व्हीलचेयर पर बैठकर, 2,500 से भी ज़्यादा बच्चों को मुफ़्त शिक्षा दे चुके हैं गोपाल खंडेलवाल!

उत्तर-प्रदेश में मिर्ज़ापुर के एक गाँव पत्तीकापुर में 49 वर्षीय गोपाल खंडेलवाल पिछले 20 साल से यहाँ के बच्चों के जीवन में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। गोपाल एक दिव्यांग हैं और चल नहीं सकते हैं। व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे ही अब तक उन्होंने सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी संवारी है। 

त्तर-प्रदेश में मिर्ज़ापुर के एक गाँव ‘पत्ती का पुर’ में 49 वर्षीय गोपाल खंडेलवाल, पिछले 20 साल से गाँव के बच्चों के जीवन में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। अब तक उन्होंने सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी संवारी है।

वास्तविक रूप से, बनारस से ताल्लुक रखने वाले गोपाल एक डॉक्टर बनना चाहते थे और मेडिकल परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्हें आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में दाख़िला भी मिला। पर उनकी किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।

22 साल पहले घटी एक घटना ने गोपाल का जीवन ही बदल दिया। बाइक पर जाते हुए 27 साल के गोपाल को उस दिन  पीछे से आती हुई एक कार ने टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उनकी कमर के नीचे का पूरा हिस्सा लाखवाग्रस्त हो गया।

इस हादसे से जैसे-तैसे गोपाल उबर ही रहे थे कि छह महीने बाद उनकी माँ का निधन हो गया। पर अपने आख़िरी समय में उनकी माँ ने उनसे जो बात कही, उसने उन्हें जीवन में उठ खड़े होने का दुबारा हौसला दिया।

उनकी माँ ने कहा था, “तुम्हारे पास सबसे बड़ी चीज़ शिक्षा है। अपना कर्म ऊँचा रखना, एक दिन खुद लोग तुम्हारे पैर नहीं बल्कि तुम्हारा चेहरा देखेंगे।”

द बेटर इंडिया से बात करते हुए गोपाल ने कहा, “इस हादसे के बाद मेरे लिए सामान्य जीवन बहुत मुश्किल हो गया था। अपनों के लिए भी मैं बोझ बन गया था। क्योंकि सबको लगता था कि अब मेरा जीवन ख़त्म हो गया है, लेकिन मैं जीना चाहता था।”

ऐसे में उनके एक दोस्त डॉ. अमित दत्ता, उनकी मदद के लिए आगे आए। डॉ. दत्ता ने उन्हें अपने गाँव ‘पत्ती का पुर’ चलने के लिए कहा। साल 1999 में गोपाल यहाँ आए और फिर यहीं के होकर रह गये। उनके दोस्त ने उनके रहने के लिए गाँव के बाहरी इलाके में एक छोटा-सा कमरा बना दिया और साथ ही खाने-पीने का इंतज़ाम भी कर दिया। पर फिर भी गोपाल को यहाँ अकेलापन काटने को दौड़ता था। वे कुछ करना चाहते थे।

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धीरे-धीरे गोपाल यहाँ के गाँववालों को जानने लगे और उन्हें समझ में आया कि इस गाँव में बच्चों के लिए शिक्षा के कोई ख़ास अवसर नहीं हैं; ख़ास कर, ग़रीब और पिछड़े तबकों के बच्चों के लिए। ऐसे में उन्होंने अपनी इस हालत के बावजूद, बिस्तर पर ही लेटकर इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।

गोपाल कहते हैं, “यह क्षेत्र नक्सलवाद से प्रभावित है। यहाँ बच्चो की पढ़ाई पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी जाती थी। बचपन से ही उन्हें किसी न किसी काम में झोंक दिया जाता था। एक और बड़ी समस्या थी जातिवाद, जिसके चलते भी कई ग़रीब परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित थे।”

उन्होंने अपने इस गुरुकुल, नोवल शिक्षा संस्थान की शुरुआत 5 साल की एक बच्ची को पढ़ाने से की।

