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रानी गाइदिन्ल्यू: 17 साल की उम्र में हुई थी जेल, आज़ादी के बाद ही मिली रिहाई

By निशा डागर

रानी गाइदिन्ल्यू, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने मात्र 13 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार और उनकी नीतियों के विरुद्ध अभियान चलाया था और अपनी क्रांति के लिए 14 साल तक कारावास में भी रहीं।

जानिए कैसे एक 90 साल पुरानी डायरी से खुला, कोलकाता से कश्मीर तक की साइकिल यात्रा का राज़

By निशा डागर

आजादी से पहले, चार बंगाली युवकों द्वारा साइकिल पर तय किया गया सफर, यात्रा के प्रति रोमांच, धैर्य और प्रेम को दर्शाता है। 90 सालों से सहेजकर रखी गयी इस डायरी में आसनसोल से लाहौर होते हुए इस यात्रा का पूरा विवरण है।

'अमूल बटर' से पहले था 'पोलसन' का बोलबाला, जानिए इस मक्खन की कामयाबी के पीछे छिपे राज़

By निशा डागर

अमूल बटर के अस्तित्व में आने से पहले देशभर में सिर्फ 'पोलसन बटर' का बोलबाला था, जिसे बॉम्बे में पोलसन कॉफी कंपनी के मालिक, पेस्तोनजी इडुलजी दलाल ने शुरू किया था।

मिलिए राजस्थान के कारपेंटर राजू से, जिनकी लिखीं जानकारी पढ़ते हैं आप विकिपीडिया पर

By निशा डागर

57 हज़ार एडिट्स कर चुके राजू जांगिड़ दुनिया के 11 हिंदी विकिपीडिया योगदानकर्ताओं में से एक, जिनके लेखों को पढ़ते हैं लाखों भारतीय

कहानी खादी की: हजारों वर्षों की वह परंपरा, जिसने तय किया सभ्यता से फैशन तक का सफर

भारतीय समाज में खादी का इस्तेमाल सभ्यता के आरंभ से ही रहा है। इसने आजादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही कारण है कि खादी केवल कोई कपड़ा नहीं, बल्कि एक विचार है।

क्या आपको पता है, ओलिंपिक में दो बार हिस्सा ले चुके हैं महाभारत के 'भीम'

By निशा डागर

महाभारत में भीम का किरदार निभाने वाले अभिनेता प्रवीण कुमार सोबती अभिनय की दुनिया में आने से पहले एक खिलाड़ी थे और उन्होंने दो बार ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया!

शहीद के साथी: दुर्गा भाभी, भगत सिंह की इस सच्ची साथी की अनसुनी कहानी

By Shashi Shekhar

यह दुर्गा भाभी ही थीं जिन्होंने अपने पति के बम कारखाने पर छापा पड़ने के बाद, क्रांतिकारियों के लिए 'पोस्ट-बॉक्स' का काम किया।

वैश्विक महामारी पार्ट 4: बीती शताब्दियों की महामारियों का सबक!

By अलका कौशिक

मौजूदा समय में फिर वैश्विक महामारी से गुजर रही दुनिया एक और घातक वायरस के खिलाफ जंग लड़ रही है। बीती शताब्दियों की महामारियों और उनसे उपजी तबाहियों के सबक हमारे सामने हैं, वही तो गर्दिश के इस दौर की नज़ीर हैं।

ग़ालिब को आपके बुक शेल्फ तक पहुंचाने वाले मुंशी नवल किशोर की कहानी!

वह उन चंद लोगों में से एक थे जिन्होंने प्रिंटिंग के काम का व्यवसायीकरण किया और सस्ती कीमतों पर किताबें प्रिंट करवायी, जिससे ज्ञान, साहित्य और विज्ञान जैसे कठिन विषयों की पहुंच आम लोगों तक हुई!

अंग्रेजों को मात देने के लिए इस सेनानी ने काट दिया था अपना ही हाथ!

By निशा डागर

हाथ काटने के बाद भी 80 वर्षीय वीर कुंवर का संग्राम नहीं रुका। उन्हें आराम करने की हिदायत मिली लेकिन फिर भी उन्होंने अंग्रेजों से अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध किया!