वाणी कन्नन और उनके पति बालाजी पिछले 16 सालों से इंग्लैंड में रह रहे थे। साल 2009 में जब वाणी अपने पहले बच्चे के इस दुनिया में आने के दिन गिन रही थीं, तब उनके सामने ऐसी परिस्थिति आई, जहां उन्हें एक बड़ा फैसला लेना था। बच्चे के आने की खुशी के साथ-साथ, यह उनके लिए आत्मनिरीक्षण का समय भी था और यहीं से उन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन अपने Dream House की ओर एक कदम बढ़ाया ।
बिज़नेस एनालिस्ट से योगा टीचर बनीं वाणी कहती हैं, “गर्भावस्था के दौरान, मैंने बच्चे की नैपी, प्लास्टिक की बोतलें, बेबी फीड की बोतलें और दूसरी बहुत सी चीजों पर ध्यान देना शुरु किया। ये वे चीजें थीं, जिन्हें हम खरीदने की सोच रहे थे। लेकिन तभी मैंने गौर किया कि एक बच्चे को पालने के नाम पर, हम प्रकृति के कितने खिलाफ जा रहे थे!”
यह बात महसूस करते ही वाणी और उनके पति बालाजी, दोनों ने ही दूसरे रीयूज़ेबल विकल्पों पर रिसर्च करना शुरु कर दिया।
हालाँकि उन्हें एहसास नहीं हुआ, लेकिन उनके भीतर सस्टेनेब्लिटी की चिंगारी जल चुकी थी। इसलिए, जब 2010 में उनकी बच्ची का जन्म हुआ, तो जहां तक संभव हो सका, उन्होंने ऐसी चीजों का इस्तेमाल करना कम किया, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता हो।
उन्होंने बच्ची के लिए घर पर बने बेबी फूड और रीयूजेबल नैपी का इस्तेमाल करना शुरु किया। लेकिन फिर भी उन्हें पता था कि यह पर्याप्त नहीं है। वे पृथ्वी और पर्यावरण के लिए और ज्यादा करना चाहते थे।
Dream House के ज़रिए सस्टेनेबिलिटी को ओर बढ़ाया पहला कदम

साल 2018 में वाणी और बालाजी भारत वापस आ गए। वाणी कहती हैं, “हम चाहते थे कि हमारे बच्चे भारतीय संस्कृति में बड़े हों। मैंने अपने बच्चों को कोयंबटूर में वैकल्पिक स्कूली शिक्षा देने का फैसला किया। हालांकि मुझे इससे भी अभी उनती संतुष्टि नहीं मिली थी।”
वह कहती हैं, “यहां वैकल्पिक स्कूली शिक्षा, पारंपरिक स्कूली शिक्षा के जैसी ही थी। मुझे लगा कि अगर मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे लाइफ स्किल सीखें, तो शायद मुझे उन्हें होमस्कूल देना चाहिए। मैंने अपने बच्चों को कई विषयों में शामिल किया, उनमें से एक घर बनाना भी था।”
लगभग उसी समय, करीब 2020 में उनके परिवार ने घर लेने के बारे में सोचा और बेंगलुरु में घर खोजना शुरु किया। लेकिन वहां अपार्टमेंट की कीमतों ने उन्हें चौंका दिया। तब उन्होंने अपना घर खुद बनाने का फैसला किया। वाणी कहती हैं, “बेंगलुरु में एक फर्म है ‘महिजा’। यह एक दशक से अधिक समय से सस्टेनेबल घर बना रही है। हमने हमारे घर के लिए भी उनसे ही संपर्क किया।”
कपल ने बताया कि जैसा उन्होंने सोचा था, उस हिसाब से शुरुआत काफी अच्छी रही। उन्हें एक 2,400 वर्ग फुट की जमीन मिल गई और एक ऐसा आर्किटेक्ट भी, जो उनके सपनों के घर में सस्टेनेबिलिटी से चार चांद लगा सकता था।
Dream House का डिज़ाइन है अनोखा
तीन साल से महिजा से जुड़े एक आर्किटेक्ट अनिरुद्ध जगन्नाथन कहते हैं, “वे चाहते थे कि उनका घर बहुत अधिक पारंपरिक सा न दिखे। फिर बात आई घर में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की।
अनिरुद्ध मानते हैं कि लोग आमतौर पर देसी और स्थानीय घरों के लिए इको-फ्रेंड्ली सामग्री को ही अनुकूल समझते हैं। इस सोच को बदलने के लिए, उन्होंने घर को जहां तक हो सके आधुनिक बनाने का फैसला किया।
यह पूछे जाने पर कि एक पारंपरिक घर, एक सस्टेनबल घर से अलग कैसे बनता है? अनिरुद्ध कहते हैं, “जहां पारंपरिक घर, सामग्री पर अधिक और लेबर चार्ज पर कम खर्च करते हैं, वहीं इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य श्रम को अधिकतम करना और सामग्री पर खर्च की गई लागत को कम करना था।”
…और इस तरह बेंगलुरु में इस कपल के मिट्टी के घर के निर्माण की यात्रा शुरू हुई। एक प्रोजेक्ट जो 2021 की शुरुआत में शुरू हुआ और 2022 में बनकर पूरा हुआ।
अपने Dream House में रहने का अनुभव कैसा रहा?

