Powered by

Latest Stories

HomeTags List history

history

जानिए कैसे एक 'कुक' बना भारत की पहली फीचर फिल्म की नायिका!

By निशा डागर

शुरूआती फिल्मों में महिला किरदार निभाने के अलावा, एक और उपलब्धि है, जो अन्ना सालुंके के नाम जाती है और वह है हिंदी सिनेमा का पहला 'डबल रोल।'

जब सावित्रीबाई फुले व उनके बेटे ने प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए अपनी जान गंवाई!

भारत में स्त्रियों की शिक्षा के दरवाजे सावित्रीबाई ने रखी थी। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने और उनके बेटे ने 1896-97 में बंबई और पूना में बुबोनिक प्लेग महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी!

घूंघट छोड़कर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ने के लिए प्रेरित करने वाली राधाबाई की कहानी!

By निशा डागर

रायपुर में स्वाधीनता की क्रांति को घर-घर पहुंचाने का काम डॉ. राधाबाई ने ही किया था। उनकी प्रेरणा से ही यहाँ की महिलाएं स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़ीं!

ताउम्र देश के लिए समर्पित रही यह महिला, फिर भी नहीं है इतिहास की किताबों में नाम!

By निशा डागर

नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किए गए लोग जब जेल से बाहर निकले तो बिल्कुल बेसहारा हो गए थे। न खाने को खाना, न रहने को छत, ऐसे में, उमाबाई ने इन सेनानियों को अपने घर में आश्रय दिया!

इस महिला के बिना नहीं बन पाती भारत की पहली फिल्म!

By निशा डागर

यह महिला भारतीय सिनेमा की पहली फीचर फिल्म की सिर्फ एडिटर या फिर तकनीशियन ही नहीं थीं, बल्कि फाइनेंसर भी थीं!

पहले भारतीय पायलट, पुरुषोत्तम मेघजी काबाली की अनसुनी कहानी!

By निशा डागर

जेआरडी टाटा फ्रांसीसी मूल के भारतीय नागरिक थे, जिन्हें 1929 में पायलट का लाइसेंस मिला। जबकि, 1930 में लाइसेंस प्राप्त करने वाले काबाली भारतीय मूल के पहले नागरिक थे!

'तवायफ़', स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम नायिकाएँ!

इनके कई नाम है – उत्तर में तवायफ, दक्षिण में देवदासी, गोवा में नायिका, बंगाल में बाजी, ब्रिटिश के लिए नौच गर्ल्स फिर भी ये सारे नाम अश्लीलता का पर्याय है। लेकिन, वे सभी एक मजबूत व स्वतंत्र महिलाएं थीं। 

बेस्ट ऑफ़ 2019: इतिहास की वो अनसुनी कहानियाँ, जिन्होंने जीता हमारे पाठकों का दिल!

By द बेटर इंडिया

इस साल को अलविदा कहते हुए एक बार फिर उन अच्छी यादों को सहेज लें जो भविष्य में भी हमारी प्रेरणा रहेंगी!

देश-विदेश घूमकर किया चंदा इकट्ठा और शुरू कर दी देश की पहली महिला यूनिवर्सिटी!

By निशा डागर

साल 1916 में कर्वे ने केवल 5 छात्राओं के साथ जो एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय शुरू किया था, आज उसमें 70 हज़ार से भी ज़्यादा छात्राएं पढ़ती हैं!

परफ्यूम, तेल से लेकर साइकिल और ग्रामोफ़ोन तक, इस उद्यमी ने रखी स्वदेशी उत्पादों की नींव!

By निशा डागर

उनके सभी रिकॉर्ड्स ब्रिटिश सरकार ने तबाह कर दिए। आज सिर्फ़ टैगोर के 'वन्दे मातरम' गीत की एक छोटी-सी रिकॉर्डिंग बची है!