"बहुत से लोग मुझे पागल ही कहते थे क्योंकि मैं कचरा बीनते बच्चों को, बकरी चराते बच्चों को इकट्ठा करके एक टोली बना लेता और उन्हें अपने घर पर लाकर कुछ न कुछ पढ़ाना शुरू कर देता था। पर मेरी माँ तब भी मेरे साथ खड़ी रहीं।"
अल्मोड़ा जिले से लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव तक पहुँचने के लिए आपको सड़क मार्ग के आलावा, छह किमी का पैदल पहाड़ी रास्ता और एक नदी भी पार करनी पड़ती है!
चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं, वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती है। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी स्कूल की सबसे बेसिक आवश्यकता होती है। इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूल इन सुविधाओं से दूर है। "
"इस काम को शुरू करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी उस बस्ती में रहने वाले बच्चों व उनके माता-पिता को इसके लिए तैयार करना और शिक्षा के प्रति उनके मन में जागरूकता पैदा करना। क्योंकि यह बच्चे अपने अभिभावकों को आर्थिक सहायता देने के लिए कुछ न कुछ काम करते थे। इनमें कुछ बच्चे कूड़ा बीनकर तो कुछ कूड़ा उठाने वाली गाड़ी पर काम करके पैसे कमाते थे।''
Mizoram की राजधानी आइज़ोल से 15 किलोमीटर दूर स्थित गाँव नेइहबावी की निवासी लाल्रिन्नुंगी ने 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 97.2% अंक प्राप्त कर न सिर्फ़ अपने माता-पिता बल्कि पूरे गाँव का नाम रौशन किया है। 17, 000 प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए उसने यह टॉप रैंक प्राप्त की है।