Powered by

Latest Stories

HomeTags List हिन्दी कविता

हिन्दी कविता

माँ-पिता गोरे हैं तो हे राम, तुम क्यों काले हुए?

By मनीष गुप्ता

यह हिन्दू धर्म की ही विशेषता है कि भगवान पूज्य भी है और दोस्त भी. गोपियाँ कृष्ण को उलाहने दे सकती हैं. अब के कान्हा जो आये पलट के, गालियाँ मैंने रक्खी हैं रट के.

'चिर अभिलाषा / चोर अभिलाषा'

By मनीष गुप्ता

प्रेम का तो मकसद ही आपको आपकी ख़ुद की ज़िन्दगी में चलायमान रखना है. आपकी क्षमता का विकास ताउम्र होता रहे - यही प्रेम का लक्ष्य है. मनीष गुप्ता की लिखी एक कविता सुन लें : 'चिर अभिलाषा - चोर अभिलाषा'

ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती : दुष्यंत कुमार [इंक़लाब की आवाज़ और टूटे हुए साज़ का दर्द भी]

By मनीष गुप्ता

आज शनिवार की चाय में मनोज बाजपेयी प्रस्तुत कर रहे हैं दुष्यंत कुमार जी की एक आग में बघारी हुई रचना! और पढ़िए मनीष गुप्ता क्या कहते है दुष्यंत कुमार के बारे में!

प्यार-व्यार-अभिसार

By मनीष गुप्ता

वरिष्ठ कवि उदयप्रकाश जी की कविता प्रस्तुत कर रहे हैं वरुण ग्रोवर. इस कविता का शीर्षक है 'चलो कुछ बन जाते हैं'. और वीडियो देखने के बाद अपना फ़ोन, कम्प्यूटर बंद कर दें और अपना सप्ताहांत प्यार-व्यार-और अभिसार की बातों, ख़यालों में बितायें:)

ईश्वर है? भूत है?

By मनीष गुप्ता

इस लेख का मकसद यह स्थापित करना कतई नहीं है कि भगवान होते हैं या नहीं होते. महज़ यह सवाल खड़े करना है कि लोग अपने विवेक और बुद्धि से अपने तौर-तरीक़ों, अपनी आस्थाओं पर एक नयी नज़र डालें.

रूमी से मिले?

By मनीष गुप्ता

रूमी : हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं - पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. पर क्या ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?'

हम वही काट रहे हैं जो बोया है!

By मनीष गुप्ता

(अ)सभ्यता का आरम्भ /का अंत... हमारी बदलती सम्भयता पर मनीष गुप्ता की दिल दहला देने वाली कविता सुनिए। साथ ही पढ़िए कैसे आम आदमी अपनी ही कुपरिस्तिथि का ज़िम्मेदार है.