तीन महीने से वाणी और उनका परिवार अपने घर में रह रहा है। वह कहते हैं कि यह उनका अब तक का सबसे अच्छा फैसला रहा है।
आईटी प्रोफेशनल बालाजी कहते हैं, “हमारी बेटी का जन्म वह मौका था, जब हमने इको-फ्रेंड्ली की दिशा में सोचना शुरू किया था, तब से हमारा हर निर्णय इससे जुड़ा रहता है। एक इको-फ्रेंड्ली घर बनाने का फैसला करना, पृथ्वी के लिए कुछ करने का हमारा अपना तरीका है।”
उनके घर को बनाने में जिन ईंटों का इस्तेमाल हुआ है, वे छह तत्वों को मिलाकर बनाई गई हैं – 7 फीसदी सीमेंट, मिट्टी, लाल मिट्टी, स्टील ब्लास्ट, चूना पत्थर और पानी। वहीं, छत बनाने के लिए मड ब्लॉकों का उपयोग किया गया है। इस घर की छत और चारों ओर की दीवारों के बाद, अब चलते हैं रसोई की ओर, जहां वाणी के खाना पकाने की स्वादिष्ट महक से आपका मन ललचा जाएगा और इस खुशबू के पीछे का राज है घर के बाहर बना उनका किचन गार्डन।
वाणी अपने 1000 फीट के बगीचे में मेथी, करी पत्ता, धनिया आदि उगाती हैं, जिसका उपयोग यह परिवार अपने भोजन में करते हैं। हालांकि, वाणी बताती हैं, यह उनके जैविक खेत का एक छोटा वर्ज़न है। कुछ साल पहले ही उन्होंने 2 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक खेती शुरु की थी। उनके भोजन में जो कुछ भी जाता है, वह ताज़ी उपज, उनके खेतों से ही आती है।
80 साल पुरानी लकड़ी को रिसायकल कर बनाए गए दरवाज़े

