन्होंने यह सब अपने खुद के ज्ञान के दम पर हासिल किया है।
जय प्रकाश कहते हैं , “कई सरकारी अधिकारी उनसे मिलने आते हैं और उनकी बीज की किस्मों को भी ले जाते हैं। इससे सरकार से थोड़ी मदद मिल जाती है। हालांकि सीधे मदद करने के बजाय कई अधिकारी मुझे सलाह देते हैं कि मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर बीज का बिजनेस शुरु कर दूँ। हालांकि, मेरा ऐसा कभी इरादा नहीं रहा है। मैं देश के अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचना चाहता हूं और किसी कार्पोरेट या एमएनसी पर निर्भरता के बिना अधिक पैदावार में उनकी मदद करना चाहता हूं।”
उनके द्वारा विकसित गेहूं के बीज की एक किस्म से 79 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज होती है। इसी तरह धान का बीज (HJPW157) जीरा की तरह दिखता है और साइज़ में काफी छोटा है। यह 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है और सिंचाई की भी कम जरूरत पड़ती है।

उन्होंने एक खास तरह का वुड एप्पल या बेल भी उगाए हैं। इसके एक ही गुच्छे में 8-10 फल लगते हैं। वह गरीब किसानों के लिए इसकी पैदावार बढ़ा रहे हैं।
उनके द्वारा विकसित एक विशेष किस्म के गेहूं के बीज उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। वह कहते हैं, ”हाइब्रिड गेहूं केवल 2 से 2.5 फीट लंबा होता है, जबकि मेरे बीजों से उगाया गया गेहूं 9 से 12 फीट लंबा होता है। इतना ही नहीं देशी किस्म में प्रत्येक डंठल में 60 से 70 बड़े बीज लगते हैं। हायब्रिड किस्म के बीजों से इतनी पैदावार संभव नहीं है। देशी गेहूं के आटे से बनाई गई रोटियों के स्वाद से इन बीजों के अनोखेपन को देखा जा सकता है।
वह देशी किस्म के बीज का उदाहरण देते हुए कहते हैं, “सुबह की बनी रोटियाँ रात तक ताजी और मुलायम रहती हैं। क्या आप इसे हाइब्रिड फसल से हासिल कर पाएंगे? ”
अलग-अलग तरीके को आजमाने के बाद जय प्रकाश बीज बोने और अपने प्रयोगों को जारी रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हैं। उन्हें इस बात का डर है कि उनकी सारी मेहनत कहीं उन्हीं के साथ मर न जाए। यह सोचकर उन्होंने सीड जीन बैंक बनाया।
ऐसे समय में जब सरकार अरहर दाल जैसी फसलों का आयात करने पर विचार कर रही है, जय प्रकाश का मानना है कि देशी बीजों को विकसित करना मेक-इन-इंडिया मॉडल को आगे बढ़ाने का एक तरीका है। वह कहते हैं, “हम सभी को अपने देश की प्रगति के लिए काम करने की आवश्यकता है। यह देश की प्रगति के लिए मेरा योगदान है। भारत का किसान होने के नाते हमें कभी भी अन्य देशों से कृषि उत्पादों का आयात नहीं करना चाहिए। इसके बजाय हमें अधिक का उत्पादन करना चाहिए और इसे निर्यात करना चाहिए। ”
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मूल लेख- VIDYA RAJA
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