एक दिन एक छोटे से कुत्ते की जान बचाने के बाद, कोटा की सोनल गुप्ता की जैसे ज़िंदगी ही बदल गई। उन्होंने बेज़ुबानों के दर्द को महसूस किया और लॉकडाउन में उनका सहारा बनीं। इसके बाद वह शहर में श्वानों की सेवा करने के लिए जानी जाने लगीं। आज वह ‘GSM स्क्वाड’ नाम से अपना NGO चलाती हैं और अब तक 5000 से ज़्यादा पशुओं की जान बचा चुकी हैं।
गाज़ियाबाद के यूथ नेटवर्क के युवाओ की पहल से आज, 10 हजार घरों से रोटियां और फल-सब्जियों के छिलके आदि कचरे में नहीं, बल्कि तीन चारा कार के माध्यम से सीधे नंदीगृह में जा रहे हैं।
कच्छ के जशराज चारण, पिछले 25 सालों से सड़क पर फिरते कुत्तों और दूसरे जानवरों का पेट भरते आ रहे हैं। उनके घर पर हर रोज़ तक़रीबन 25 किलो आटे का इस्तेमाल करके, इन जानवरों के लिए खाना तैयार किया जाता है। उनका पूरा परिवार इस काम में उनका साथ देता है।
लुधियाना में रहने वाली रूह चौधरी, पिछले कई सालों से इको-फ्रेंडली तरीकों से अपना जीवन जी रही हैं और साथ ही, वह हर दिन लगभग 75 बेसहारा जानवरों को खाना खिलाती हैं।
बेजुबानों की भावना हम नहीं समझेंगे तो फिर कौन सुनेगा। हमने उन्हें प्रकृति के विपरित मनुष्य पर निर्भर बना दिया है। आवारा जैसा नाम दे दिए हैं, जो कि बहुत ही गलत भाव है।