वाणी, बेंगलुरु के एक फर्नीचर बाजार में खरीदारी कर रही थीं, तभी उन्हें एक दिलचस्प स्टॉल दिखा। जहाँ एक आदमी मलबे में तब्दील हो चुकी जगहों से लकड़ियां खरीदता है और फिर उसे रिसायकल कर नई चीज़ें बनाकर बेच देता है।
वाणी कहती हैं, ”हमने अपने Dream House की खिड़कियां भी ऐसे ही मटेरियल से बनवाई हैं। यह नई लकड़ी खरीदने की तुलना में 20 फीसदी सस्ता मिला है। हमारे घर का मुख्य द्वार लगभग 80 वर्ष पुराना है। यह पहले एक सागौन का दरवाज़ा था, जिसे हमने एक पुराने घर से खरीदा था। हमने एक नया सागौन का दरवाजा खरीदने की लागत के बारे में पूछताछ की, तो इसकी कीमत लगभग 60,000 रुपये बताई गई थी। लेकिन इस दरवाजे के लिए उन्होंने ट्रांसपोर्ट मिलाकर आधी कीमत चुकाई है।
निर्माण प्रक्रिया के दौरान जो लकड़ी बची थी, उससे उन्होंने बुकशेल्फ़ बनवाया। इस घर की एक और खासियत यह है कि यहां एसी नहीं लगे हैं, लेकिन फिर भी घर का हर कमरा काफी ठंडा रहता है।
वाणी का कहना है कि उन्हें कभी भी आर्टिफिशिअल कूलिंग की ज़रूरत नहीं थी। वह बताती हैं, “हमारे आर्किटेक्ट ने घर को इस तरह से डिजाइन किया है कि हम शाम 6.30 बजे के बाद ही लाइट्स जलाते हैं। इससे पहले सनरूफ से प्राकृतिक रौशनी मिलती है।”
यहां बने 3 कुओं से 30 घरों को मिल रहा पानी

वाणी आगे कहती हैं कि उन्होंने अपना Dream House बनाते समय एंगल का ध्यान रखा गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि ज्यादा से ज्यादा नेचुरल लाइट रिफ्लेक्ट हो। अगर कभी परिवार के लोगों को इलेक्ट्रॉनिक आइटम चलाने की ज़रूरत पड़ती है, तो वह सोलर एनर्जी का उपयोग करते हैं।
वाणी का कहना है कि ऑन-ग्रिड सिस्टम के माध्यम से उत्पादित अतिरिक्त बिजली 3 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से वापस ग्रिड को भेजी जाती है। उनके घर में 4.8 किलोवाट के 11 सोलर पैनल लगाए गए हैं, जिससे इन्हें बिजली का बिल नहीं भरना पड़ता है।
बरसात के मौसम में, उनके घर से 200 मीटर की दूरी पर स्थित सामुदायिक बोरवेल पानी से भर जाते हैं, जिससे उन्हें पर्याप्त पानी मिलता है। यहां तीन कुएं भी हैं, जिनमें से दो 5 फीट और एक 8 फीट गहरा है। इनसे समुदाय के 30 घरों को पानी मिलता है।
इन सभी इको-फ्रेंड्ली उपायों के साथ बने अपने इस घर पर दंपति को गर्व है।
‘घर बनाना एक बच्चे को पालने जैसा है’

वाणी कहती हैं, “जो लोग भी सस्टेनेबल घर बनाने की सोच रहे हैं, उनके लिए यह जीवन का सबसे अच्छा तरीका है। जब हमारा घर बनाया जा रहा था, तब मेरे बच्चे ईंटों पर पानी डाला करते थे और हम बढ़ई को बड़ी कुशलता से पुरानी लकड़ियों के साथ काम करता देखते थे। निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा होने में बहुत मज़ा आता है।”
वह निर्माण शुरू करने से पहले सामग्री खरीदने की सलाह भी देती हैं। वह कहती हैं, “श्रमिकों का सम्मान करें, क्योंकि यह उनके साथ एक बॉन्ड बनाएगा और दिमाग में स्पष्ट ख्याल रखें कि आप क्या चाहते हैं। चंचल दिमाग से केवल परेशानी बढ़ेगी।”
अंत में, दोनों इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सीधा घर बनकर तैयार हो जाने पर उसे देखने के बजाय, घर बनने की एक-एक प्रक्रिया का हिस्सा बनें। वह कहते हैं, “प्रक्रिया के हर मिनट का आनंद लेना ज़रूरी है।”
स्थान: नेलागुली गांव, कनकपुरा रोड, बेंगलुरु
आकार: 2400 वर्ग फुट
निर्माण में लगा समय: 14 महीने
मूल लेखः कृष्टल डिसूजा
संपादनः अर्चना दुबे
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