असल यमनी पकवानों का लुत्फ उठाना हो तो बरकस चले आइये। रमज़ान में इस बस्ती की रौनक के क्या कहने। हलीम और हरीस के जलवे देखते ही बनते हैं और सुलेमानी चाय की चुस्कियों के संग गपशप के लंबे दौर भी और लंबे खिंच जाते हैं!
शहर में जिस तेजी से शू स्टोर खुलते हैं उतनी रफ्तार से बुक स्टोर नहीं खुल रहे। और पहले जैसी लाइब्रेरी की परंपरा भी चूकने लगी है। लेकिन इस दौर में अक्षता जैसे युवा सब्र का मंज़र दिखाते हैं। वो याद दिलाते हैं कि सब कुछ चूका नहीं है।
उत्तराखंड में नैनीताल जिले के जिस हिस्से में मैंने डेरा डाल रखा वहां कॉर्बेट की विरासत के ऐसे कई कालखंड जिंदा हैं। उन्हें टटोलने की जिद पाले बार-बार लौट आती हूं इस तरफ। उस दिन भी सफारी की थकान बदन से झाड़कर हम पवलबढ़ फॉरेस्ट रेस्ट हाउस की तरफ चल पड़े थे।