“हमें लगा हमारी पीढ़ी के जाने के बाद कोई जानेगा ही नहीं इन खिलौनों के बारे में। हम चाहे जितना भी कम कमा रहे हैं, यह कला है हमारी, ऐसे कैसे ख़त्म होने दें।"
मुकेश अपने संस्था के जरिए ज़रूरतमंदों को कपड़े व जरूरी चीजें दान करते हैं। साथ ही, वह गांवों के स्कूलों और महिलाओं के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में वित्तीय साक्षरता और उससे जुड़ी जागरूकता के बारे में बताते हैं।