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Climate Change

एक मछुआरा, जिसने 40 सालों से नाव में घूम-घूमकर लगाए लाखों मैंग्रोव

केरल के कन्नूर जिले में पयंगडी के पास थावम के रहनेवाले राजन, पेशे से एक मछुआरे हैं। लेकिन पिछले 40 सालों से मैंग्रोव को उगाने, संरक्षित करने और लोगों को जागरूक करके, उन्हें बचाने और पुनर्स्थापित करने का काम कर रहे हैं। इस वजह से उनका नाम मैंग्रोव राजन पड़ गया है।

दुनिया को कहो कॉपी दैट! परंपरा व आधुनिकता के मेल से भारत क्लाइमेट चेंज का प्रभाव कर रहा कम

By पूजा दास

जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना भविष्य के लिए सबसे बेहतर तरीका है। सदियों से भारतीय, इस कला में पारंगत रहे हैं। आइए भारत में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे तरीकों पर डालते हैं एक नज़र।

मिट्टी से घर बनाना, पिछड़ेपन का प्रतीक है?” ऐसे कई मुद्दों को सुलझा रहे यह आर्किटेक्ट

बेंगलुरु के रहने वाले सत्य प्रकाश वाराणशी अपनी फर्म सत्य कंसल्टेंट्स के तहत, पिछले करीब 28 वर्षों से आर्किटेक्चर के क्षेत्र में इको-फ्रेंडली संरचनाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं। इस दौरान उन्होंने 500 से अधिक परियोजनाओं को अंजाम दिया है।

झारखंड: इस IFS अधिकारी ने अपने प्रयासों से 5000 हेक्टेयर के वन क्षेत्र को दिया नया जीवन!

आईएफएस अधिकारी विकास उज्जवल ने झारखंड के लोहरदगा जिले में वन प्रमंडल अधिकारी के रूप में अपना पदभार संभालने के बाद, यहाँ 3 लाख से अधिक पौधे लगाए गए। जिससे जंगल की समृद्ध जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने में मदद मिली।

बेस्ट ऑफ 2020: 10 पर्यावरण रक्षक, जिनकी पहल से इस साल पृथ्वी बनी थोड़ी और बेहतर

इन योद्धाओं का प्रयास आने वाले वर्षों में पर्यावरण संरक्षण की दरकार को बढ़ाने में, महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

आधी लागत पर मिट्टी और वेस्ट से बनी ये इमारतें हैं ज्यादा सस्ती और ठंडी

By पूजा दास

लाल मिट्टी की टाइल्स, दोबारा इस्तेमाल की जाने वाली निर्माण सामग्री, टूटे हुए पुराने टाइल्स, थर्माकोल, डंप यार्ड से रिसायकल करने वाली चीजें, टिन के ढक्कन आदि को नया रूप देकर मनोज पटेल पूरे घर को इको-फ्रेंडली और पारंपरिक तरीके से डिज़ाइन करते हैं जिससे उनकी लागत कम हो जाती है।