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24 घंटे मरीज़ों के लिए खुला रहता है यह क्लिनिक, डॉक्टर की फीस मात्र 10 रुपये

By निशा डागर

ध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में 28 वर्षीया डॉ. नूरी परवीन, जरूरतमंद और गरीब लोगों के लिए क्लिनिक चला रही हैं, जहाँ वह मात्र 10 रुपये में मरीज़ों का इलाज करती हैं।

आदिवासियों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुंचाने के लिए कई किमी पैदल चलता है यह डॉक्टर!

By निशा डागर

"मैंने ठाना कि अगर मरीज़ अस्पताल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं तो अस्पताल उन तक पहुंचेगा!"

न बिजली, न पानी, न सड़कें- और फिर एक मेडिकल छात्र के संघर्ष ने बदल दी गाँव की किस्मत!

By निशा डागर

उन्होंने गाँव के विकास को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखे। पर कोई कार्यवाही न होने पर, उन्होंने हाई कोर्ट में गाँव के हालातों को सुधरवाने के लिए याचिका डाली।

व्हीलचेयर पर बैठकर, 2,500 से भी ज़्यादा बच्चों को मुफ़्त शिक्षा दे चुके हैं गोपाल खंडेलवाल!

By निशा डागर

उत्तर-प्रदेश में मिर्ज़ापुर के एक गाँव पत्तीकापुर में 49 वर्षीय गोपाल खंडेलवाल पिछले 20 साल से यहाँ के बच्चों के जीवन में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। गोपाल एक दिव्यांग हैं और चल नहीं सकते हैं। व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे ही अब तक उन्होंने सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी संवारी है। 

19 साल की मौसमी खातून को मिली मेडिकल पढ़ाई में स्कॉलरशिप, कभी बनाती थीं बीड़ी!

By निशा डागर

कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली मौसमी खातून और मोसम्माद हसीना परवीन ने हाल ही में डॉ अमिया कुमार बोस मेमोरियल अवार्ड जीता है। एमबीबीएस फर्स्ट ईयर की छात्रा मौसमी (19 वर्षीय) कुछ समय पहले तक अपने परिवार के साथ एक बीड़ी के कारखाने के लिए काम करती थी।

सुपर 30 से प्रेरित हैं उड़ीसा का 'ज़िन्दगी अभियान'; मिल रही है 20 गरीब बच्चों को मुफ्त मेडिकल कोचिंग!

By निशा डागर

उड़ीसा के भुवनेशवर से ताल्लुक रखने वाले अजय बहादुर सिंह, मेडिकल पढ़ने का ख्वाब रखने वाले बहुत से गरीब बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं। पटना के 'सुपर 30' इंस्टिट्यूट से प्रेरित अजय ने अपनी पहल 'ज़िन्दगी' साल 2010 से शुरू की थी। वे हर साल गरीब तबके के 20 बच्चों को मेडिकल कोचिंग मुहैया कराते हैं।

मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी का अनोखा फैसला, 'हिंगलिश' में परीक्षा लिख सकते हैं छात्र

By निशा डागर

मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी ने परिपत्र जारी किया है कि अब मेडिकल के छात्र हिंदी और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंगलिश भाषा में भी परीक्षा लिख सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और समाज के कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों को अंग्रेजी भाषा में लिखने में होने वाली परेशानी के चलते यह कदम उठाया गया है।