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200 बच्चों को मुफ्त पढ़ाता है 'मिड डे मील' बनाने वाली माँ का यह बेटा!

By निशा डागर

"बहुत से लोग मुझे पागल ही कहते थे क्योंकि मैं कचरा बीनते बच्चों को, बकरी चराते बच्चों को इकट्ठा करके एक टोली बना लेता और उन्हें अपने घर पर लाकर कुछ न कुछ पढ़ाना शुरू कर देता था। पर मेरी माँ तब भी मेरे साथ खड़ी रहीं।"

मौलाना आज़ाद : भारत की प्रगति में मील का पत्थर बनने वाले 'आईआईटी' के जनक!

आईआईटी का भविष्य देखकर उन्होंने बेंगलुरु में इंडियन इन्स्टीच्युट ऑफ साइंस और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रौद्योगिकी सकाय के विकास पर ज़ोर दिया।

वीकेंड पर 8 किमी दूर गाँव में जाकर बच्चों को पढ़ाता था यह IIT छात्र, राष्ट्रपति ने दिया गोल्ड मेडल!

By निशा डागर

अपने डिपार्टमेंट में भी हमेशा टॉपर्स की लिस्ट में रहने वाले अनंत को अपनी पढ़ाई और एक्स्ट्रा-कर्रिकुलर गतिविधियों को मैनेज करना बख़ूबी आता है।

विज्ञान में 90%+ अंक लाते हैं इस सरकारी स्कूल के बच्चे, शिक्षक के तरीकों ने किया कमाल!

By निशा डागर

अपनी ज़िम्मेदारी और छात्रों के भविष्य के प्रति सजग शशिकुमार हर दिन अपने घर से स्कूल तक 60 किमी तक की दूरी तय करते हैं!

भैंस-बकरी चराने वाले बच्चे आज बोलते हैं अंग्रेज़ी, एक शिक्षक की कोशिशों ने बदल दी पूरे गाँव की तस्वीर!

By निशा डागर

अल्मोड़ा जिले से लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव तक पहुँचने के लिए आपको सड़क मार्ग के आलावा, छह किमी का पैदल पहाड़ी रास्ता और एक नदी भी पार करनी पड़ती है!

स्लम में पला-बढ़ा यह डेंटिस्ट आज आदिवासी छात्रों को कर रहा है साइकिल गिफ्ट!

By निशा डागर

हर कोई स्कूल के बच्चों की मदद करना चाहता है पर कोई नहीं सोचता कि इन बच्चों को स्कूल कैसे पहुँचाया जाए। इस तरह साइकिल डोनेशन प्रोजेक्ट शुरू हुआ!

कार्डबोर्ड से बना 10 रुपये का यह स्कूल बैग बन जाता है डेस्क भी!

By सोनाली

चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं, वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती है। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी स्कूल की सबसे बेसिक आवश्यकता होती है। इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूल इन सुविधाओं से दूर है। "

पॉकेट मनी से शुरू किया स्कूल, कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ा!

By अदिति मिश्रा

"इस काम को शुरू करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी उस बस्ती में रहने वाले बच्चों व उनके माता-पिता को इसके लिए तैयार करना और शिक्षा के प्रति उनके मन में जागरूकता पैदा करना। क्योंकि यह बच्चे अपने अभिभावकों को आर्थिक सहायता देने के लिए कुछ न कुछ काम करते थे। इनमें कुछ बच्चे कूड़ा बीनकर तो कुछ कूड़ा उठाने वाली गाड़ी पर काम करके पैसे कमाते थे।'' 

मिज़ोरम: हर शुक्रवार माता-पिता के साथ बाज़ार में बेचती है सब्ज़ियाँ, बोर्ड में हासिल किये 97.2%!

By निशा डागर

Mizoram की राजधानी आइज़ोल से 15 किलोमीटर दूर स्थित गाँव नेइहबावी की निवासी लाल्रिन्नुंगी ने 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 97.2% अंक प्राप्त कर न सिर्फ़ अपने माता-पिता बल्कि पूरे गाँव का नाम रौशन किया है। 17, 000 प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए उसने यह टॉप रैंक प्राप्त की है।