हालांकि, शुरुआत में उन्हें बहुत-सी समस्याएँ झेलनी पड़ी। गोपाल बताते हैं कि बच्चों के माता-पिता को उनकी शिक्षा के प्रति जागरूक करना कभी भी आसान नहीं रहा। पर उनकी लगातार मेहनत रंग लायी और धीरे-धीरे ‘गोपाल मास्टरजी’ के नाम से लोग उन्हें जानने लगे।

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अब तक उन्होंने लगभग 2, 500 बच्चों को शिक्षा प्रदान की है और आज भी यह सिलसिला जारी है।

फोटो साभार

वर्तमान में भी बहुत-से बच्चे उनके पास पढ़ने आते हैं। इन बच्चों की कक्षाएँ सुबह 5:30 बजे से शुरू हो जाती है और शाम में 6 बजे तक चलती हैं। गाँव के एक बगीचे में ही वे इन बच्चों को पढ़ाते हैं। गोपाल के लिए ये बच्चे ही अब उनका परिवार हैं।

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अपने बहुत-से छात्रों का आगे की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूलों में दाखिला करवाने का श्रेय भी गोपाल को ही जाता है।

कई बार जब बच्चे के माता-पिता फीस नहीं भर पाते, तो गोपाल उस बच्चे के लिए सोशल मीडिया पर लोगों से मदद माँगते हैं। इस तरह से अब तक वे लगभग 50 बच्चों की मदद कर चुके हैं।

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अपने छात्रों के बारे में बात करते हुए गोपाल ने बताया कि उनके बहुत से छात्र आज अच्छे पदों पर हैं। बहुत से छात्र भारत के बड़े-बड़े शहरों में नौकरी कर रहे हैं, तो कई विदेशों में भी हैं। आज भी जब ये लोग अपने गाँव लौटते हैं, तो अपने ‘गोपाल सर’ के साथ वक़्त बिताना नहीं भूलते।

हालांकि, अपने एक छात्र के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “जहाँ मैं रहता हूँ, वहीं पड़ोस में एक परिवार था, जो कि निचले तबके से संबंध रखा था। ये लोग दिहाड़ी-मजदूरी करके गुज़ारा करते थे। पीढ़ियों से यही कर रहे थे, इसलिए अपने छोटे-से बेटे की शिक्षा पर भी इनका कोई ध्यान नहीं था। पर मैं चाहता था कि उस बच्चे का भविष्य संवर जाए। इसलिए मैंने उन लोगों से गुज़ारिश की, कि वे अपने बेटे को दिन में मेरे पास ही छोड़ जाया करें ताकि मैं उसे पढ़ा सकूँ। आज वह लड़का अच्छे से पढ़-लिख गया है और देहरादून में एक अच्छी कंपनी में काम कर रहा है। मुझे उसे देखकर बहुत ख़ुशी होती है, क्योंकि अब उस परिवार की आने वाली हर एक पीढ़ी का स्तर ऊँचा उठेगा।”

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गोपाल खंडेलवाल के जीवन की इस प्रेरणात्मक कहानी को ज़ी टीवी के शो ‘इंडियाज़ बेस्ट ड्रामेबाज़ 2018’ में भी दिखाया गया है। गोपाल ने बताया कि शो के प्रोडक्शन हाउस की तरफ़ से उन्हें एक इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर भी दी गयी, जिसके बाद उनकी ज़िंदगी काफ़ी आसान बनी है।

दिव्यांगता के बारे में बात करते हुए, गोपाल कहते हैं कि हमारे देश में लोग अभी भी दिव्यांगों को नहीं अपना पाते हैं। दिव्यांगों को सबके साथ की ज़रूरत होती है, दया और तरस की नहीं। आप उन्हें दया का पात्र न बनाइए, बल्कि उन पर भरोसा कीजिये कि वे भी अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं।

आख़िर में गोपाल कहते हैं कि समाज से जातिवाद, अमीरी-ग़रीबी आदि के भेद-भाव को शिक्षा के माध्यम से ही खत्म किया जा सकता है। हम सबको साथ मिलकर अपने देश को बेहतर बनाना होगा।

गोपाल खंडेलवाल से संपर्क करने के लिए 8090498162 पर डायल करें या फिर gurukulgopalsirji1969@gmail,com पर ईमेल करें। उनकी इस पहल में किसी भी तरह की आर्थिक मदद करने के लिए यहाँ क्लिक करें

(संपादन – मानबी कटोच)


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