कुछ करने का जज़्बा हो, तो इंसान पत्थर में भी फूल खिला सकता है। इसे सच कर दिखाया है, धनबाद (झारखंड) के टाटा सिजुआ इलाके के एक मजदूर, उमा महतो ने। 53 साल के उमा के पास तक़रीबन दो एकड़ पुश्तैनी जमीन थी, जो बेकार पड़ी थी। चूँकि इस पूरे इलाके में कोल माइनिंग का काम होता है। इसलिए यहां खेती की काफी कम संभावनाएं हैं। यहां कुछ ही लोग हैं, जो अपनी जमीन पर साल में एक बार धान उगाते हैं। ऐसे में, उमा महतो सालभर खेती करके इलाके के किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उमा बताते हैं कि उनके माता-पिता पहले खेती किया करते थे, लेकिन मुनाफा नहीं होने के कारण, उन्होंने मजदूरी करनी शुरू कर दी और बेकार पड़ी जमीन पर खदान का वेस्ट मटेरियल जमा होने लगा। धीरे-धीरे यह जमीन कोयले और पत्थर की वजह से पथरीली हो गई।
सालों की मेहनत रंग लाई
साल 1989 में, उमा ने अपनी इस जमीन पर काम करना शुरू किया। उनके पहले कुछ साल तो पत्थर और कोयला हटाने में ही लग गए। खादानों में मजदूरी करने वाले उमा, हर रोज़ काम से लौटकर खेत में मेहनत किया करते थे। उन्होंने पहले उस जमीन को समतल किया और फिर जुताई शुरू की। इसके बाद उमा उस जमीन पर खेती करने लगे। उन्होंने साल 1999 में, सरकारी सहायता से एक पावर टिलर भी लिया, जिससे उन्हें काफी मदद मिली।
वह कहते हैं, “दस सालों तक तो खेती से मुनाफा होने के बजाय, घर की पूंजी भी लग जाया करती थी। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, मैं कुछ न कुछ उगाता ही रहता था।” उनको खेती करने का काफी शौक़ है। जैसे-जैसे जमीन में सुधार होने लगा, उमा फसलें बढ़ाने लगे। वह हर साल इसमें दाल, मौसमी सब्जियां, गेहूं, चावल आदि उगाते रहते हैं।
उमा समय-समय पर राज्य सरकार की खेती से जुड़ी योजनाओं की जानकारियां भी लेते रहते हैं।
पानी और जानवरों की समस्या
उमा के सामने एक समस्या पानी और सिंचाई के साधन की भी थी। जिसके लिए उन्होंने साल 2003 में, खेत में ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगवाया। चूँकि उमा, टाटा सिजुआ ग्रुप के खदानों में ही मजदूरी का काम करते हैं। इसलिए उन्होंने टाटा की ग्रामीण विकास इकाई TSRDS के तहत ड्रिप सिस्टम सहित डीज़ल पंप, इलेक्ट्रिक पंप आदि भी लगवाए। वह बताते हैं, “खेत में इन सारी हाईटेक सुविधाओं के कारण ही, मुझे फायदा होने लगा।” उन्होंने खेती की पारंपरिक विधि को आधुनिक विधि से जोड़कर, पानी और खाद के खर्च में काफी बचत भी की है।
उस इलाके में जानवरों की भी समस्या थी। कभी सूअर, तो कभी कुत्ते खेत में जाकर फसलों को नुकसान पहुंचाते थे। जिसके लिए, उन्होंने खेतों में एक तार की बॉउंड्री भी बनवाई। इसके बाद जैसे ही, उन्हें थोड़ा मुनाफा होने लगा, तो उन्होंने दो और लोगों को काम पर रख लिया। ताकि फसलों का अच्छे से ध्यान रखा जा सके।
वह कहते हैं, “इस इलाके में लोग खेती करने को समस्या समझते हैं। इसी वजह से आज 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग खेती करना छोड़ चुके हैं। लेकिन मैं आज खेती से सालाना तीन लाख से ज्यादा का मुनाफा कमाता हूँ।”
उमा के साथ काम करने वाले पिंटू महतो ने, उमा के बारे में बात करते हुए बताया कि इस तरह की खेती इस पूरे इलाके में कोई नहीं करता। वह पूरे साल कुछ न कुछ उगाते ही रहते हैं। जिसके कारण आज उन्होंने अपनी एक अलग पहचान भी बना ली है।
उनकी पत्नी शांति देवी भी खेती में उनकी मदद करती हैं। फ़िलहाल, वह अपनी इस जमीन पर 20 हजार मिर्च के पौधे लगाने की तैयारी कर रहे हैं। वह अपने खेतों में भिंडी, करेला, मकई, तरबूज और टमाटर की खेती भी करते हैं। इस साल उन्होंने गर्मियों में तरबूज की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया है।
वह जल्द ही अपने खेत में सोलर पंप सिस्टम भी लगवाने की तैयारी में हैं। जिसे लगाने के लिए वह राज्य सरकार की मदद ले रहे हैं। उनका कहना है कि इससे मेरा डीज़ल और बिजली का खर्च कम हो जाएगा। उनकी मेहनत यह साबित करती है कि कड़ी मेहनत से हम किसी भी परिस्थिति को बदल सकते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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