Powered by

Latest Stories

HomeTags List Environmentalist

Environmentalist

जानिये कैसे इस ग्रीन वॉरियर ने कचरे से भरी झील को किया साफ, लगाए 8000+ पेड़-पौधे

By निशा डागर

मुंबई में रहने वाले धर्मेंद्र कर, एक पर्यावरण संरक्षक हैं। उन्होंने ओडिशा और मुंबई में, अब तक 8000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगवाए हैं और मुंबई की खारघर झील को साफ करके संरक्षित किया है। इसके लिए, उन्हें 'वाटर हीरो 2020' पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

अमृतसर: IRS रोहित मेहरा की ट्री एम्बुलेंस, जो करती है पेड़ों के 32 रोगों का ट्रीटमेंट

जैसे इंसानों और जानवरों के लिए डॉक्टर और अस्पताल होते हैं ठीक उसी तरह अमृतसर, पंजाब में IRS ऑफिसर रोहित मेहरा ने पेड़-पौधों के लिए ट्री एम्बुलेंस और अस्पताल की शुरुआत की है।

लुप्त हो रहीं पेड़-पौधों की 400 प्रजातियों को सहेज, शहरों में लगा दिए 25 घने जंगल

By निशा डागर

नासिक, महाराष्ट्र के रहने वाले मोहम्मद दिलावर ने पेड़-पौधों की 400 देसी प्रजातियों को सहेजकर, मुंबई, पुणे, पालघर और नासिक में 25 घने जंगल उगाए हैं।

इस शख्स के प्रयासों से बिहार बना गरूड़ों का आशियाना, जानिए कैसे

बिहार के भागलपुर स्थित मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा 2006 से क्षेत्र में बड़े गरूड़ों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए संघर्षरत हैं। उनके प्रयासों से यहाँ इस संकटग्रस्त प्रजाति की संख्या 78 से 600 तक पहुँच गई है।

वह मशहूर कवयित्री जिन्होंने एक वर्षा वन को बचाने के लिए छेड़ी देश की सबसे ऐतिहासिक आंदोलन!

ऐतिहासिक सेव साइलेंट वैली आंदोलन के दौरान मराठिनु स्तुति (Ode to a Tree) नाम की एक कविता इस आंदोलन की पहचान बन गई। इस कविता को आवाज सुगत कुमारी ने दी थी, जो इस आंदोलन का नेतृत्व भी कर रही थीं।

बंजर ज़मीन से घने जंगल तक: जानिए कैसे इस शख्स ने लगा दिए 1 करोड़ से भी ज्यादा पेड़-पौधे

By निशा डागर

तमिलनाडु के पुथुराई गाँव के पर्यावरणविद डी. सरवनन पिछले 25 सालों से अरण्य जंगल को संवारने और सहेजने का काम कर रहे हैं!

प्लास्टिक की बेकार बोतलों से गमले, डॉग शेल्टर और शौचालय बनवा रहा है यह 'कबाड़ी' इंजीनियर

By निशा डागर

हरियाणा के हिसार में रहने वाले जतिन शहर के स्कूल-कॉलेज के छात्रों के साथ मिलकर प्लास्टिक वेस्ट के मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं!

किसानों के खेतों में मुफ्त में फलों के पेड़ लगा रहे हैं विनोद और उनके साथी!

By निशा डागर

"फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि कितने लाख पौधे लगाए गए, बल्कि मायने यह रखता है कि उन लाखों पौधों में से कितने पेड़ के रूप में विकसित हुए।"

छुट्टी वाले दिन लगाते हैं ताड़ के पौधे, इनके लगाए एक लाख पौधे अब बन चुके हैं पेड़!

By निशा डागर

एक वक़्त था जब ताड़ के पेड़ से सैकड़ों प्राकृतिक चीजें बनती थीं, जैसे इसके फल से मिठाई, पत्तों से टोकरी जैसे उत्पाद और तो और पहले ताड़ के पेड़ से ही चीनी बनाई जाती थी जो काफी पोषक हुआ करती थी! सतीश की इस कोशिश से जल्द ही वो दिन लौट आएंगे!

घर को बनाया प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल ताकि पक्षी बना सके अपना बसेरा!

By निशा डागर

अपने घर में प्राकृतिक रूप से बगीचा तैयार करने के बाद अब रमेश वर्मा अपने गाँव में खाली पड़ी ज़मीनों को हर्बल पार्क में तब्दील करने में जुटे हैं।